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बुरा ना मानो होली हैः होली, चुनाव और बोतल का खेल: बिहार में सत्ता की ठंडाई!

नीतीश चाचा की पुलिस ने एक नया तस्कर पकड़ लिया—घोड़ा!, चच्चा ने शराबबंदी हटाने के लिए बीजेपी के सामने रखी अनोखी शर्त

✍️ सचिन कुमार सिंह

बैर कराती मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला—बच्चन जी ने बहुत पहले कह दिया था, पर बिहार में अब जाकर यह बात पूरी तरह सच हुई है! राजनीति जहां जात-पात, हिंदू-मुस्लिम, अमीर-गरीब का खेल खेलती रही, वहीं शराबबंदी ने सबको एक ही प्याले में ला खड़ा किया। न कोई यादव, न कोई भूमिहार, न कोई पंडित, न कोई मौलवी—बस एक ही पहचान—“बेवड़ा”!

अब मामला यह है कि बिहार चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा “शराब” बन चुका है।
पीके और तेजस्वी ने जैसे ही एलान किया—”हमारी सरकार बनी तो ठेका फिर खुलेगा!”—बिहार में खुशी की लहर दौड़ गई।
जात-पात की दीवारें टूट गईं, मुसलमान ने हिंदू से गले मिलकर कहा—“भाईजान, 2025 में असली ईद और होली तब ही मनेगी!”

बीजेपी की बेचैनी और नीतीश चाचा का बालहठ

इधर बीजेपी कटे हुए पतंग की तरह उड़ती नजर आई।
पार्टी का हिंदू-मुस्लिम कार्ड और मंदिर-मस्जिद वाली पिच पर तेजस्वी भइया की शराब वाली गुगली पड़ गई।
घबराए बीजेपी नेता सीधे नीतीश चाचा के पास दौड़े—“चाचा, अब तो बालहठ छोड़िए, शराब को बंधन मुक्त करिए, नहीं तो चुनाव में भसक जाएंगे!”

नीतीश चाचा ठंडाई के सुरूर में थे, एक आंख खोलकर बोले—“हम जो एक बार कमिटमेंट कर देते हैं, फिर अपनी भी नहीं सुनते!”
बीजेपी वाले बोले—”लेकिन चाचा, इस बार मुद्दा बदल गया है, इधर हिंदू-मुस्लिम फंसा नहीं, उधर पीके-तेजस्वी का बोतल प्लान हिट हो गया!”
अब चाचा की दूसरी आंख भी खुली—“हम्म… मामला गंभीर है। लेकिन एक कंडीशन पर शराबबंदी हटेगी!”

“कौन सी?”

“हमरे बेटे को सीएम बना दो, फिर दारू भी खुलेगी, और सत्ता भी बची रहेगी!”

बीजेपी नेता की गुलाल से पहले ही रंग उड़ गए!
“चाचा, आप तो हर बार दांव पलट देते हैं!”
नीतीश चाचा मुस्कुराए और फिर से चादर तानकर सो गए—”अबे, हमको मत समझाओ, चुनाव का रिजल्ट देख के तय करेंगे कि किधर पलटना है!”

होली में दारू की तलाश और पुलिस की चौकसी
बिहार में होली की तैयारियां जोरों पर थीं।
गुझिया छन रही थी, अबीर-गुलाल उड़ रहे थे, लेकिन होली का असली मुद्दा “जुगाड़” था।

“भाई, कहीं से कुछ सेटिंग भईल?”

हर नुक्कड़, हर चौराहे पर फुसफुसाहट थी, जैसे कोई सीक्रेट मिशन चल रहा हो।
इस बीच पुलिस “ऑपरेशन पकड़ो दारू” में जुटी थी।
गांव-गांव में कमांडो स्टाइल में छापेमारी चल रही थी, लोग बोले—”पुलिस त अब भांग के पकौड़े भी जब्त कर रही है!”

लोगों की ठंडाई भी शक के घेरे में थी—”ये ठंडाई है या ‘वो’ ठंडाई?”
इधर शराब पकड़ने के चक्कर में पुलिस इतनी बिजी थी कि होली का माहौल ही धुल गया।

चुनावी ठेके पर बैठी पार्टियां

बीजेपी दुविधा में थी—”अब इस चुनाव में शराब के खिलाफ खड़े रहें या तेजस्वी-पीके की लाइन पर आएं?”
आरजेडी वाले मस्त थे—”बस सरकार बनवा दो, फिर ठेके पे पार्टी करेंगे!”
नारा गूंजा—”लड्डू नहीं, अब बोतल खुलेगी!”

होली के रंग और चुनावी सुरूर
लोग रंग खेलने निकले थे, लेकिन हर जगह चुनाव और शराब की ही चर्चा थी।
“सरकार आएगी तो अगले साल की होली रंगीन होगी!”
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नीतीश चाचा की पुलिस ने एक नया तस्कर पकड़ लिया—घोड़ा! 🐴

घोड़े की गिरफ्तारी ने नया बवाल खड़ा कर दिया। पुलिस परेशान—”इस बिचारे को किस धारा में जेल भेजें?”
बिहार की जनता खुश—”अब तो शराबबंदी की इतनी बुरी हालत हो गई कि इंसान नहीं, घोड़े ही तस्कर बन गए!”

बेवड़ा काका की बर्बादी की कहानी

गांव के बेवड़ा काका इस बार होलिका दहन के साथ अपने अरमान भी जलता देख रहे थे।
हाथ में खाली गिलास लेकर बोले—”का जमाना आ गया! हमरे ज़माने में होली का मतलब होता था ठर्रा, भांग, और ठंडई! जब तक नाले में न लोटें, तब तक मजा ही का?”

बीच से कोई बोला—”काका, अब होली में बस गुलाल उड़ेगा!”
काका गुस्से में—”अबे, ई कौन सी होली हुई? हमरा टाइम में होली खरीदी जाती थी! ठेके से बोतल, चखना और रंग—सब सेट होता था!”

फिर आंखों में आंसू लिए बोले—”अबे, एगो दारू का जुगाड़ हो जाता तो एगो लौंडा का माथा तो फोड़ देते! जब तक मोहल्ले में कांड ना हो, तब तक कौन कहे कि होली मनी!”
बेवड़ा काका रोते हुए बोले—”अबे, हमरा ज़माना रह जाता तो घोड़ा का मालिक बनकर ही चुनाव लड़ जाते!”

बस घोड़ा फिर न पकड़ा जाए!

अब देखना है कि बिहार की जनता घोड़े की गिरफ्तारी और बेवड़ा काका की उदासी के बीच चुनावी रंग में कितनी रंगती है!
एक बात पक्की है—इस बार बिहार में अबीर से ज्यादा शराब का सुरूर चढ़ेगा, बस घोड़ा फिर न पकड़ा जाए!

 

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