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पुरुषोत्तम संगम युग के समाप्त होने में मात्र 13 वर्ष का समय शेष, दुनिया विश्व युद्ध के करीब

नेशनल डेस्क। अशोक वर्मा
एक तरफ संगम युग के समाप्त होने में मात्र 13 वर्ष का समय अब बच गया है, दूसरी ओर दुनिया में वैज्ञानिको का अपना करिश्मा विश्व युद्ध के रूप के करीब दिख रहा है। प्राकृतिक प्रकोप चरम पर होता जा रहा है,और तीसरा धरती पर जो पापा चार ,अत्याचार ,अनाचार ,मूल्यों का ह्रास है वह अभी फुल फॉर्म में है । उसके नीगेटिव प्रतिकंपन से धरती वासी दिनोदिन गंभीर बीमारियों की चपेट मे आते जा रहे है । 22 फरवरी गुरुवार की मुरली में बहुत ही महत्वपूर्ण बातें थी और भोग संदेश में बाबा ने कहा है कि अब सिर्फ संदेश देना नहीं है बल्कि बाप समान बन अपने स्वरूप से बाबा को प्रत्यक्ष करने की प्लानिंग करनी है। 23 ,24, 25 की भी मुरली अपने आप में काफी कुछ संदेश देती हुई नजर आ रही है । 26फरवरी रविवार की अव्यक्त मुरली में भी बाबा ने प्रत्यक्ष करने की बात कही है। अब यह विचार सागर मंथन करने की बात है कि 1936 में जब शिव बाबा का अवतरण ब्रह्मा बाबा के तन में हुआ उसके बाद की कई मुरलियों में बाबा ने कहा है कि अंतिम समय मे बाबा को बाबा के बच्चों द्वारा प्रत्यक्ष किया जाएगा ।यानी बच्चे जब आप सामान बन जाएंगे वही प्रत्यक्षता का स्वरूप बनेगा। पुरुषोत्तम संगम युग समाप्ति का वर्ष 2035 है और अभी 2023 वर्ष चल रहा है अब संपूर्ण परिवर्तन मे मात्र तेरह वर्ष का समय बचा हुआ है। बाबा ने मुरलियों में कहा है कि परिवर्तन की प्रक्रिया जब आरंभ होगी तो पुराना घर समाप्त होने और नया बनने में 8 -10 वर्ष का समय लगेगा । बाबा की प्रत्यक्षता मे ऐसी बात नहीं होगी कि बहुरूपी समान लक्ष्मीनारायण की ड्रेस मे दुनिया के सामने वे प्रकट होंगे ,बल्कि बाबा के बच्चे बाप समान बन बाप के गुणों को खुद में समाहित कर दुनिया के समक्ष बाबा की प्रत्यक्षता कराएंगे ।
बाबा के अव्यक्त इशारों में यह सब तमाम बातें स्पष्ट रूप से आ रही है। स्थापना के बाद मुरलियों में जो बातें आई हैं उन महावाक्यों के साथ वर्तमान बातों को जोड़कर अगर विचार मंथन किया जाए तो अब परिवर्तन की प्रक्रिया काफी तीव्र होने जा रही है ।
बाबा की परिपक्व बच्चे जो बाबा की इन इशारों को पकड़ रहे हैं, वे अपने पुरुषार्थ को काफी तीव्र गति से आगे बढ़ाएंगे और योग के स्वरूप को ज्वालामुखी रूप देंगे ।और देह और देह के सब संबंध को पूरी तरह से छोड़ एक मैं और बाबा याद रहे।अब सिर्फ शांतिधाम और सुखधाम याद रहनी चाहिए। नई सतयुगी दुनिया अब बेताब है हमें गले लगाने के लिए।बाबा के इन इशारों को समझना होगा और संपूर्ण बनना होगा।

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