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ब्रह्मकुमारी की यज्ञ माता मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती की 60 वीं पुण्य स्मृति दिवस 24 को

मोतिहारी। अशोक वर्मा
ब्रह्माकुमारीज के राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ जिसका शुभारंभ ड्रामा प्लान अनुसार 1936 में स्वयं परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने भारत की भूमि पर साधारण दादा लेखराज के तन मे अवतरित होकर आरंभ किया था। अवतरण के बाद शिव बाबा ने दादा लेखराज का नाम ब्रह्मा रखा। उस समय अज्ञानता के अंधेरे में दुनिया पूरी तरह से कैद थी। बहुतो ने इस महान घटना के महत्व और वास्तविकता को नहीं समझा और इस यज्ञ तथा नए ज्ञान का जोरदार विरोध किया लेकिन धर्म परायण बाबा जरा भी डगमग नही हुये । गीता ग्रंथ में बताए गए यदा यदा ही धर्मस्य— के समय पर शिव बाबा का अवतरण भारत की भूमि पर तय शरीर मे हुआ।ब्रह्मबाबा बाल्यकाल से ही अति धर्म परायण थे ,गीता पाठी थे,12 गुरू किये थे।वे सत्संग भी करते थे।परमात्म प्रवेशता के बाद उनके सत्संग में काफी लोग आने लगे ।धीरे- धीरे यज्ञ में काफी संख्या में भाई-बहन आ गये।ब्रह्म वत्सो के पालना के लिए यज्ञ माता की जरूरत महसूस होने लगी।इसी बीच परमात्मा द्वारा रचित यज्ञ मे 17 वर्षीय राधे नामक कन्या की प्रवेशता हुई ।बाबा ने उन्हे देखते ही पहचान लिया कि यह तो जगदंबा सरस्वती की आत्मा है। बाबा को देखकर राधे को भी ऐसा लगा मानो उसे मंजिल मिल गई।उसे जिनकी तलाश थी वे मिल गये। राधे एक टक से बाबा को निहारती रह गई।इस तरह से राधा बाबा के सत्संग में प्रतिदिन आने लगी। राधा ओम की विशेष प्रतिकंपित ध्वनि निकालती थी। उस ध्वनी को सुनते ही सत्संग मे बैठे भाई बहन मंत्र मुग्ध हो जाते थे ।राधे की ख्याति चारो तरफ होने लगी और काफी लोग बाबा के सत्संग में आने लगे ,धीरे धीरे काफी भीड़ होने लगी । इस बीच राधे के परिवार वाले राधे की शादी की चर्चा करने लगे और तैयारी में जुट गए। एक दिन राधे ब्रह्मा बाबा के साथ सत्संग में बैठी थी। बाबा ने पूछा कि राधे क्या तुम सूट बूट वाले के साथ जाओगी या पीतांबर धारी के साथ रहोगी? मैं तुम्हें 24 घंटे का समय देता हूं सोच कर बता देना ।राधे ने तत्क्षण कहा बाबा मैं तो कृष्ण की वही राधे हू ,बाबा मैं तो पीतांबर धारी के साथ ही रहूंगी। इस तरह से बाबा ओम राधे का उत्तर सुनकर संतुष्ट हुए और राधे यज्ञ में समर्पित हो गई। ओम के प्रतिकंपन युक्त ध्वनि निकालने के कारण राधे को सभी वत्स ओमराधे से संबोधित करने लगे थे। यज्ञ मे समर्पित होने के बाद अचानक राधे की शारीरिक बनावट मे तेजी से परिवर्तन होने लगी, 17 वर्षीय कन्या मां के स्वरूप मे आ गई और सभी उन्हे मम्मा कहने लगे।मम्मा ब्रह्म बच्चो की पालना अपने विशेष गुणो द्वारा करने लगी ।नई दुनिया के निर्माण कार्य के निमित्त ब्रह्मा बाबा के साथ मम्मा ने हमेशा ष्हांजीष् का पार्ट बजाया।यज्ञ मे आते ही मम्मा मे बाबा के प्रति पूर्ण निश्चय हो गया।बाबा की हर बात को उन्होने भगवान की बात माना। यज्ञ के सभी भाई-बहन उन्हें मम्मा कह कर पुकारते थे यहां तक कि ब्रह्मा बाबा और उनकी युगल यशोदा माता भी उन्हें मम्मा ही कह कर पुकारती थी। जिस भारतीय संस्कृति का सम्मान आज देश और विश्व करता है,उस संस्कृति के स्वरूप को शिव बाबा ने ब्रह्म बाबा और मम्मा के स्वरूप मे दिखाया। यद्यपि बाबा और मम्मा को यज्ञ में शामिल ब्रह्म वत्स आरंभ मे ही पहचान गये, भल दुनिया वालों ने आरंभ मे इस नये ज्ञान का मजाक उडाया लेकिन उनका वह मजाक धीरे-धीरे निश्चय में बदलता गया। 1936 में बाबा ने कहा था कि अणु बम बनेगा और उससे ही दुनिया का विनाश होगा तब दुनिया वालों ने इस बात का मजाक उड़ाया था, लेकिन जब 1945 में जापान के हिरोशिमा में बम गिरा तो दुनिया वालों ने कहा कि अरे अणुबम की बात तो ब्रह्माकुमारी वाले बहुत पहले कहा था और हम लोगों ने उसे हल्का रूप में लिया था। इस तरह से ब्रह्माकुमारी संस्था के प्रति लोगों में धीरे-धीरे निश्चय होने लगा ,जो लोग विरोधी थे सभी धीरे-धीरे यज्ञ में आने लगे उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वे संस्था के अंग और समर्थक बनते गए।यज्ञ माता मम्मा की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे भारतीय नारी की संपूर्ण स्वरूप थी जिसे भारत माता कहा जाता है।वही संपूर्ण स्वरूप और गुण बाद में भारतीय नारी का आभूषण कहलाया ।भारतीय नारी के जिन गुणो के कारण आज भी दुनिया मे खाशकर भारत मे नारी की महिमा है उसे शिव बाबा ने मम्मा के अंदर पूरी तरह से भरी थी ।मम्मा के चेहरे में एक विशेष आभा थी, उनके नैनों में मातृत्व था,चेहरे चलन और व्यवहार मे क्षमाशीलता ,निरंहकारिता और करुणा थी।मम्मा संपूर्ण मां थी।मम्मा में कभी भी किसी ने अंश मात्र भी गुस्सा नहीं देखा। वे गुणो की खान थी।किसी भी समझानी को मम्मा बड़े प्यार से देती थी। किसी बहन या भाई से जाने अनजाने अगर कोई गलती हो जाती तो मम्मा बड़े प्यार से समझाती थी,उनके मुख से किसी भी तरह का कोई ऐसा शब्द नहीं निकलता था जिससे किसी को जरा भी कष्ट हो।मम्मा में अंश मात्र भी कड़वाहट नही थी। मम्मा किसी के कमी कमजोरी को आंचल में छुपा लेती थी और गलती करने वाले को स्वतरू ही एहसास हो जाता था। फिर दोबारा गलती नहीं करते थे। मम्मा में बाबा के प्रति संपूर्ण निश्चय था।उन्होने बाबा के किसी बात को कभी भी हल्के रूप मे नहीं लिया।उनकी बात को काटने की तो स्वप्न मे भी नही सोचा। हर बात में उन्होंने हमेशा हां जी कहा। मम्मा के हांजी के पार्ट पर अनेक संस्मरण है–एक बार बाबा ने मम्मा से कहा कि बच्चे लौट रहे हैं उन्हें हलवा खिला दीजिए ।उसी समय बच्चे तैयार होकर बस पर बैठ रहे थे,बस खुलने ही जा रही थी। मम्मा ने कहा ष्जी बाबा ष् इस बीच किसी दूसरी बहन ने मम्मा से कहा कि अब तो बस खुल रही है कैसे हलुआ बनेगी? बाबा तो ऐसे ही कह देते हैं ।मम्मा ने कहा कि ष्बाबा ने कहा हैष् और किचन में जाकर हलवा बनाने लगी, तब तक बस खुल गई ।हलुआ बनाकर उसे वे बाबा के पास ले गई तो बाबा ने एक भाई को कहा कि ले जाओ और स्टेशन पर ट्रेन में उस भाई को दे देना ।वह भाई साइकिल से बहुत तेजी से भागा -भागा स्टेशन गया गाड़ी अभी खुली नहीं थी और वह उस गर्म हलवा को उस भाई को दे दिया। यह सच्ची घटना मम्मा मे बाबा के प्रति निश्चय की जीवंत कहानी है।उन्होने जरा भी समय को नही देखा,सिर्फ बाबा के मुख से निकली वाणी को भगवान की वाणी माना। यह हाजी का पार्ट यज्ञ से जुडे सभी के लिए अनुकरणीय प्रेरक शिक्षा है। मम्मा मे बाबा के प्रति जितना निश्चय, निष्ठा और विश्वास था ,वही विश्वास मम्मा को जगदंबा सरस्वती के स्वरूप में स्थिर कर दिया। यज्ञ के सारे भाई-बहन मम्मा का बहुत ही आदर और सम्मान करते थे, मम्मा के प्रति उनमे काफी स्नेह था, ऐसा लगता था कि मम्मा के छतरी के बिना वे रह नहीं सकते । उन्हे मम्मा में साक्षात् देवी का दर्शन होता था।मम्मा के योग का प्रतीकंपन इस संस्था को बहुत ऊंचाई तक पहुंचा कर बट वृक्ष का आकार दे दिया।1936 में मम्मा यज्ञ में आई। वे अथक सेवा धारी थी और 24 जून1965 में संपूर्णता को प्राप्त कर फरिश्ता स्वरूप बन बाबा के पास अगले पार्ट के लिए चली गई। विश्व के लगभग 140 देशो में आज यह संस्था भारत के आध्यात्मिक रौशनी को फैला रही है। संस्था का जो आज इतना विकास हुआ है इसके पीछे जगदंबा मम्मा की पालना और योग की शक्ति है जो शिव बाबा की छतरी से उन्हे मिली। मम्मा के द्वारा शिव बाबा ने जो मां का स्वरूप दुनिया को दिखाया आज देश के लगभग दस हजार सेवाकेंद्र एवं पचास हज़ार से अधिक बीके पाठशालाओं के साथ-साथ संस्था से जुड़े ब्रह्मा बच्चों के घरो मे मम्मा का स्वरूप, गुण और उपस्थिति की भाषा की अनुभूति होती है।मम्मा को सभी किसी ने किसी रूप में बड़े ही श्रद्धा के साथ याद करते है।सभी सेवा केंद्रो पर योग भट्ठी का आयोजन होता है। 24 जून को सभी ब्राह्मण बच्चे मम्मा से विशेष शक्ति लेते हैं और मम्मा सूक्ष्म रूप में शक्ति से भरपुर करती है। जो भी ब्रह्म वत्स जरा भी मम्मा के गुण स्वरूप होकर मम्मा को याद करते हैं वे 24 जून को मम्मा से विशेष वरदान लेते है ।खास करके जो ब्रह्मा वत्स अपने आप को मम्मा समान तेजी से बनाने के प्रयास में है, वे मम्मा से बहुत कुछ प्राप्त करते हैं ।वैसे मम्मा तो सभी की मां है और सभी को बढ़ाना चाहती है लेकिन परिवर्तन का दौर अब अंतिम चरण से गुजर रही है, परिवर्तन की इस बेला में जब कि नई दुनिया अब शीघ्र आरंभ होने जा रही है और मम्मा का जो लक्ष्मी रूप में सतयुग में पार्ट आरंभ होगा तथा द्वापर से जगदंबा की जड मूर्ति के रूप में पूजी जायेगी,आज 24 जून को उस मम्मा की स्मृति दिवस मनाने का जिन्हे भी सौभाग्य मिल रहा है वे भी विशेष आत्मा है।परिवर्तन की अंतिम बेला मे जब दुनिया विनाश के दौर से गुजर रही है,मम्मा और बाबा के इश्वरीय ज्ञान का महत्व काफी बढता जा रहा है।भले ही दुनिया वालो मे कुछ लोगो को यह इश्वरीय ज्ञान कुछ अजीब लगे लेकिन है सच । हर 5000 वर्ष के अंतराल पर भारत की भूमि पर ही स्वर्ग बनता है ।कल्प के समापन पर और संगम युग के बाद सतयुग का आरंभ होना तय रहता है ।गीता में यह बात लिखी हुई है ।गीता ग्रंथ के अनुसार एक बार सृष्टि चक्र घूम जाता है। बाबा और मम्मा के अंदर शिव बाबा जिन गुणो को भर कर नई दुनिया आरंभ करते हैं वही गुण ही भारतीय संस्कृति कहलाती है और इस संस्कृति का प्रसार पूरे विश्व में होता है । ढाई हजार वर्ष तक देवी देवता का सिंहासन होता है,देवी देवताओं का राज होता है ,फिर द्वापर से सभी देवी देवता मंदिरों में स्थान लेते हैं और इस तरह चक्र घुमता रहता है। फिर द्वापर और कलयुग फिर पुरुषोत्तम संगम युग जो बाबा के अवतरण का युग है,आरंभ होता है । संगम युग पर बच्चे ईश्वरीय पढाई पढ़कर और सहज राजयोग का अभ्यास कर संपूर्णता को प्राप्त कर नई दुनिया सतयुग मे नंबरवार पुरूषार्थ अनुसार पद लेते है। भारत मे सर्वाेच्च पद राष्ट्रपति का होता है और उसके ऊपर का पद देवी देवता का होता है।1981 के महावाक्य मुरली मे बाबा ने कहा है कि राष्ट्र पति भवन आप बच्चो का घर होगा।नारी को शिव की शक्ति कहा जाता है,आज सर्वाेच्च राष्ट्र पति के पद पर नारी शक्ति ब्रह्माकुमारीज द्रोपदी मुर्मू जी आसिन है ।
1936 मे बाबा के अवतरण के साथ पुरुषोत्तम संगम युग आरंभ होता है और इस युग की अवधि 100 वर्षों का निर्धारित किया जाता रहा है । वरतमान संगम युग का 90 वर्ष बीत चुके ,पुरुषोत्तम संगम युग को बाबा ने पांचवा लीप युग कहा और इसे निर्माण का युग कहा । अगर साधारण और भारतीय चुनावी सिस्टम वाली भाषा में कही जाए तो जिस तरह पांच वर्षों के अंतराल पर आचार संहिता लगाकर राज्य एवं केंद्र सरकार के लिए चुनाव होते है और चुनाव प्रक्रिया के दौर को आचार संहिता का दौर कहा जाता है।उस दौर में कोई सरकार नहीं होती है सिर्फ कार्यकारी सरकार होती है। चुनाव के बाद बहुमत के आधार पर सरकार बनती है और योग्यता अनुसार पद मिलती है। ठीक यही स्थिति हरेक 5000 वर्ष के अंतराल पर धरती पर बनती है 5000 वर्ष के अंदर के चार युग सतयुग ,त्रेता ,द्वापर और कलयुग के समापन के बाद नई दुनिया यानी नई सरकार के निमित्त थोड़ा समय जो मिलता है वह समय पुरुषोत्तम संगम युग का होता है ,उसमें कोई देवी देवता नहीं होते सभी नई दुनिया मे उच्च पद पाने के लिए योग तपस्या के रेस में लगे रहते हैं , और जब वह संगम युग का समय समाप्त होता है तो अपने पुरुषार्थ के आधार पर उन्हें पद मिलती है और नई दुनिया मे 5000 वर्ष के लिए नया पार्ट आरंभ होता है ।मम्मा और बाबाष् नई दुनिया में लक्ष्मी और नारायण बनते हैं।

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