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लघु कथाः शिष्य ने पूछा-गुरुजी दुख क्यों आता है? संत ने तब दिया इस तरह जवाब

एक संत के आश्रम में कई शिष्य अध्ययन करते थे। एक दिन एक शिष्य ने संत से पूछा, गुरुजी, सुख आता है, तो लोग खुश हो जाते हैं। वे अपने सुख के क्षणों को याद रखते हैं। लेकिन दुख क्यों
आता है? न तो इसे कोई स्वीकार पाता है, न याद ही रखना चाहता है।
संत बोले, मुझे नदी के दूसरे किनारे पर जाना है। तुम्हारी बात का जवाब मैं तुम्हें नाव में बैठकर दूंगा।
दोनों नाव में बैठ गए। संत नाव का चप्पू चलाने लगे, लेकिन वे सिर्फ एक ही चप्पू चला रहे थे। इससे नाव गोल गोल घूमने लगी, आगे बढ़ ही नहीं रही थी। तब शिष्य बोला, गुरुजी
अगर आप एक ही चप्पू से नाव चलाते रहे, तो हम आगे बढ़ ही नहीं पाएंगे। संत बोले, लो, तुभने ही अपने सवाल का जवाब दे दिया। अगर जीवन में सुख ही सुख होगा, तो जीवन की नाव
गोल-गोल घूमती रहेगी, आगे बढ़ेगी ही नहीं। जिस तरह नाव को साधने के लिए दो चप्पू चाहिए, उसी तरह जीवन को चलाने के लिए सुख के साथ दुख भी होना चाहिए।

कथा-मर्म सुख की तरह दुख को भी जीवन का एक हिस्सा मानकर स्वीकार करना चाहिए। यह मान लेना कि सुख ही चरम लक्ष्य है, मनुष्य की भारी भूल है। सुख व दुख दोनों ही महान शिक्षक हैं।

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