सचिन कुमार सिंह।
सो-कॉल्ड देश प्रेमी व एजेंडामेकर कम लोक गायिका नेहा सिंह राठौर पर केस दर्ज हो गया, इसके पहले उसके बयानों पर देश में खूब बावेला मचा था। अभी मचा हुआ है, केस दर्ज होने के बाद भी नेहा सिंह के तेवर व एजेंडा वहीं है। मतलब जिसे खुद सही-गलत का भान नहीं वह दूसरे को उपदेश देने चली है, पूरे देश वासियों को जबरन अपना एजेंडा चिपकाने का प्रयास तो इसका चलता रहेगा, अब आते हैं मुद्दे पर।
पाकिस्तान की पोस्टर गर्ल
जम्मू-कश्मीर में हालिया आतंकी हमलों के बीच जब देश एकजुटता की जरूरत महसूस कर रहा था, तब लोकगायिका नेहा सिंह राठौर के बयान ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया। नेहा ने सोशल मीडिया पर बिना किसी ठोस प्रमाण के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को सीधे तौर पर हमलों का जिम्मेदार ठहराया और पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष रूप से क्लीन चिट दे दी। इस बयान के बाद पाकिस्तान की मीडिया में नेहा की तारीफों के पुल बांधे गए, जिससे देशवासियों के बीच तीव्र रोष व्याप्त हो गया।
गौरतलब है कि खुद कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी नेहा के बयान पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे संवेदनशील समय में इस तरह के गैर-जिम्मेदार बयान से केवल देश का नुकसान होता है।
एकतरफा सवाल, छुपा एजेंडा?
नेहा सिंह राठौर अक्सर खुद को देशहित में सवाल पूछने वाली कलाकार बताती हैं, परन्तु उनके सवालों का रुख हमेशा केंद्र सरकार, विशेष रूप से भाजपा के खिलाफ रहता है। जब पश्चिम बंगाल या अन्य विपक्ष शासित राज्यों में मानवाधिकार हनन या अराजकता होती है, तब वे चुप्पी साध लेती हैं। यह एकतरफा रवैया बताता है कि कहीं न कहीं उनकी कथित निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
क्या यह देशहित है या देशविरोधी माहौल बनाना?
विशेषज्ञों का मानना है कि लोकतंत्र में सरकार से सवाल करना जरूरी है, लेकिन राष्ट्रीय संकट के समय ऐसी गैर-जिम्मेदार टिप्पणियां दुश्मन देशों को लाभ पहुंचाती हैं। सवाल उठाने और देश की छवि धूमिल करने के बीच की सीमा को समझना हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है।
नेहा के बयानों ने इस समय जब देश शोक और आक्रोश में है, पाकिस्तान को भारत के खिलाफ दुष्प्रचार का एक नया हथियार थमा दिया है। क्या यह वास्तव में देशहित है या विरोध के नाम पर देशविरोध?
जब सवाल देश की अखंडता और सुरक्षा पर उठता है, तब किसी भी नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने शब्दों और कृत्यों से राष्ट्र का मनोबल बढ़ाए, न कि शत्रु को ताकत दे।
नेहा सिंह राठौर के ताजा बयानों ने यह सवाल उठाया है कि
👉 क्या कुछ लोग देशप्रेम के नाम पर सच में देश के खिलाफ खेल रहे हैं?
👉 क्या ये सिर्फ सत्ता-विरोध है या सोच-समझकर फैलाया गया झूठा एजेंडा?
देश अब जाग चुका है, और जनता अब असली देशभक्ति और दिखावे की राजनीति के बीच फर्क करना जानती है। अगर कोई नागरिक बिना किसी ठोस प्रमाण के देश के प्रधानमंत्री या गृह मंत्री को आतंकी हमले जैसे गंभीर मामलों का दोषी ठहराता हैए और अगर वह बयान पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश द्वारा भारत के खिलाफ प्रोपेगैंडा के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैए तो यह निश्चित रूप से राष्ट्रहित के खिलाफ आचरण माना जा सकता है। ऐसे मामलों में नुकसान दो स्तर पर होता है.
आंतरिक नुकसानः देश में जनता के बीच भ्रमए अविश्वास और असंतोष फैलता है।
बाहरी नुकसानः पाकिस्तान या अन्य दुश्मन देश इन बयानों को इंटरनेशनल मंचों पर भारत को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
कानूनी रूप से यदि यह साबित हो जाए कि जानबूझकर झूठ फैलाया गया और इसका उद्देश्य भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नकारात्मक माहौल बनाना था तो
उस पर आईटी अधिनियम के तहत केस दर्ज हो सकता है। कुछ परिस्थितियों में देश की एकता और अखंडता के खिलाफ कार्य करने के आरोप लगाए जा सकते हैं।
नेहा का जो तरीका है
– बिना किसी सबूत के सीधे मोदी-शाह को हमले का जिम्मेदार ठहराना, पाकिस्तान को क्लीन चिट दे देना, आतंकियों की भूमिका को नजरअंदाज करना, और फिर जब आलोचना हो तो गाली-गलौज करना, यह तरीका कभी भी देशहित में सवाल पूछना नहीं माना जा सकता।
-बल्कि इससे तो भारत के दुश्मन देशों को मौका मिलता है यह कहने का कि देखो, खुद भारत के लोग भी यही कह रहे हैं। हमारे सैनिकों और सुरक्षाबलों का मनोबल टूटता है।
-देश के भीतर अविश्वास और अराजकता फैलती है।
अगर तुम्हारे सवाल का फायदा दुश्मन देश को हो और नुकसान अपने देश को, तो
वह सवाल देशभक्ति नहीं बल्कि परोक्ष देशद्रोह बन जाता है।