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ये वादा रहा – दिल को छू लेने वाली सच्ची प्रेम कहानी, क्योंकि कुछ प्रेम कहानियां सिर्फ दिल से लिखी जाती हैं

 लक्ष्मी,     PART-I

लक्ष्मी काफी बेताबी के साथ एक-एक दिन गिनकर अपने महबूब का इंतजार कर रही थी। पहली बार उसे इंतजार का हर एक लम्हा सदियों सा महसूस हो रहा था। बेकरारी इतनी कि पल-पल हर पल बस अपने सनम के दीदार की ख्वाहिश में ही कटता। आंखों से नींद तो तभी से रूठ चुकी थी, जबसे उसके आने का संदेशा मिला था। दिन में भी चैन न मिलता तो उसका नंबर ही मिला लेती, मगर बहुत कम बार बात हो पाती, आजकल कापफी बिजी जो रहने लगे थे जनाब। मगर उसके पास तो सिवाय उसके इंतजार के कोई काम नहीं था। वह पगली तो हर आहट पर चैंक उठती…यह जानते हुए कि अभी उसके आने मंे थोड़ा विलंब है। लक्ष्मी की हालत ऐसी जैसी सूखते खेत को देख किसानों की रहती है। यानी झमाझम बारिश की, मगर इसपर उसका कोई वश तो था नहीं।

  वह सोच रही थी कि तब और अब में कितना फर्क आ गया है। जब उसका महबूब, उससे कुछ वादें, कुछ कसमें खाकर गया था तो एक आम इंसान था। उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें आम इंसानों जैसी ही थी।
तब वह घंटों उसकी पहलू में बैठ वह भविष्य का ताना-बाना बुनता। सपनों का घरौंदा तैयार करता। उसकी ख्वाहिशें, उसकी सोच व इरादे काफी बुलंद थे। एक आम छात्र की तरह उसने कभी भी किसी बैंक या सरकारी दफ्तर में क्लर्की पा लेने की बात नहीं सोची। उसने अपने लिए एक ही लक्ष्य निर्धरित किया, अर्जुन की तरह सिपर्फ उसी पर नजर गड़ाए रहा और अंत तक उसका पीछा करता रहा।
नतीजा कितना सुखद! कितना आश्चर्यजनक!
जब उसने यह सुना कि उसका महबूब आइएएस की परीक्षा में ‘टाॅप रैंकर’ बना है तो मारे खुशी के उसके पांव ही जमीं पर नहीं पड़ रहे थे। वह अखबार में छपी उसकी तस्वीर ले पूरे गांव में घूमती रही, सबको दिखाती। सभी तब उसे बावली ही समझने लगे थे। कई तो बिना मांगे उसे मुफ्त सलाह भी देने लगे कि अब वह हेमंत का ख्याल अपने दिलो-दिमाग से पूरी तरह खुरच दे, जितनी जल्द यह बात समझ में आ जाए कि बचपन की दोस्ती और जवानी की मोहब्बत में काफी फर्क होता है। इंसान जब तक कुछ पा नहीं लेता वह पुराने साथियों के साथ पुरानी यादों की अंधेरी दुनिया में भटकता रहता है, मगर जैसे ही वह अपना लक्ष्य पा लेता है। सपफलता की चकाचैंध उसे हकीकत के काफी करीब ले जाती है, तब वह कोई भी निर्णय अपने सुनहरे भविष्य को घ्यान में रखकर लेता है। ऐसा लगता नहीं कि वह तुम्हारी खातिर नेता-मंत्री घरायन से आए रिश्तों को ठुकरा अपने उज्जवल भविष्य की राह में कांटे बोएगा।


…और लोगों की यहीं बातें उसे बुरी तरह डराए थी। वह तो हेमंत को तभी से अपने मन-मंदिर मंे किसन-कन्हैया की तरह स्थापित कर रखा था, जब उसने इंटर भी पास नहीं किया था। तब बचपन की दोस्ती शनै-शनै चाहत फिर मुहब्बत में तब्दील हो रही थी। तब तो उसने यह भी नहीं सोचा था कि पतला-दुबला दिखने वाला शख्स इतने बुलंद इरादों का होगा कि जो ठान लिया उसे पूरा करके रहेगा। वह तब भी हेमंत से प्यार करती थी और आज भी सिपर्फ उसी से प्यार करती थी, न कि उसकी सफलता सेे। सच्चा साथी वहीं होता है जो जिंदगी के हर धूप-छांव में साथ रहे। अगर उसे इतनी बड़ी सपफलता नहीं भी मिलती तब भी वह उसे ही अपना जीवनसाथी बनाना पसंद करती, मगर यह तो उसका निर्णय था…

क्रमशः

लेखक- सचिन कुमार सिंह
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