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पिपराकोठी कस्तूरबा विद्यालय में नेत्रहीनों को पढ़ने की तकनीक देने वाले लुई ब्रेल की जयंती मनी

मोतिहारी। अशोक वर्मा
पिपराकोठी प्रखंड अंतर्गत कस्तूरबा विद्यालय में बुनियादी विद्यालय के प्रधानाध्यापक शंभू प्रसाद एवं अन्य शिक्षकों द्वारा लुई ब्रेल की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक मनोज कुमार ठाकुर ने लुई ब्रेल की जीवनी, तथा नेत्रहीनों के ब्रेल पद्धति पर विस्तृत जानकारी बच्चों को दी।

 

उन्होंने कहा कि ब्रेल पद्धति एक प्रकार की लिपि है जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है इस पद्धति का अविष्कार 1824 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था।यह पद्धति अलग-अलग संख्याओं एवं विराम चिन्हों को दर्शाते हैं ।ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 में फ्रांस क छोटे से ग्राम कूपरे में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था इनके पिता रेल शाही घोड़ों के लिए काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थे तथा इसी से परिवार का पालन पोषण होता था पिता ने लुई ब्रेल को नेत्रहीन होने के कारण उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड अकैडमी में भर्ती करवा दिया इस स्कूल में बेल्ट इन लूई द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी पर यह लिपि अधूरी थी इस विद्यालय में फ्रांस के एक अधिकारी प्रशिक्षण के लिए आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़े जाने वाली नाइट राइटिंग लिपि के बारे में व्याख्यान दिया इसमें 12 बिंदुओं को 6- 6 दो पंक्तियों को रखा जाता था और उसमें विराम,चिन्ह संख्या गणित चिन्ह आदि नहीं होता था।ब्रेल को यहीं से यह विचार आया और इसी लिपि पर आधारित 15 वर्ष की उम्र में ब्रेल पद्धति का आविष्कार किया । यह लिपि दुनिया की लगभग सभी देशों के नेत्रहीनों को शिक्षा का मार्ग प्रदर्शित करता है ।मौके पर माधुरी श्रीवास्तव ,मोहम्मद फैयाज, ज्योति भूषण चैबे ,गणेश कुमार इत्यादि के अलवा बहुत से शिक्षक उपस्थित थे।

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