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प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक पिताश्री ब्रह्माबाबा की 54 वें अव्यक्त दिवस 18 जनवरी पर विशेष

&अव्यक्त होने के पहले संपूर्ण निराकारीए निर्विकारी तथा निरहंकारी स्वरूप बन गए थे ब्रह्मा बाबा।
..विश्व परिवर्तन एवं शांति के महानायक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा

मोतिहारी। बीके अशोक वर्मा।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक महान आत्मा प्रजापिता ब्रह्मा बाबा अपने विशेष अलौकिक शक्ति एगुण एवं श्रेष्ठ कार्यों के कारण विश्व भर में काफी प्रसिद्धि पाई । परमात्मा ने इनके तन का आधार लेकर ईश्वरीय ज्ञान से दुनिया वालों को अवगत कराया।
सिंध प्रांत के एक कृपलानी परिवार में 15 दिसंबर 1876 में ब्रह्मा बाबा का जन्म हुआ था । उनका लौकिक नाम लेखराज था।इनके पिता शिक्षक और अति धर्म परायण थे। शिक्षक पुत्र होने के कारण बाल्यकाल से ही लेखराज गुण आधारित शिक्षा के प्रति जागरूक थे। इनके माता.पिता दोनों श्रीनारायण के परम भक्त थे । अध्यात्म का प्रभाव दादा लेखराज पर बचपन मे हीं पड़ा।ये पिता माता के साथ हमेशा श्रीनारायण की भक्ति में लीन रहते थे। बाल्यकाल में हीं इनके माता पिता का साया उठ गया और ये अपने संबंधी के व्यवसाय में मदद करने कोलकाता पहुंच गये ।अपनी इमानदारीए कुशल व्यवहारए मृदुभाषिता एवं अन्य गुणों के कारण हीरे और सोने चांदी के व्यापार में दिनों दिन काफी आगे बढ़ते गये।युवा अवस्था मे आते पुरी तरह से हीरा के व्यापार मे जम गये। व्यवसाय के सिलसिले में राजा महाराजाओं के संपर्क में रहने का इनको अक्सर मौका मिलता था। व्यवसाय में ईमानदारी तथा आध्यात्मिक व्यक्तित्व होने के कारण राजा महाराजा भी इनकी काफी इज्जत करते थे । कई राजाओं ने अपने अनुभव में इन बातों को कहा है कि जब भी हम लोग इनको देखते थेए इनमें कुछ अलौकिकता नजर आती थी। साधारण मनुष्य के रूप में ये नही दिखते थे ।
लेखराज जी का गीता ग्रंथ प्रिय पुस्तक था ।हमेशा गीता को अपने साथ रखते थे एयहां तक कि उसका एक छोटा सा लॉकेट बनाकर गले में लटकाए रहते थे ।गुरुओं के प्रति इनमें बड़ी आस्था और श्रद्धा रहती थी। अपने जीवन में उन्होंने कुल 12 गुरु किए थे। धर्म परायणता के कारण उनका घर एक सत्संग स्थल के रूप में परिवर्तित हो गया था ।सगा संबंधी आस.पड़ोस के लोग इनके सत्संग में बैठते थे और इनके दिव्य प्रतिक्रमण का लाभ उठाते थे ।19 37 में एक बार एक सत्संग के दौरान दादा लेखराज अपने आप में असहजता महसूस किए। सत्संग से उठकर बगल के अपने कमरे में एकाग्र चित्त होकर बैठ गए। तब उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण वृतांत हुआ। उनकी धर्मपत्नी एवं बहू ने देखा कि दादा के नेत्रों में इतनी लाली थी जैसे उनके अंदर कोई लाल बत्ती जल रही हो। दादा का पूरा कमरा भी प्रकाशमय हो गया था। इतने में एक आवाज ऊपर से आती हुई मालूम हुई जैसे कि दादा के मुख से दूसरा कोई बोल रहा हो। आवाज के शब्द थे. निजानंद स्वरूपं शिवोहम् शिवोहम् एज्ञान स्वरूपं शिवोहम् शिवोहम्ए प्रकाश स्वरूपमं शिवोहम् शिवोहम्। फिर दादा के नेत्र बंद हो गए। कुछ क्षण के पश्चात जब उनके नेत्र खुलें तो वे कमरे में आश्चर्य से चारों ओर देखने लगे। उनसे जब पूछा गया कि वे क्या देख रहे हैं तो उनके मुखारविंद से ये शब्द निकले ..वह कौन था एक लाइट थी ।कोई माइट शक्ति थी। कोई नई दुनिया थी ।उसके बहुत ही दूर ऊपर सितारों की तरहह कोई थे और जब वे स्टार नीचे आते थे तो कोई देवी राजकुमार बन जाता था तो कोई देवी राजकुमारी बन जाती थी। उस लाइट और माइट ने कहा कि ऐसी हीं दुनिया तुम्हें बनानी है। परंतु मैं ऐसी दिव्य दुनिया कैसे बना सकूंगाघ्.. वह कौन था घ्कोई माइट थीए एक लाइट थी।
दरअसल वह शक्ति सुपर पावर थी ए जो अपनेष्योग्य टॉय पात्र पात्र दादा लेखराज मैं अवतरित होकर नहीं सतयुगी दैवी सृष्टि की पुनर्स्थापना के निमित बनाकर उनको संपूर्ण निर्देश दिया था। अब दादा लेखराज नई सतयुगी स्वर्णिम दुनिया निर्माण के परमात्मा शिव के कार्य के साकार माध्यम बने। ज्योतिबिंदु परमात्मा शिव ब्रह्मलोक से आकर दादा के तन में प्रविष्ट होते है और उनके मुख द्वारा ज्ञान और योग के ऐसे अद्भुत रहस्य सुना कर चले जाते हैं जो प्रायरू लुप्त हो चुके थे। दादा लेखराज शिवोहम शिवोहम उच्चारण के दौरान अपने आप में अतिंद्रीय शुख का अनुभव करते रहे। उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि दिव्य शक्ति परमपिता परमात्मा मुझे मिल गयेए। अगले दिन वे अपने गुरु के पास गए। गुरु से कहा कि आपकी कृपा से मुझे परमात्मा मिल गए और उनकी पधार मणि मेरे शरीर में हुई ।गुरु ने समझ लिया और कहा कि नहीं मेरा इसमें कोई योगदान नहीं है आपके भक्ति का फल भगवान ने आपको दिया और उन्होंने आपके शरीर को अपना रथ बनाकर उसमें प्रवेश किया। दादा लेखराज वापस लौटेए घर में वे हर समय खोए .खोए रहने लगे लेकिन वे निश्चिंत हुये कि परमात्मा ने मेरे तन को चुना है। उन्होंने शिव बाबा से पूछा और उनसे दिशानिर्देश ली।शिव बाबा ने उनको बताया कि आपको नई सतयुगी दुनिया बनाने की जिम्मेवारी दी जा रही है । शिव बाबा ने उनका नामकरण प्रजापिता ब्रह्मा बाबा रखा और सतयुगी दुनिया बनाने की जिम्मेवारी उनको दी ।शिव बाबा ने अपने गुणों और शक्तियों को ब्रह्मा बाबा को देकर यज्ञ को आगे बढ़ाया । विशेष शक्ति संपन्न बनने पर बाबा अपने व्यवसाय को समेटकर यज्ञ में समर्पित हो गए। जो भी चल अचल संपत्ति थी उसे यज्ञ के 8 माताओं के नाम एक ट्रस्ट बनाकर उनके चरणों में समर्पित कर दिया। उस ट्रस्ट में उन्होंने अपने लौकिक परिवार के किसी सदस्य को नहीं रखा।
अमूमन देखा जाता है किसी भी संस्था का गठन चंदा एवं धन संग्रह करके किया जाता है लेकिन ब्रह्मा बाबा ने अपने तमाम चल अचल संपत्ति को ब्रह्माकुमारीज संस्था के यज्ञ मे लगा दिया। उन्होंने माताओं का मान सम्मान भी बढ़ाया ।उन्होंने उस दौर में माताओं के कंधे पर जिम्मेवारी का कलश रखा जब विधवा एवं सती प्रथा का प्रचलन जोरों पर था। नारी को नर्क का द्वार एवं पैरों की जूती समझा जाता था। ऐसे दौर में बाबा ने नारी का मान सम्मान बढ़ाया और वंदे मातरम शब्द को चरितार्थ किया।बाबा ने संस्था की पूरी जिम्मेवारी उनके कंधों पर रखी।पूरी दुनिया में ऐसा कोई मिशाल नहीं है जहां किसी अध्यात्मिक संस्था का बागडोर नारी शक्ति के हाथों में हो। 1937 मे स्थापना के बाद 14 वर्षों तक 350 समर्पित भाई.बहन गहन योग तपस्या और साधना में लीन रहे।एवे दुनिया से बिल्कुल कटे रहे एऔर अपने अंदर परमात्मा की शक्ति लगातार भरते रहे। इस बीच संस्था को आर्थिक तंगी का का दौर भी झेलना पड़ा। पवित्रता के प्रश्न पर संस्था को विरोध भी झेलना पड़ा एलेकिन जिस संस्था की स्थापना स्वयं परमात्मा ने की उसे भला कौन रोक सकता था। गीता के शब्द काम महा शत्रु है को संस्था ने चरितार्थ किया। संस्था के नव निर्माण कार्य में आंधी तूफान भी आई लेकिन कोई भी वत्स हिले डूलेनहीं एपरेशानियां आई और अपने समय पर चली भी गई। संस्था के कार्यों को लोगों ने स्वीकारा और इस तरह संस्था की जीत हुई और यज्ञ दिनोंदिन आगे बढ़ने लगा। इस बीच देश 1947 में आजाद हुआ। आजादी के बाद पाकिस्तान के कराची में संस्था निर्बाध गति से चलती रही। वहां के मुस्लिम अधिकारियों एवं निवासियों का भी समर्थन मिलता रहाए लेकिन 1950 में ईश्वरीये निर्देशानुसार संस्था का हस्तांतरण कराची से भारत के माउंट आबू राजस्थान मे हुआ।लौटते समय कराची के मुसलमान भाइयों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना भी किया कि आप लोग क्यों जा रहे हैंघ् क्या हम लोगों से कोई कष्ट हुआघ् बाबा ने कहा नहीं आप तो हमारे भाई हैं परमात्मा के निर्देशानुसार हम लोग नई जगह भारत मे जा रहे हैं। इस तरह से यह संस्था माउंट आबू में स्थानांतरित हुई और इसका नामकरण प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पड़ा । भारत आने के बाद ब्रह्मा बाबा ने शिव शक्तियों को परमात्म संदेश देने के लिए भारत के कोने .कोने में भेजा ।जिन्होंने भी इस परमात्म ज्ञान को अपने जीवन में संपूर्ण रूप से धारण किया वे ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाये।
योग तपस्या और साधना और सेवा से बाबा का व्यक्तित्व इतना शक्तिशाली बन गया था कि उनके संपर्क में आने वालों को दिव्य अनुभूतियां होने लगी थी।
यज्ञ आरंभ वर्ष 1936 में यज्ञ में एक 16 साल की राधे नाम की कन्या आई। राधे अपने विशेष गुण और दिव्य शक्ति संपन्न तथा मातृत्व करुणा दया और क्षमाशीलता आधारित पालना देने के कारण यज्ञ में आने के चंद माह के अंदर ही सभी की मां बन गई । सभी ब्रह्मा वत्स उनको मम्मा कह कर पुकारने लगे। ओम राधे मम्मा सत्संग आरंभ होने के पहले बहुत ही सुंदर ओम ध्वनि का उच्चारण करती थी। आरंभ में संस्था का नाम ओम मंडली था। प्रतिदिन सतसंग के दौरान वहां बैठे सभी भाई बहन परमात्मा के मिलन की गहन अनुभूति करते थे।सभी ध्यान में चले जाते थे और काफी समय तक ध्यान में लीन रहते थे । यज्ञ में आते ही ब्रह्मा बाबा ने राधे से पूछा था कि राधे आप भविष्य में पितांबर धारी के साथ रहेंगे या सूट बूट वाले के साथ जाएंगेघ् मम्मा को जवाब के लिए बाबा ने 24 घंटे का समय दिया था लेकिन राधे ने तत्क्षण जवाब दिया कि मैं कृष्ण की वही राधे हूंए मैं पितांभरधारी के साथ रहूंगी।
मम्मा ने अपनी सेवा और पालना अति अनोखे और प्यार भरे अंदाज में दी । मम्मा की पालना इतनी मातृत्व भरी थी कि यज्ञ के सभी वत्सो ने लगातार अध्यात्मिक शक्ति संपन्नता का अनुभव किया। सभी उन्हें मम्मा कह कर पुकारते थे। यहां तक कि ब्रह्मा बाबा और उनकी जुगल यशोदा माता भी उनको मम्मा ही कहते थे। संस्था का दिनोंदिन देश के अलावा विश्व के अनेक देशों में विस्तार होने लगा ।
ब्रह्मा बाबा की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनमें निरंहकारिता कूट. कूट कर भरी थीए संस्था का हर कार्य बिल्कुल पारदर्शी था। बाबा हर कार्य को शिव बाबा का कार्य समझ करते थे। वे कहते थे कि हुकुमी हुकुम चला रहा है। वे किसी भी सेवा कार्य के लिये किसी को भी निर्देश या ऑर्डर नहीं देते थेए बल्कि स्वयं अपने हाथों से उस कार्य को करके यज्ञ के भाई बहनों को प्रेरणा देते थे।
दरअसल ब्रह्मा बाबा एवं ओम राधे मम्मा को शिव बाबा ने एक उदाहरण के रूप में यज्ञ के भाई बहनों के साथ दुनिया वालों के समक्ष प्रस्तुत कर उन्हें यह निर्देश दिया कि तुम सभी को इनके समान बनना है। ब्रह्मा बाबा के नक्शे कदम पर ब्रह्मा बच्चों ने अपने आपको यज्ञ के लिए समर्पित किया और जिस निष्ठा विश्वास के साथ बाबा ने माताओं को आगे कियाए माता बहनों एवं भाइयों ने बाबा के अरमानों को पूरा किया। यज्ञ में शामिल ब्रह्मा वत्सो की पालना बाबा और मम्मा ने बड़े ही लाड प्यार से की । आज के दिन में यह संस्था विश्व के 140 देशों में भारत का आध्यात्मिक ज्ञान दे रही है। संस्था अपने 21 प्रभागो के द्वारा आध्यात्मिक सशक्तिकरण का कार्य कर रही है। संस्था का मूल आधार पवित्रता हैए जिसमें कामए क्रोधए लोभ एमोह और अहंकार पर अपने योग तपस्या के बल पर विजय प्राप्त करना है। संस्था का मूल कार्य चरित्र निर्माण है जिसके लिए परमात्मा सभी ब्रह्मा वत्सो में शक्ति भर रहे हैं और संस्था भारत मे दस हजार सेवा केंद्रों और एक लाख से ज्यादा बीके पाठशालाओं के द्वारा ईश्वरीय संदेश देने के साथ मूल्यों को पुनर्स्थापित कर रही है । देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल ब्रह्मा कुमारी संस्था से काफी करीब रहे है । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी संस्था को कई कार्यों की जिम्मेदारी दी है। देश के विभिन्न प्रांतों में सेवारत एक दर्जन से अधिक महामहिम राज्यपाल एकई केंद्रीय मंत्री तथा राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री समेत अन्य मंत्री गणए देश के कई शंकराचार्यए बड़े.बड़े न्यायधीशोए राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सामाजिक संस्था के सम्मानित लोगों के अलावा फिल्म से जुड़े कई ख्याति प्राप्त कलाकारों ने संस्था द्वारा विश्व भर में मूल्यों को पुनर्स्थापित करने के कार्य की काफी सराहना की है ।वर्षों पूर्व संस्था के तत्कालीन मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी जी को स्वच्छता अभियान का ब्रांड अंबेसडर बनाया था ।वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम द्रोपदी मुर्मू स्वयं ब्रह्मा कुमारी हैं।
18 जनवरी 1969 में संपूर्णता को प्राप्त कर ब्रह्मा बाबा अव्यक्त हुए। ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद दादी प्रकाशमणि अंतरराष्ट्रीय हेड बनी उसके बाद 2007 में दादी प्रकाशमणि ने शरीर छोड़ी फिर दादी जानकी जी मुख प्रशासिका बनी 2021 में दादी जानकी जी ने सभी छोड़ी तब से दादी रतन मोहिनी जी संस्था की मुख्य प्रशासिका है। संस्था की बिहार झारखंड प्रभारी राजयोगिनी बीके रानी दीदी 6 वर्ष की उम्र में यज्ञ में शामिल हुई और उन्होंने साकार ब्रह्म बाबा से पालना ली। पंजाब के मूलनिवासी रानी दीदी की मां पुष्पाल दादी भी यज्ञ में समर्पित थी ।ब्रह्मा बाबा ने रानी दीदी मे विशेष गुण एवं शक्ति भर यज्ञ सेवा में उनको लगाया। बाल्यकाल में गीत गाकर बाबा को सुनाती थी बाबा ने उस समय ही यह समझ लिया था की रानी दीदी जी यज्ञ के लिए अति महत्वपूर्ण सेवा धारी बन यज्ञ को आगे बढ़ाएंगी। रानी दीदी जी भाषण लिखकर बाबा को सुनाती थी। रक्षाबंधन पर भी उन्होंने बाबा को अपना भाषण सुनाया थाएबाबा काफी प्रसन्न हुए थे । बाबा से मिले विशेष वरदान एवं शक्ति के बदौलत आज रानी दीदी जी द्वारा बिहार के भगवानपुर में बहुत बड़ा रिट्रीट सेंटर का निर्माण कार्य चल रहा है जो भविष्य में बिहार के लिए एक ऊर्जा स्थल के साथ दर्शनीय स्थल बन जाएगा। परिवर्तन के समय वह स्थान ब्रह्मावत्सो के लिए अति सुरक्षित स्थल रहेगा ।
बाबा ने रानी दीदी को वतन का सैर भी कराया था।बाबा मम्मा की पालना में रहने से दीदी जी शक्ति संपन्न हुई और आज उस शक्ति के बदौलत बिहार और झारखंड में संस्था काफी विस्तार को पा रही है ।दीदी जी की पालना मे बिहार में आई बहार का नारा चरितार्थ हो रहा है।

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