मोतिहारी। यूथ मुकाम न्यूज नेटवर्क
मरीज बड़े-बड़े अस्पताल का बोर्ड देखकर इस आशा व विश्वास के साथ वहां जाते हैं कि वहां बेहतर चिकित्सा सुविधा मिलेगी, लेकिन वहां जाकर बेहतर इलाज की जगह मौत मिले तो…। न-न, ऐसी घटनाएं अपवाद नहीं, लगातार किसी न किसी हॉस्पिटल में होती रहती है, लेकिन मजे की बात कि कार्रवाई नहीं के बराबर होती है, ज्यादातर मामले मैनेज हो जाते हैं या करने पड़ते हैं। जिला प्रशासन पता नहीं किस वजह से सख्त एक्शन लेने से कतराता है, नतीजतन….।
जिले में निजी अस्पतालों में इलाज के दौरान मौत के मामलों की कड़ी लगातार लंबी होती जा रही है। रहमानिया अस्पताल सहित अन्य पुराने मामलों के बाद अब एक और गंभीर मामला सामने आया है, जिसने निजी स्वास्थ्य व्यवस्था की कार्यप्रणाली और सरकारी निगरानी पर तीखे सवाल खड़े कर दिए हैं। ताज़ा मामला नेशनल हाईवे-28 पर अवधेश चौक के समीप स्थित बिग फोर्ट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल से जुड़ा है, जहां इलाज के दौरान एक मरीज की मौत हो गई।
मृतक अम्बिका नगर निवासी पंकज तिवारी थे। परिजनों के अनुसार, 11 दिसंबर की रात करीब 9 बजे उन्हें बेहतर उपचार के लिए अस्पताल लाया गया था। अस्पताल पहुंचते ही वहां मौजूद चिकित्सकों ने उन्हें इंजेक्शन लगाया, जिसके बाद उनकी स्थिति तेजी से बिगड़ने लगी। आरोप है कि हालत बिगड़ने के बाद ईसीजी कराई गई, लेकिन कुछ ही देर में मरीज की मौत हो गई। मृतक के भाई अधिवक्ता राहुल त्रिपाठी ने कहा कि यहां ले जाने पर पहले तीन इंजेक्शन दिए गये, बाद में एनेस्थिया की सूई पता नहीं किन कारणों से दी गई। और आरोप है कि बिना किसी एक्सपर्ट की निगरानी में इसी इंजेक्शन के ओवरडोज ने मरीज की जान ले ली, जबकि उनकी सिर्फ बीपी बढ़ी थी और पहले से कोई बहुत बड़ी बीमारी का रिकार्ड भी नहीं था। उनका आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन ने हालत बिगड़ने के बाद भी मरीज को घेरे रखा और अन्यत्र रेफर नहीं किया, इस लापरवाही ने एक इंसान की असमय जान ले ली। बहरहाल इस मामले मं एफआईआर हो चुकी है, पुलिस जांच का जिम्मा भी आईओ चंदन कुमार को सौंपा गया है, वे अपनी जांच की गहराई को किस स्तर तक ले जाते हैं ये तो वक्त बताएगा, मगर ऐसे मामलों के लिए जिम्मेदार किसी माने। शासन, प्रशासन, प्रबंधन या खुद मरीज, जो बेहतर इलाज की प्रत्याश में बड़े अस्पतालों में हजारो-लाखों खर्च करने को मजबूर होता है, फिर भी मरीज स्वस्थ होने के बजाय मौत के मुंह में चला जाय तो यह चिंता व चिंतन दोनों का विषय है। मगर अफसोस ऐसे मामले चंद दिनों की सुर्खियों के बाद कहीं दफन कर दिए जाते हैं, आमतौर पर मरीज भी मजबूरी वश चुप रह जाते हैं। और फिर ऐसा मामला सामने आ जाता है।
इंजेक्शन के बाद मौत, पर दवा का नाम तक नहीं बताया
सबसे गंभीर आरोप यह है कि मौत के बाद जब परिजनों ने दी गई दवाओं, इंजेक्शन के नाम और इलाज से संबंधित प्रिस्क्रिप्शन की मांग की, तो अस्पताल प्रबंधन ने कोई भी लिखित रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराया। परिजनों का कहना है कि इलाज से जुड़े दस्तावेज दिए बिना ही अस्पताल प्रशासन ने आनन-फानन में एंबुलेंस के जरिए शव को उनके आवास पर भिजवा दिया।
ओवरडोज इंजेक्शन का आरोप, प्राथमिकी दर्ज
परिजनों ने चिकित्सकों पर ओवरडोज इंजेक्शन देकर इलाज में घोर लापरवाही का आरोप लगाते हुए नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई है। पुलिस के अनुसार, इस मामले में गैर इरादतन हत्या की धारा 106/1 बीएनएसएस के तहत केस दर्ज किया गया है और जांच एक अनुसंधान पदाधिकारी को सौंपी गई है।
रहमानिया से लेकर बिग फोर्ट तक, दोहराया जा रहा पैटर्न?
जानकारों का कहना है कि यह मामला किसी एक अस्पताल तक सीमित नहीं है। इससे पहले रहमानिया अस्पताल और कुछ अन्य निजी नर्सिंग होम में भी इलाज के दौरान मौत के बाद लापरवाही के आरोप लग चुके हैं। जिनकी खबरें अख़बारों में प्रकाशित हुई थीं। वीडियो भी वायरल हुए थे, मगर जांच में क्या हुआ, यह किसी को पता नहीं। अधिकतर मामलों में जांच लंबी खिंचती रही और ठोस नतीजे सामने नहीं आए।
डॉक्टर लॉबी बनाम आम मरीज
इन मामलों में एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि डॉक्टर लॉबी की मजबूती के कारण क्या ऐसे प्रकरणों में सख्त कार्रवाई संभव हो पाती है। पुलिस जांच अक्सर मेडिकल राय और बोर्ड की रिपोर्ट पर निर्भर होती है। जब इलाज का पूरा रिकॉर्ड ही उपलब्ध नहीं कराया जाता, तो जांच सीमित दायरे में सिमट जाती है और पीड़ित परिवार न्याय के लिए भटकता रह जाता है।
इकलौते कमाऊ सदस्य की मौत, परिवार बेसहारा
पंकज तिवारी अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्य थे। उनके निधन के बाद पत्नी के साथ दो नाबालिग पुत्रियां और एक नाबालिग पुत्र पीछे रह गए हैं। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है और भविष्य को लेकर गंभीर चिंता बनी हुई है।
पुलिस जांच ही आखिरी उम्मीद?
फिलहाल इस पूरे मामले में सबकी निगाहें पुलिस जांच और चार्जशीट पर टिकी हैं। सवाल यह है कि क्या इलाज से जुड़े रिकॉर्ड न देने जैसे अहम बिंदुओं को जांच में गंभीरता से लिया जाएगा, या यह मामला भी पिछले मामलों की तरह समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा। यह घटना न केवल एक परिवार के न्याय का सवाल है, बल्कि मोतिहारी में तेजी से फैल रहे निजी अस्पतालों की जवाबदेही, पारदर्शिता और सरकारी नियंत्रण की भी सख्त परीक्षा है।





























































