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मीठा-मीठा, गप-गप, कड़वा-कड़वा, थू-थूः ‘वोट चोरी’ का नैरेटिव! जनादेश का अपमान या सियासी नौटंकी?

-2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कर्नाटक में 224 में से 135 सीटें जीतकर भारी बहुमत से सरकार बनाई।

-कांग्रेस सरकार के सत्ता संभालने के बाद यानी 2023 में, मौजूदा वोटर लिस्ट में दो बार जनवरी 2023 और जनवरी 2024 बड़े पैमाने पर संशोधन हुआ, तब किसी ने नहीं की थी कोई आपत्ति

नेशनल डेस्क | यूथ मुकाम न्यूज नेटवर्क —
जिस कर्नाटक चुनाव की तथाकथित “वोट चोरी” के नाम पर राहुल गांधी समेत पूरा विपक्ष एक सुर में सुर मिलाकर चुनाव आयोग के खिलाफ प्रोपगंडा राग अलाप रहा है, अगर तथ्यों का बारीकी से विश्लेषण करें तो यह एक राजनीतिक नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं लगता।

असल वजह है राहुल गांधी का सेलेक्टिव नैरेटिव — मतलब अगर चुनाव परिणाम पक्ष में आए तो सबकुछ “कूल-कूल”, लेकिन परिणाम विपरीत आए तो मानने से इनकार। सवाल उठता है — क्या बगैर ठोस सबूत, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक व स्वायत्त संस्था पर इतना बड़ा इल्जाम लगाना जनादेश का अपमान नहीं? जबकि उसी जनादेश को स्वीकार कर कांग्रेस कर्नाटक समेत कई राज्यों में सत्ता में है।

कर्नाटक: जीत के बाद भी ‘चोरी’ का आरोप
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कर्नाटक में 224 में से 135 सीटें जीतकर भारी बहुमत से सरकार बनाई। अगर चुनाव आयोग व वोटर लिस्ट में व्यापक गड़बड़ी होती, तो यह नतीजा संभव ही नहीं था। फिर भी, राहुल गांधी अब उसी कर्नाटक को उदाहरण बनाकर देशभर में वोट चोरी की बात कर रहे हैं।

कर्नाटक में वर्तमान सरकार कब से है?
कर्नाटक में भाजपा (BJP) ने 2018 में सत्ता संभाली, लेकिन 2023 में कांग्रेस (Siddaramaiah नेतृत्व) भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आई।
वर्तमान कांग्रेस सरकार का कार्यकाल 20 मई 2023 से शुरू हुआ है।

2. इस बीच वोटर लिस्ट में संशोधन (Revision) कब-कब हुआ?
• Special Summary Revision – 2023 (Assembly चुनाव से पहले)
क्वालिफाइंग डेट: 01 जनवरी 2023

फाइनल लिस्ट प्रकाशित: 05 जनवरी 2023
• चरणबद्ध Revision – जुलाई 2023
Special brief revision शुरू हुई: 21 जुलाई 2023 (BLO द्वारा घर-घर वेरिफिकेशन, फॉर्म 6/7/8 से नाम जोड़ना/सुधार/हटाना)

यह प्रक्रिया लगभग एक महीने तक चली (प्रतिक्रिया देने तक)।

• Special Summary Revision – 2024 (Lok Sabha चुनाव की तैयारी में)
ड्राफ्ट रोल प्रकाशित: 27 अक्टूबर 2023

दावे/आपत्तियां (Claims & Objections): 27 अक्टूबर – 9 दिसंबर 2023

Special campaign drives: 18–19 नव॰ और 2–3 दिसंबर

डिस्पोजल: 26 दिसंबर 2023

फाइनल रोल प्रकाशित: 05 जनवरी 2024

अवधि वोटर लिस्ट रिवीजन
01-2023 कांग्रेस (नया) Special Summary Revision – Final List प्रकाशित
07-2023 कांग्रेस Special brief revision – Corrections और वेरिफिकेशन
10-2023 से 01-2024 कांग्रेस Special Summary Revision 2024 – Draft से Final Roll

कांग्रेस सरकार के सत्ता संभालने के बाद यानी 2023 में, मौजूदा वोटर लिस्ट में दो बार (जनवरी 2023 और जनवरी 2024) बड़े पैमाने पर संशोधन हुआ।

-राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि चुनाव आयोग/CEO कर्नाटक द्वारा नियमित और समय-समय पर किया गया गतिविधि रहा है।

अगर पूरे घटनाक्रम को टाइमलाइन में रखें तो बात साफ़ हो जाती है—

1. जब विधानसभा चुनाव (कर्नाटक, मई 2023) हुए
उस समय कांग्रेस खुद सत्ता में आने के लिए चुनाव लड़ी और जीती।

वोटर लिस्ट का स्पेशल समरी रिवीजन जनवरी 2023 में हुआ था, यानी उसी लिस्ट से कांग्रेस ने भी चुनाव लड़ा। न तो नामों की गड़बड़ी, न ही “फर्जी वोट” का मुद्दा उठाया गया, क्योंकि नतीजा उनके पक्ष में गया।

2. जब लोकसभा चुनाव (अप्रैल–मई 2024) हुए
जनवरी 2024 की वोटर लिस्ट से चुनाव हुआ।

वोटिंग, पोलिंग एजेंट, बूथ स्तर की शिकायत प्रणाली — इन सब के दौरान किसी बड़े पैमाने की आधिकारिक आपत्ति कांग्रेस ने नहीं उठाई।

काउंटिंग और नतीजे के बाद भी तत्काल बड़े आंदोलन या चुनाव आयोग पर सीधा “वोट चोरी” का आरोप नहीं लगाया गया।

3. अब अचानक शोर क्यों?
चुनाव परिणामों के बाद हार का नैरेटिव सेट करने के लिए या भविष्य के चुनावों से पहले आयोग को “अविश्वसनीय” दिखाने के लिए यह रणनीति हो सकती है।

विपक्ष का एक पैटर्न दिखता है — जहाँ जीत होती है, वहाँ चुनाव आयोग सही; जहाँ हार होती है, वहाँ प्रक्रिया पर सवाल।

जनता के बीच असंतोष भड़काने और समर्थकों को एकजुट रखने के लिए “वोट चोरी” जैसे शब्द तुरंत ध्यान खींचते हैं, भले ही अदालत/आयोग में इसका सबूत पेश न किया जाए।

4. राजनीतिक अर्थ
यह एक तरह से जनादेश को चुनौती देने जैसा है, क्योंकि आप उसी प्रक्रिया को गलत कह रहे हैं जिससे पहले आप जीते भी हैं।

-इससे राजनीतिक लाभ हो सकता है, लेकिन लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसे का क्षरण भी होता है।

-कहने का लब्बोलुआब यह कि अगर असली उद्देश्य सुधार होता, तो वोटर लिस्ट रिवीजन के दौरान (जनवरी या जुलाई 2023, अक्टूबर–दिसंबर 2023) ही विस्तार से आपत्तियां दर्ज कराई जातीं। रे हिसाब से, यह कदम समस्या का संस्थागत समाधान निकालने से ज़्यादा एक पब्लिक नैरेटिव बनाने की कोशिश है — ताकि समर्थकों को लगे कि हार धोखाधड़ी से हुई, न कि जनता के फैसले से। राहुल गांधी का हलफनामा न देने का फैसला और विपक्ष का खुला समर्थन एक गंभीर राजनीतिक संदेश देता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जनादेश का सम्मान केवल नतीजे आने पर ही नहीं, बल्कि पूरी चुनावी प्रक्रिया में होना चाहिए। सड़क पर विरोध-प्रदर्शन लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन संवैधानिक संस्थाओं को दरकिनार कर यह करना लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरनाक संकेत है।

वोटर लिस्ट विवाद: हकीकत बनाम हंगामा

SSR के छह मौकों पर चुप्पी, नतीजे के बाद सियासी शोर


🗓 टाइमलाइन: कब-कब मिला मौका, कब रही खामोशी

चरण / तारीख चुनाव आयोग द्वारा दिया गया मौका विपक्ष की कार्रवाई स्थिति
27 अक्तूबर 2023 — ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी ऑनलाइन + बूथ लेवल पर लिस्ट, फर्जी नाम हटाने का मौका कोई बड़े पैमाने पर आपत्ति नहीं पहला मौका गंवाया
नवंबर 2023 — BLO सत्यापन सबूत देकर नाम हटवाने का अवसर कोई बड़े स्तर की रिपोर्ट या शिकायत नहीं दूसरा मौका भी गया
9 दिसंबर 2023 — आपत्ति की अंतिम तिथि फर्जी, मृत, डुप्लिकेट नाम हटाने की आखिरी तारीख आधिकारिक रिकॉर्ड में विरोध नहीं तीसरा मौका चुप
26 दिसंबर 2023 — आपत्तियों का निपटारा सबूत के साथ निर्णय कोई बड़ा मुद्दा नहीं उठाया चौथा मौका भी ठंडा
5 जनवरी 2024 — अंतिम लिस्ट इसके बाद बदलाव नामुमकिन कोई विरोध दर्ज नहीं लिस्ट लॉक
अप्रैल–मई 2024 — मतदान दिवस “चैलेंज वोट” से रोकने का अधिकार बड़े स्तर पर कोई चैलेंज वोट रिपोर्ट नहीं अंतिम मौका भी बेकार

कानूनी हकीकत

  • SSR (Special Summary Revision) हर साल तय प्रक्रिया से होता है।

  • फर्जी नाम हटाने/जोड़ने का कानूनी रास्ता Form-7 और BLO सत्यापन में मिलता है।

  • लिस्ट फाइनल होने के बाद बदलाव का एकमात्र तरीका कोर्ट या ECI में मजबूत सबूत के साथ याचिका है।

  • महज़ प्रेस कॉन्फ्रेंस या सार्वजनिक बयान कानूनी आधार नहीं बनते।


 सियासत या सच्चाई?

  • SSR और मतदान प्रक्रिया में छह मौके थे, जिनका उपयोग नहीं किया गया।

  • अगर सच में फर्जी नामों का इतना बड़ा जाल होता, तो दिसंबर 2023 में ही इसे चुनौती दी जानी चाहिए थी।

  • अब नतीजों के बाद का शोर, हलफनामा देने से बचना और सड़कों पर आंदोलन का आह्वान — यह ज्यादा राजनीतिक नैरेटिव लगता है, न कि कानूनी लड़ाई।

 

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