मोतिहारी। अशोक वर्मा
मोतिहारी नगर के नरसिंह बाबा मठ परिसर में आयोजित संगीतमय श्री चित्रगुप्त दिव्य कथा का उद्घाटन वृंदावन से पधारे पीठाधीश्वर सच्चिदानंद ने दीप प्रज्वलित कर किया। मोतिहारी की प्रसिद्ध महिला चिकित्सिक डॉक्टर हेना चंद्रा ने पीठाधीश्वर का स्वागत किया। पीठ के बिहार प्रभारी शैलेंद्र श्रीवास्तव, जिला प्रचारक रवि भूषण एवं मुख्य अतिथि विनोद श्रीवास्तव के साथ स्थानीय सदस्य राकेश जी, अरविंद श्रीवास्तव ,धनंजय किशोर ,सोनू एवं पवन जी उपस्थित थे । नगर में आयोजित श्री चित्रगुप्त कथा का यह दूसरा आयोजन था जिसे सुनने के लिए काफी भीड़ उमड़ी थी । कार्यक्रम के उद्घाटन के पहले नगर में बड़ा सुंदर शोभायात्रा निकाली गई। गाड़ियों का काफिला के बीच रथ सुसज्जित था जिस पर पीठाधीश्वर डॉक्टर सच्चिदानंद जी बैठे हुए थे। कथा माला के आरंभ में उन्होंने बिहार के लोकनायक जय प्रकाश नारायण ,सच्चिदानंद सिन्हा,एवं अन्य महापुरूष को याद कर भूमि को नमन किया और कहा कि बिहार मेरी प्राथमिकता में है। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि आज मनुष्य ज्यादा दुखी इसलिए है कि दूसरों को दुख दे रहा है। उन्होंने संकल्प कराया कि किसी के भी दुख और समस्या के साथ खड़े रहेंगे। चित्रांश परिवार के साथ आपसी सहयोग रखेंगे । आपसी लड़ाई झगड़ा में समय बर्बाद नहीं करेंगे ।उन्होंने भगवान चित्रगुप्त की महिमा करते हुए कहा की प्रथम तीन शक्तिया हुई जो ब्रह्मा विष्णु महेश के रूप में है और चौथी शक्ति श्री चित्रगुप्त भगवान है। उन्होंने कहा कि पांच तत्वों का शरीर और ब्रह्मांड है। सभी के अंदर भगवान से मिलने की चाहना होती है परंतु भगवान तो हमेशा हम लोगों के साथ ही है सिर्फ उन्हें पहचानने के लिए दृष्टि होनी चाहिए ।उन्होंने कहा कि भगवान का प्रत्यक्ष प्रमाण है पृथ्वी, अग्नि, जल,वायु और आकाश। यही तो भगवान का स्वरूप है ।उन्होंने सनातन का गुण प्रेम सद्भाव और आनंद बताया । उन्होंने इन पांचो तत्वों के पूजन विधि भी बताई। पांच तत्व देकर प्रभु ने इसके उपयोग के लिए अपने स्वरूप की छाया मानव की रचना की और उसे कार्य दिया कि सृष्टि के पशु पक्षी आदि सभी की तुम्हें रक्षा करनी है। मनुष्य को उन्होंने पूरी शक्ति दी जीवों की भाषा को समझने का भी उन्होंने ताकत दिया तथा आदेश दिया कि सभी जीव की रक्षा करें लेकिन मानव धीरे-धीरे दानव बनने लगा और पशु पक्षियों की रक्षा के बजाय उसको आहार बनाने लगा यही से पाप की शुरुआत होती है ।मानव के अंदर दानवी प्रवृत्ति आने लगी ।
भगवान को इसकी चिंता हुई और वे इसके लिए उपाय ढूंढे और फिर उन्होंने पाप पुण्य का दुनिया में सजा भी देना आरंभ किया। उन्होंने कथा के माध्यम से सभी प्रसंगो को बड़े अच्छे ढंग से समझाया ।कायस्थ जाति की उत्पत्ति ब्रह्मा के काया से हुई है उत्पत्ति के साथ ही चित्रगुप्त भगवान के हाथ में कलम दवात था जो ज्ञान का प्रतीक है और इस कलम दवात के द्वारा उन्हें विश्व मे ज्ञान प्रकाश फैलाने का आदेश हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि यमराज चित्रगुप्त का ही अंश है और चित्रगुप्त महाराज यमराज के द्वारा ही किसी को सजा देते हैं ।उन्होंने कर्म को सफलता का आधार बताया और गुणो के आधार से ही कोई मानव देवता तो कोई दानव कहलाता है। डा सच्चिदानंद जी के प्रवचन को सभी एकाग्रचित होकर के सुनी । उन्होने घोषणा की कि कायस्थ परिवार के लोग आपसी लड़ाई झगड़ा भाई-भाई में कटूता, मनमुट्टाव आदि को छोड़कर प्रेम और आपसी सद्भाव लेकर चले ।इसके लिए उन्होंने कहा कि जो कायस्थ परिवार श्री चित्रगुप्त भगवान को मानेगा उनमे आस्था रखेगा वह कभी भी लड़ेगा झगड़ेगा नहीं ।उन्होंने नारी के बदलते स्वरूप पर भी प्रश्न उठाया और कहा कि आज नारी अपने भारतीय नारी की संस्कृति से भटक रही है इस विषय पर उन्हें खुद सोचना होगा ।उन्होंने नारी की महिमा करते हुए कहा कि नारी के अंदर भगवान ने अपार शक्ति दी है। उन्होंने कन्या से पैर छुआने की मनाही की और कहा कि किसी भी कन्या से कभी भी कोई पैर स्पर्श नहीं कराएगा, कन्या का स्थान बहुत ऊंचा होता है ।कार्यक्रम के समापन पर भोग लगाया गया एवं आरती हुई तथा पितृ पूजा का संकल्प लेकर उन्होंने वृंदावन पीठ में स्थापित करने की घोषणा की साथ-साथ उन्होंने यह भी कहा कि परिवार कोई भी कायस्थ परिवार आपसी झगड़ा लड़ाई केस मुकदमा को मेरे पास पीठ में आवे तमाम समस्याओं का समाधान होगा ।कहा कि यह शरीर और समय अनमोल है इसे व्यर्थ लड़ाई झगड़ा में न गंवावे।अपनी ऊर्जा को चित्रगुपत भगवान की पूजा अर्चना मै लगावे एवं उनके संदेश को जनजन तक पहुंचाने में लगाकर अपने जीवन को सार्थक करें।