सचिन कुमार सिंह। विशेष रिपोर्ट
पूर्वी चंपारण की सबसे हाई-प्रोफाइल मानी जाने वाली सीट मोतिहारी विधानसभा (19) इस बार राजनीतिक तापमान के चरम पर थी। बीस वर्षों की सत्ताविरोधी हवा, सोशल मीडिया पर तेज़ होते हमले, भाजपा-जदयू के बागियों की धमक, और सामने देवा गुप्ता जैसा “भारी भरकम” उम्मीदवार।
चुनावी विशेषज्ञों के अनुसार यह वह सीट थी जहाँ भाजपा की हार को लेकर सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा था। कई राजनीतिक पंडितों ने तो मतदान से पहले ही दावा कर दिया था कि “मोतिहारी 19 भाजपा मिस कर सकती है, अगर कहीं सबसे ज्यादा खतरा है तो यहीं।”
लेकिन परिणाम ने सारे दावे और एग्ज़िट पोल की थ्योरी को ध्वस्त कर दिया।
प्रमोद कुमार ने 13 हज़ार से अधिक वोटों के अंतर से एकतरफा जीत दर्ज करते हुए यह साबित कर दिया कि “मुकद्दर का सिकंदर” होना कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि दो दशक की राजनीतिक सफर का निचोड़ है।
अब उन कारणों की पड़ताल करते हैं जिसने भाजपा प्रत्याशी प्रमोद कुमार की जीत को आसान बनाया।
क्या यह सिर्फ देवा गुप्ता की ‘आपराधिक छवि’ के कारण था?’’
देवा गुप्ता की छवि को लेकर चुनाव से पहले ही विरोध बढ़ गया था।
कानूनी केस, स्थानीय विवाद और “दबंग” छवि ने मतदाताओं को भ्रमित किया। वहीं वीआईपी चीफ मुकेश सहनी के बयान – के बोलतई ने भी एक अलग नैरेटिव सेट करने का प्रयास किया। इसे विरोधी पक्ष ने जबरदस्त तरीके से भुनाया।
लेकिन निर्णायक फैक्टर सिर्फ यह नहीं था, यह आधा सच है।
-चुनाव के दौरान चीनी मिल व आयुर्वेद कॉलेज को भी मुद्दा बनाने की कोशिश हुई, मगर यह नैरेटिव अंत समय में काम नहीं आया। अगर एक तबका खफा भी था तो ज्यादातर मतदाताओं को नीतीश-मोदी व स्थानीय सांसद राधा मोहन सिंह के काम पर भरोसा था।
-चौड़ी सड़कें, शहर का विस्तार, अस्पतालों का अपग्रेड, गांधी मैदान, पर्यटन व नगर परियोजनाएँ, पुल-पुलिया, समेत अन्य काम भाजपा सरकार में ही हुए, जिसका फायदा प्रमोद कुमार को भी मिला। इस कारण आम मतदाताओं की नाराजगी कम हुई।
महिला फैक्टर ने भी दिखाया कमाल
इस चुनाव में महिला वोटरों का कमाल भी दिखा, और पिछले चुनावों से औसतन अधिक वोटिंग ने भाजपा प्रत्याशी को जीत के करीब पहुंचा दिया। मोतिहारी में भी पीएम आवास, जीविका, उज्ज्वला, हर घर नल का जल, वृद्धा व विधवा पेंशन, छात्राओं को विशेष प्रोत्साहन राशि ने माहौल बदलने का काम किया। इस कारण प्रत्याशी के खिलाफ वह माहौल नहीं बन पाया जो उनकी हार में तब्दील होता। मोतिहारी विस में भी महिला मतदाताओं की लाइन पुरुष मतदाताओं से अधिक दिखी और चुपचाप कमल छाप वाला नैरेटिव काम कर गया।
4. बीजेपी की संगठनात्मक मशीनरी की अदृश्य पकड़
सोशल मीडिया के “शोर” से अलग, भाजपा का जमीनी तंत्र चुपचाप काम कर रहा था।
बूथ लेवल कमेटी, पन्ना प्रमुख, शक्ति केंद्र, माइक्रो मैनेजमेंट, 20 साल का लगातार नेटवर्क प्रमोद कुमार के लिए काफी कारगर साबित हुआ। देवा गुप्ता को एक तो इस तरह के बड़े लेबल के चुनाव के प्रबंधन का अनुभव नहीं था, दूसरे महागठबंधन की खींचतान के कारण काफी देर से उम्मीदवारी की घोषणा व प्रचार के लिए ज्यादा समय नहीं मिलने का भी खामियाजा भुगतना पड़ा।
देवा गुप्ता की टीम ने हाईटेक प्रचार किया, मगर ग्रामीण क्षेत्र के मतदाता तक उतनी पहुंच नहीं बना सके। वहीं प्रमोद कुमार की टीम मतदाता की एक-एक कड़ी को पकड़ रही थी। उनके पुराने संबंधों का भी फायदा मिला।
बागियों का प्रभाव उतना मारक नहीं रहा, जितना प्रचार किया गया। जदयू और भाजपा दोनों के बागी थे। लेकिन बागियों का असर सोशल मीडिया में “सनसनी” तक रह गया।
ग्राउंड पर “कागज़ी” साबित हुआ। हां, जातीय आधार पर जनसुराज के प्रत्याशी को छह हजार से अधिक वोट जरूर मिले, मगर वे भाजपा प्रत्याशी की जीत की राह नहीं रोक पाये। मतदाता भलीभांति जानते थे कि बागी का वोट डालने का मतलब विपक्ष को फायदा देना है। इस कारण अंत-अंत तक राजद विरोधी मतदाताओं की गोलबंदी हो गई। इसके साथ मोदी व नीतीश के डबल इंजन का भरोसा भी मतदाताओं के बीच पैठ बनाए रहा। नीतीश कुमार का महिला व गरीब केंद्रित काम, शिक्षा,स्वास्थ्य और शराबबंदी ने भी वोट खींचा। डबल इंजन का यह फार्मूला एमवाय, स्वजातीय, साहनी, बाकी व एंटी इनकंबेंसी सबके जोड़ से भारी पड़ गया।
सोशल मीडिया का शोर जमीनी वास्तविकता से अलग
चुनाव विशेषज्ञों का सीधा निष्कर्ष यही निकला कि “मोतिहारी 19 में अधिकतर विरोध व नाराज़गी सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित थी।” गाँवों में, मोहल्लों में, बस स्टैंड, दुकानों, बाजार कहीं भी उतना “नाराज़गी वाला माहौल” नहीं दिखा, जितना ऑनलाइन बताया जा रहा था।
मोतिहारी विस का इतिहास
इस सीट पर साल 1977 में कांग्रेस के टिकट पर प्रभावती गुप्ता ने जनता पार्टी के रघुनाथ गुप्ता को हराया और विधायक (चुनी गईं। साल 1980 में प्रभावती गुप्ता दुबारा विधायक चुनी गईं। इसके बाद 1985, 1990 और 1995 में लगातार 3 बार सीपीआई के त्रिवेणी तिवारी विधायक चुने गए। 2000 में आरजेडी के टिकट पर रमा देवी विधायक चुनी गईं। इसके बाद से लगातार इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा है। बीजेपी के प्रमोद कुमार फरवरी 2005, नवंबर 2005, 2010 और 2015, 2020 व अब 2025 में भी लगातार छठी बार विधायक चुने गए।
2025 में प्रमुख उम्मीदवारों को मिले कुल वोट
देवा गुप्ता को मिले कुल मत- ईवीएम वोट- 91875, पोस्टल-642, कुल- 92517
प्रमोद कुमार- ईवीएम वोट- 105645, पोस्टल- 435, कुल- 1,06,080
मतों का अंतर- 13,563
अतुल कुमार- ईवीएम 6531, पोस्टल- 71, कुल- 6592
दिव्यांशु भारद्वाज- ईवीएम 2059, पोस्टल- 23, कुल- 2082
मोतिहारी (विधानसभा-19) में BJP को पिछले कुछ चुनावों में मिले वोट (मुख्य साल)
| वर्ष | BJP उम्मीदवार | BJP को मिले वोट (लगभग) / वोट शेयर |
|---|---|---|
| 2020 | प्रमोद कुमार | 92,733 वोट, ~ 49.44% वोट शेयर |
| 2015 | प्रमोद कुमार | 79,947 वोट, ~ 47.45% वोट शेयर |
| 2010 | प्रमोद कुमार | 51,888 वोट, ~ 43% वोट शेयर |
| 2005 (nov/ February) | प्रमोद कुमार | लगभग 56,119 वोट |























































