लेखकः सचिन कुमार सिंह
कुर्सी बड़ी कुत्ती चीज है, बड़ों-बड़ों का ईमान डोला देती है। एक बार सत्ता का मालपुआ हजम करने के बाद कोई नेता यह नहीं चाहता कि उसके पिछवाड़े से कुर्सी खिसक जाय। इस कुर्सी को बचाने के लिए वह साम,दाम, दंड, भेद की सारी हदें पार कर जाता है। हम बात कर रहे हैं दिल्ली चुनाव की।
मतदान में अब गिने-चुने दिन बचे हैं और इस चुनाव में जो चीज सबसे ज्यादा चर्चा में है वे है पूर्व सीएम केजरीवाल का वादा, खर्च कम, बचत ज्यादा। उनकी पार्टी का जोर अब बस आम जनता को फ्री की रेबड़ी के फायदे बताने में लग रहा है। वे वादे कई साल पीछे छूट चुके हैं जिनके दम पर इनकी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में एक भूचाल लाया था। मगर आज हालात यह है कि यह दल सिर्फ दिल्लीवालों को सपने दिखाकर सरकार बनाने की पुरजोर कोशिश करती नजर आ रही है।
यह बताया जा रहा है कि आम जनता को हर माह 25 हजार की बचत होगी, फ्री बिजली, पानी, शिक्षा, सफर वगैरह-वगैरह से। मतलब एक वोट के लिए 25 हजार की रेवड़ी। किसी का भी इमान डोल सकता है।
लेकिन इस तरह की राजनीति ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं, जिसका जवाब नहीं ढूंढा गया तो हर दल इस कल्चर को अपनाएंगे और नतीजा सरकारी खजाने की बंपर लूट। हर दल इस कल्चर को अपनाएंगे ही नहीं अपना रहे हैं, भाजपा ने भी इस बार अपने घोषणा पत्र में एक से बढ़कर एक चुनावी वादे किये हैं। मतलब हर दल अब इसी फ्रीबीज की गंगा में डुबकी लगवा कर खुद की चुनावी वैतरणी पार करना चाहता है, तो भविष्य के लिए अच्छे संकेत कदापि नहीं हैं। मतलब टैक्स पेयर्स के पैसे का मनमाना इस्तेमाल।
मगर फी्र की रेवड़ी से खुश होने वाले लोगों को यह पता ही नहीं कि इस दुनिया में कोई चीज मुफ्त में नहीं मिलती, अगर किसी चीज को फ्री का कहकर आपको अपने जाल में फंसाया जा रहा है तो इसका मतलब है कि इस चीज की कोई छुपी हुई कीमत होगी, जिसे भविष्य में आपको ही चुकाना पड़ेगा। और वह कीमत इस मुफ्त की रेवड़ी की कीमत से बहुत ज्यादा होगी। सरकारी खजाने को ऐसी योजनाओं पर खाली किया जाएगा तो संबंधित राज्य व देश का बुनियादी ढांचा चरमरा जाएगा। आइए इसके अच्छे-बुरे पहलू पर एक नजर डालते हैं।
1- कुर्सी की राजनीति: सत्ता बचाने का हर संभव प्रयास
सत्ता हमेशा आकर्षण का केंद्र रही है। राजनीति में “कुर्सी” को बनाए रखने के लिए नेता साम-दाम-दंड-भेद की हर सीमा पार कर जाते हैं।
उदाहरण: दिल्ली चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का वादा – “कम खर्च, ज्यादा बचत”।
जनता को मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, और यात्रा जैसे वादों से लुभाने की कोशिश की जा रही है।
दावा: हर परिवार को ₹25,000 मासिक बचत का फायदा।
2. मुफ्त योजनाओं का छिपा सच: क्या कुछ भी मुफ्त है?
मुफ्त का मतलब:
“दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं है।” फ्रीबीज के नाम पर दी जाने वाली सुविधाएँ टैक्सपेयर्स के पैसे से आती हैं।
छुपी हुई कीमत:
मुफ्त योजनाओं के पीछे बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं में कमी।
यह खर्च दीर्घकालिक रूप से अर्थव्यवस्था को कमजोर करता है।
3. फ्रीबीज के लाभ और नुकसान
लाभ (यदि लक्षित हों):
कमजोर तबके की सहायता।
समाज में समानता और सशक्तिकरण का प्रयास।
नुकसान (जब अंधाधुंध लागू हों):
आर्थिक बोझ:सरकारी खजाने पर अत्यधिक दबाव।
विकास के लिए फंड की कमी।
समाज में निर्भरता:
आत्मनिर्भरता की भावना समाप्त होती है।
लोग मेहनत करने के बजाय सरकार पर निर्भर हो जाते हैं।
टैक्सपेयर्स का असंतोष:
टैक्स देने वाले खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
उनका योगदान सही दिशा में नहीं जाता।
4. राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
वोट बैंक पॉलिटिक्स:
मुफ्त योजनाओं का उपयोग जनता को लुभाने और असली मुद्दों, जैसे शिक्षा और रोजगार, को नजरअंदाज करने के लिए किया जाता है।
युवाओं की भूमिका:
युवा फ्रीबीज को रोजगार का विकल्प मानते हैं।
यह मानसिकता उन्हें आत्मनिर्भर बनने से रोकती है।
5. समाधान: मुफ्त योजनाओं का विकल्प क्या हो सकता है?
चुनाव आयोग की भूमिका:
फ्रीबीज घोषणाओं पर सख्ती से रोक।
इसे वोट खरीदने की रणनीति के रूप में देखा जाना चाहिए।
दीर्घकालिक समाधान:
रोजगार सृजन: स्टार्टअप्स और छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहन।
शिक्षा और कौशल विकास: दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक सुधार के लिए निवेश।
जागरूकता: जनता को फ्रीबीज की दीर्घकालिक हानि और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में शिक्षित करना।
6. क्या फ्रीबीज स्थायी समाधान हैं?
मुफ्त योजनाएँ केवल अल्पकालिक लाभ देती हैं।
देश और समाज की दीर्घकालिक प्रगति के लिए आत्मनिर्भरता और रोजगार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
7. फ्रीबीज का अंत कैसे हो?
-फ्रीबीज की राजनीति का मुख्य उद्देश्य वोट बैंक को मजबूत करना है।
-यदि जनता मुफ्त योजनाओं को प्राथमिकता देती रहेगी, तो राजनीतिक दल इसे जारी रखेंगे।
-यह जरूरी है कि जनता जागरूक हो और दीर्घकालिक विकास के महत्व को समझे।
समाधान:
सरकारों को मुफ्त योजनाओं के बजाय रोजगार, शिक्षा, और बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिए।
चेतावनी:
अगर समय रहते इस तरह की राजनीति पर रोक नहीं लगी, तो देश को आर्थिक बदहाली की ओर बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
निष्कर्ष
सभी लेकिन-परंतु का लब्बोलुआब यही हैं कि इन फ्रीबीज का इस्तेमाल सभी दल बस जनता को ठगने के लिए कर रहे हैं, और इसका एकमात्र उद्देश्य वोटबैंक की राजनीति है। जिसका दीर्घकालिक असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और इसका खामियाजा किसी न किसी रूप में आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा। अगर समय रहते इस तरह की पोलिटिक्स पर रोक नहीं लगी तो देश को कंगाल होते देर नहीं लगेगी। इसलिए वक्त रहते इस दिशा में सार्थक प्रयास की जरूरत है। इसका एकमात्र समाधान है कि चुनाव आयोग तत्काल इस तरह की घोषणाओं पर अपने स्तर से रोक लगाएं और इसे जनता का वोट लेने के लिए रिश्वत के रूप में देखा जाना चाहिए।
आम जनता से अपील
जनता को चाहिए कि वे मुफ्त योजनाओं की अल्पकालिक खुशी को छोड़कर आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता दें।