✍ सचिन कुमार सिंह। पूर्वी चंपारण
बिहार में शराबबंदी लागू हुए एक दशक होने को है, लेकिन नशे का जाल खत्म होने के बजाय और भी गहराता दिख रहा है। शराब की जगह अब ‘सूखा नशा’ कृ जैसे नशीली टेबलेट, कफ सिरप और गांजा ने ले ली है। हाल ही में पूर्वी चंपारण जिले के भेलाही थाना क्षेत्र में एक मेडिकल स्टोर पर छापेमारी कर पुलिस ने भारी मात्रा में प्रतिबंधित कफ सिरप और टेबलेट बरामद की है, जिससे पूरे इलाके में हड़कंप मच गया है।
मेडिकल स्टोर की आड़ में चल रहा था नशे का कारोबार
गुप्त सूचना के आधार पर भेलाही बाजार स्थित जय गुरुदेव मेडिकल स्टोर में छापा मारने गई पुलिस टीम को वहां से
📌 49 बोतल प्रतिबंधित नशीली कफ सिरप
📌 468 नशीली टेबलेट
मिलीं। पुलिस ने मौके से दो आरोपियों कृ रजनीकांत कुमार (निवासी भेलाही) और आशीष कुमार (निवासी आदापुर) को गिरफ्तार किया है। पूछताछ में यह भी सामने आया कि मेडिकल स्टोर की आड़ में यह अवैध कारोबार काफी समय से चल रहा था।
थानाध्यक्ष मोहम्मद शाहरुख ने बताया कि नशे के खिलाफ अभियान लगातार जारी है और आम लोगों से सहयोग की अपील की जा रही है।
नेपाल सीमा से बढ़ी गांजा और चरस की तस्करी
पूर्वी चंपारण की नेपाल सीमा से सटे होने का फायदा तस्कर लगातार उठा रहे हैं।
पिछले तीनदृचार महीनों में पुलिस और एसएसबी द्वारा की गई कार्रवाई में कई बड़ी खेप जब्त की गई हैरू
📍 जनवरी- ढाका में 45 किलो गांजा बरामद
📍 फरवरीर- आदापुर में 32 किलो गांजा व 1 किलो चरस पकड़ा गया
📍 मार्चर-क्सौल में महिला तस्कर से 12 किलो गांजा बरामद
📍 अप्रैलर- सुपौली के रास्ते नेपाल से लाई जा रही 18 किलो अफीम जब्त
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सीमावर्ती क्षेत्र अब ड्रग्स तस्करी का केंद्र बनते जा रहे हैं, जो आने वाले समय में और गंभीर संकट बन सकते हैं।
नशे की चपेट में युवा पीढ़ी
विशेषज्ञ मानते हैं कि शराबबंदी के बाद सस्ता और आसानी से मिलने वाला नशा युवाओं के बीच तेजी से फैल रहा है। स्कूल-कॉलेज के छात्र तक अब कफ सिरप और टेबलेट जैसे नशों के आदी होते जा रहे हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार, ये पदार्थ धीरे-धीरे मानसिक और शारीरिक रोगों को जन्म दे रहे हैं, जिसका असर पूरे समाज पर दिख रहा है।
प्रशासनिक प्रयास और जरूरी सवाल
हालांकि पुलिस अपनी ओर से प्रयासरत है, लेकिन सवाल यह भी है कि कृ
मेडिकल स्टोर्स तक ये दवाएं किस चौनल से पहुंच रहीं हैं?
क्या ड्रग इंस्पेक्टर और स्वास्थ्य विभाग अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं?
क्या सीमा सुरक्षा बलों को और संसाधन और अधिकार दिए जा रहे हैं?
जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक यह संकट थमने वाला नहीं लगता।
जरूरत है सामाजिक जागरूकता की
सिर्फ सरकारी कार्रवाई से बदलाव संभव नहीं है।
अभिभावकों को सतर्क होना होगा
स्कूलों में नशा-विरोधी कार्यक्रम चलाने होंगे
युवाओं को नशे से दूर रखने के लिए खेल, रोजगार और काउंसलिंग की व्यवस्था करनी होगी।