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बंगाल में वक्फ कानून की आड़ में राजनीतिक हिंसा: लाख टके का सवाल-हिंसा क्यों हुई, और रोकी क्यों नहीं गई?

सचिन कुमार सिंह।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ कानून को लेकर भड़की हिंसा ने जब तीन लोगों की जान ले ली, तब यह स्पष्ट हो गया कि अब यह महज कनूनी बहस नहीं रही। यह राजनीति, भावनाओं और सत्ता की जद्दोजहद का विस्फोटक मिश्रण बन चुकी है। वर्ष 2026 में होने वाले विधान सभा चुनाव का मुद्दा सेट करने की मानसिकता है, एक पार्टी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी है, दूसरी पार्टी हिन्दुओं के संेटीमेंट को भुनाने में, मगर इस चक्कर में निर्दोष जानें जा रही हैं। ममता बनर्जी इन मामलों में जिस तरह का बयान दे रही हैं, वह उनकी मंशा पर कई सवाल खड़ी करती है।

शुक्रवार और शनिवार को हुई घटनाओं में मासूम जानें गईं, पुलिसकर्मी घायल हुए, सरकारी संपत्ति जलाई गई और समाज में डर और अविश्वास की एक और खाई गहरी हो गई। लेकिन सवाल यह है, क्या यह सब वाकई केवल वक्फ कानून के खिलाफ आक्रोश था?

📌 वास्तविक कारण या राजनीतिक मंच?
वक्फ कानून को लेकर जो बहस चल रही है, वह कोई आज की बात नहीं है। यह केंद्र सरकार द्वारा पारित कानून है, जिसे लागू करना राज्य सरकार की इच्छा पर निर्भर है। ममता बनर्जी साफ कह चुकी हैं कि यह कानून बंगाल में लागू नहीं होगा। फिर हिंसा क्यों? किसके इशारे पर? हालांकि यह भी सच है कि इस तरह के मामलों में केन्द्र के बनाये कानून ही लागू होंगे।

यहीं से यह पूरा मामला संदेह के घेरे में आता है। क्या यह सब एक पूर्व नियोजित प्रदर्शन था, जिसे आगामी विधान सभा चुनाव 2026 की रणनीति का हिस्सा बनाकर तैयार किया गया? क्या अल्पसंख्यक भावनाओं को भड़काकर वोटबैंक की राजनीति की जा रही है?

⚖️ राजनीतिक बयानबाज़ी और प्रशासनिक चूक
जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह कहती हैं कि यह कानून हमने नहीं बनाया, तो वे खुद को उत्तरदायित्व से अलग कर लेती हैं, लेकिन एक मुख्यमंत्री का कर्तव्य हिंसा रोकना होता है, न कि उसके लिए बहाने गढ़ना।

दूसरी ओर, भाजपा इस मुद्दे को अपने चुनावी फायदे के लिए भुना रही है। बयान दिया जा रहा है कि “हम सत्ता में आए तो पांच मिनट में सब ठीक कर देंगे।” पर क्या ऐसा बयान संवेदनशील इलाके में शांति ला पाएगा, या हालात को और भड़काएगा?

💥 हिंसा का असली खामियाजा
हकीकत यह है कि राजनीति के इस खेल में पीड़ित सामान्य नागरिक हैं, वे लोग जो न तो वक्फ कानून की पेचीदगियों को जानते हैं और न ही दिल्ली या कोलकाता की नीतियों को समझते हैं।
उन्हें चाहिए शांति, सुरक्षा और भरोसेमंद शासन।

🛑 समाधान क्या हो सकता है?
तत्काल केंद्रीय बलों की तैनाती और हिंसा पर ज़ीरो टॉलरेंस।

राजनीतिक दलों पर आचार संहिता कृ हिंसक इलाकों में बयानबाज़ी पर रोक।

वक्फ कानून को लेकर जनजागरूकता और पारदर्शिता।

स्थानीय समुदायों के बीच संवाद के लिए धार्मिक व सामाजिक नेताओं की भूमिका।

निष्पक्ष जांच और पीड़ित परिवारों को न्याय।

वक्फ कानून के नाम पर जलते घर, रोते परिवार और घायल पुलिसकर्मी। यह लोकतंत्र की हार है।
चुनाव जीतने के लिए अगर समाज को बांटकर, भड़काकर और लहूलुहान करके सत्ता हासिल करनी है, तो यह सिर्फ राजनीतिक पतन नहीं, मानवीय मूल्य का अंत भी है।

सवाल यह नहीं है कि कानून कौन लाया?
सवाल यह है कि हिंसा क्यों हुई, और रोकी क्यों नहीं गई?
इस सवाल का जवाब किसी के पास हो तो नीचे कॉमेंट कर सकता है।

 

 

 

 

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