Home न्यूज गाँधी संग्रहालय का विकास कर अपनी सामाजिक जवाबदेही निभाएः प्रसाद रत्नेश्वर

गाँधी संग्रहालय का विकास कर अपनी सामाजिक जवाबदेही निभाएः प्रसाद रत्नेश्वर

मोतिहारी। अशोक वर्मा
महात्मा गाँधी स्मारक एवं संग्रहालय परिसर की स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है। इसके सचिव का निधन एवं इस पद पर तीन महीने बाद भी मनोनयन नहीं होने से यह वीरान पड़ा है। परिसर में झाड़ियाँ उग आयी हैं। आयोजन ठप है। इधर इस परिसर के एक बड़े हिस्से में बने प्रशाल एवं अतिथिगृह को बिहार सरकार के कला-संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा संचालित आम्रपाली प्रशिक्षण केंद्र श् को सौंप दिये जाने की संभावना से
इसके ऐतिहासिक स्वरूप पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं। गौरतलब है कि कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने अपने ज्ञापांक-629 दिनांक- 9.12.24 के द्वारा 20 ज़िलों में आम्रपाली प्रशिक्षण केंद्र के कार्यालय की स्थापना हेतु 40 लाख रुपये की निकासी की स्वीकृति दे दी है। पूर्वी चंपारण हेतु राशि संचिकाधीन है।
सर्वविदित है कि प्रशाल का निर्माण गाँधी जी एवं चम्पारण सत्याग्रह पर निर्मित फिल्मादि के प्रदर्शन तथा सेमिनारों के आयोजन के लिए किया गया है। इसके साथ ही अतिथिगृह का निर्माण देश-विदेश से आने वाले गांधीवादियों को ठहरने के लिए किया गया है।
यह परिसर न केवल गांधीवादियों बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों एवं आम आदमी के लिए भी एक पवित्र स्थान है। एक तीर्थ है। इसी से प्रभावित होकर मोतिहारी रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बापूधाम मोतिहारी किया गया है। अंग्रेजी शासन काल में यह एसडीओ कोर्ट था। जो 1934 के भूकंप में ध्वस्त हो गया। यह स्थान भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण इसलिए है कि 18 अप्रैल, 1917 को गाँधी जी ने यहाँ अंग्रेजी सल्तनत के खि़लाफ़ अपना पहला बयान दर्ज कराते हुए चम्पारण छोड़ने एवं अपनी जमानत लेने से इनकार कर दिया था। उनके इस बयान को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में श् ऐतिहासिक बयान श् के नाम से जाना जाता है। इसी स्मृति में इस परिसर में 48 फ़ीट ऊँचे गाँधी स्मारक स्तम्भ का निर्माण कराया गया है। अनूठे स्मारक स्तम्भ की ऊँचाई 48 फ़ीट इसलिए रखी गयी कि गाँधी जी पहली बार जब चम्पारण आये तो उस समय उनकी उम्र 48 वर्ष थी। जिस जगह पर गाँधी जी पेश हुए थे, उस जगह की स्मृति में बनाये गये स्मारक का डिजायन शांति निकेतन के प्रसिद्ध मूर्तिकार नंदलाल बोस ने किया था। इसकी आधारशिला 10 जून, 1972 को तत्कालीन राज्यपाल देव कांत बरुआ ने रखी थी जबकि इसका उदघाटन 18 अप्रैल, 1978 को विद्याकर कवि ने किया। यह बिहार का पहला और देश का तीसरा एकरूप गाँधी स्मारक स्तम्भ है। आये दिन देश भर से श्रद्धालु- शोधार्थी इसे देखने आते हैं। यहाँ गाइड की नियुक्ति नहीं होने के बावजूद पट्टिकाओं पर लिखे गाँधी जी के बयान, उनके चित्रादि, नील के पौधों को देखकर उनके योगदान से परिचित होते हैं।
यह भी सही है कि यह परिसर अपने वास्तविक स्वरूप में कभी नहीं आ पाया। इस परिसर में निर्देशानुसार सुबह-शाम गाँधी जी के प्रिय भजनों को गाए-बजाये जाने के अलावे प्रतिदिन दृश्य-श्रव्य माध्यम से गाँधी जी से जुड़े प्रसंग एवं चम्पारण यात्रा को दिखाया जाना था। गांधीवादी साहित्य से एक समृद्ध पुस्तकालय का संचालन किया जाना था। नहीं हो सका। एक छोटा पुस्तकालय है किंतु पाठक नहीं हैं। सदस्य बनाये जाने की प्रक्रिया भी व्याहारिक नहीं है। इस परिसर में लगी गाँधी जी की बड़ी प्रतिमा, चम्पारण में गाँधी जी को लाने का श्रेयप्राप्त पंडित राजकुमार शुक्ल की मूर्ति सहित अन्य दर्शनार्थ वस्तुओं पर से धूल हटाने वाला कोई नहीं है। यहाँ लगे झूलों पर बच्चे झूलकर चले जाते हैं। प्रेमियों का जोड़ा बदस्तूर एकांत खोजता है। सुरक्षा की घोर कमी और कर्मचारियों का अल्प मानदेयभोगी होने का रोना लगा रहता है।
2009 में चीन की अपनी शोध-यात्रा के क्रम में मैंने वहाँ देखा कि अपने शहर और गाँव-गिरांव में स्थित धरोहर एवं विरासतों की देखभाल अपनी सामाजिक जवाबदेही के अन्तर्गत निकटतम विश्वविद्यालय कर रहे हैं।
यहाँ तक कि वहाँ की लोक परम्परा व स्थानीय कला-संस्कृति सम्बंधित शोध, प्रलेखन, प्रकाशन एवं प्रदर्शन का उत्तरदायित्व भी विश्वविद्यालयों ने ले रखा है।
मोतिहारी में इस तरह की भूमिका का सहज निर्वाह महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा किया जा सकता है। किया जाना चाहिए।
खुशी की बात है कि इस विश्वविद्यालय में गाँधी विचार विभाग कार्यरत जहाँ गाँधी जी पर शोध-कार्य होते हैं।
महात्मा गाँधी स्मारक एवं संग्रहालय एक राष्ट्रीय धरोहर एवं ऐतिहासिक स्थल है। आवश्यकता है इसे संरक्षित कर आलोकित करने की।

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