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YM Exclusive : औरंगज़ेब का महिमामंडनः इतिहास से छेड़छाड़ का खतरनाक सियासी खेल

‘छावा’ फिल्म के बाद औरंगज़ेब पर सियासत गर्म, नेताओं की बयानबाजी से ध्रुवीकरण की कोशिश

सचिन कुमार सिंह। संपादक, यूथ मुकाम न्यूज नेटवर्क

महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के नेता अबू आज़मी द्वारा मुगल शासक औरंगज़ेब को महान बताने वाले बयान से सियासी घमासान मच गया। छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी पर बनी फिल्म:छावा’ में औरंगज़ेब की क्रूरता को उजागर किया गया, जिससे एक खास वर्ग के नेताओं को आपत्ति हुई और उन्होंने इतिहास को नए तरीके से परिभाषित करने की कोशिश की। लेकिन सवाल उठता है – क्या यह बयानबाजी इतिहास की पुनर्व्याख्या है या सिर्फ राजनीतिक ध्रुवीकरण का हथकंडा?

राजनीतिक बयानबाजी और इतिहास से छेड़छाड़

महाराष्ट्र विधानसभा में विवादित बयान के बाद अबू आज़मी को सत्र से निलंबित कर दिया गया, लेकिन मामला यही खत्म नहीं हुआ। बिहार में इस साल चुनाव होने हैं, और इसी संदर्भ में एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक अख्तरुल इमाम ने कहा कि औरंगज़ेब को अब तक गलत इतिहास पढ़ाया गया है, असली इतिहास यह है कि उसने अंग्रेजों की तरह देश को लूटा नहीं, बल्कि सेवा की। हिंदू और मुसलमान उसके लिए एक समान थे।
इतना ही नहीं, उन्होंने दावा किया कि औरंगज़ेब ने भारत को अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक एकीकृत किया और अखंड भारत की नींव रखी। जबकि ऐतिहासिक तथ्य इससे अलग कहानी बयां करते हैं।

इतिहास क्या कहता है?

– क्रूरता की मिसालः औरंगज़ेब को एक कट्टर, विस्तारवादी और क्रूर शासक के रूप में जाना जाता है, जिसने सत्ता के लिए अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया, अपने भाइयों को मरवा दिया और सिखों, मराठों, राजपूतों तथा जाटों के खिलाफ कई युद्ध लड़े।
– मुगल साम्राज्य का पतनरू औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल में अधिकांश समय मराठों से संघर्ष में बिताया, जिसके चलते उसकी शक्ति कमजोर हुई और उसके मरते ही मुगल साम्राज्य बिखरने लगा।
– धार्मिक असहिष्णुतारू उसके शासनकाल में मंदिरों का विध्वंस, जबरन धर्मांतरण और जज़िया कर की पुनर्बहाली जैसी नीतियाँ लागू की गईं।

औरंगजेब के शासनकाल पर एक नजर
औरंगज़ेब मुगल साम्राज्य का छठा शासक था, जिसने 1658 से 1707 तक भारत पर शासन किया। उसे क्रूर, कट्टरपंथी और असहिष्णु नीतियों के लिए जाना जाता है। उसकी नीतियों ने मुगल साम्राज्य की नींव को कमजोर कर दिया और उसके शासनकाल में बड़े पैमाने पर विद्रोह हुए। नीचे उसकी क्रूरताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है।

1. पारिवारिक क्रूरता
🔹 पिता को कैद किया – औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहाँ को 1658 में आगरा किले में कैद कर दिया और उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा। शाहजहाँ की मृत्यु तक उसे आज़ाद नहीं किया गया।
🔹 भाइयों की हत्या – सत्ता के लिए उसने अपने सभी भाइयों को या तो मरवा दिया या मार दियार

दारा शिकोह – हिंदू-मुस्लिम एकता का समर्थक और शाहजहाँ का उत्तराधिकारी, औरंगज़ेब ने उसे पकड़कर मार डाला और उसका सिर काटकर अपने पिता को भेजा।
शुजा और मुराद दृ इन दोनों भाइयों को भी खत्म कर दिया ताकि उन्हें सत्ता न मिल सके।
2. धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरता
🔹 हिंदू मंदिरों का विध्वंस – औरंगज़ेब ने कई प्रसिद्ध मंदिरों को नष्ट करवाया, जिनमें प्रमुख हैंरू

काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी) – इसे गिराकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई गई।
केशवदेव मंदिर (मथुरा) – इसे तोड़कर शाही ईदगाह बनाई गई।
सोमनाथ मंदिर – इस मंदिर को भी नष्ट करवाया गया।
🔹 जज़िया कर – हिंदुओं पर 1679 में फिर से जज़िया कर लगाया गया, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर पड़ें।

🔹 गुरु तेग बहादुर की हत्या -सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर ने हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन का विरोध किया, तो औरंगज़ेब ने 1675 में उनका सिर कटवा दिया।

3. जबरन धर्म परिवर्तन और क्रूर अत्याचार
🔹 लाखों हिंदुओं को जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया।
🔹 मारवाड़, मालवा और बंगाल में हिन्दू किसानों पर भारी कर लगाए गए।
🔹 गैर-मुस्लिमों को सरकारी नौकरियों से वंचित किया गया।
🔹 मराठों, राजपूतों और सिखों पर अत्याचार किए गए।

4. विद्रोहों का दौर और अत्याचार
🔹 मराठा विद्रोह – शिवाजी महाराज ने औरंगज़ेब की नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया। शिवाजी को धोखे से आगरा में बंदी बनाया गया, लेकिन वे भाग निकले।
🔹 सिख विद्रोह- गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगज़ेब की नीतियों का विरोध किया।
🔹 राजपूतों से संघर्ष – मेवाड़ और मारवाड़ के राजाओं ने उसके खिलाफ विद्रोह किया।

5. मुगल साम्राज्य का पतन
औरंगज़ेब की कट्टर नीतियों और अत्याचारों के कारण मुगल साम्राज्य की नींव हिल गई। उसने लगभग 27 वर्षों (1680-1707) तक दक्षिण भारत में युद्ध लड़कर अपार धन और सैनिक संसाधन नष्ट कर दिए।

लगातार युद्धों से मुगल खजाना खाली हो गया।
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उसका विशाल साम्राज्य तेजी से बिखर गया।

औरंगज़ेब न केवल एक क्रूर शासक था, बल्कि उसकी नीतियों ने मुगल साम्राज्य के विनाश की नींव रखी। उसने सत्ता पाने के लिए अपने परिवार तक को नहीं बख्शा, हिंदू, सिख, मराठा और राजपूतों पर अत्याचार किए, धार्मिक असहिष्णुता फैलाई और अपने संकीर्ण विचारों से पूरे भारत को अराजकता में झोंक दिया।
आज, इतिहास को तोड़-मरोड़कर औरंगज़ेब को महान बताने की कोशिश सच्चाई से दूर और खतरनाक मानसिकता को दर्शाती है।

वोट बैंक की राजनीति या ऐतिहासिक सच्चाई?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि औरंगज़ेब की प्रशंसा करने वाले नेता एक खास वर्ग के वोट बैंक को साधने के प्रयास में हैं।

धार्मिक और ऐतिहासिक मुद्दों को चुनावी फायदे के लिए भुनाना कोई नई बात नहीं है।

ऐसे बयान जनता की भावनाओं को भड़काने और ध्रुवीकरण करने के लिए दिए जाते हैं।

अगर इतिहास पर चर्चा करनी होती, तो वे अकबर या अन्य मुगल शासकों की बात कर सकते थे, लेकिन औरंगज़ेब पर जोर देना दर्शाता है कि इसका उद्देश्य केवल सियासी लाभ लेना है।

ऐतिहासिक विरासत के साथ खिलवाड़

🚨 औरंगज़ेब को महान बताने की कोशिश इतिहास को तोड़-मरोड़ने और सियासी एजेंडे को आगे बढ़ाने की साजिश लगती है।
🚨 शिक्षा, रोजगार और विकास के मुद्दों से ध्यान हटाकर धार्मिक विवादों में उलझाना एक सुनियोजित चाल हो सकती है।
🚨 औरंगज़ेब के महिमामंडन से समाज में अनावश्यक वैमनस्यता और विवाद बढ़ने की आशंका है।

ऐतिहासिक तथ्यों से स्पष्ट है कि औरंगज़ेब न तो सर्वधर्म समभाव का प्रतीक था और न ही कोई महान शासक। वह अपनी सत्ता के लिए अपनों तक का नहीं हुआ, तो आम जनता के लिए कैसे हो सकता था?

👉 ऐसे विवादित बयानों को राजनीति में फायदा उठाने के लिए दिया जाता है, जिससे समाज में ध्रुवीकरण और टकराव की स्थिति पैदा होती है। जनता को चाहिए कि वह इतिहास की सही जानकारी रखे और ऐसे बयानों के पीछे की मंशा को समझे।

 

 

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