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प्राकृतिक और पारंपरिक मवेशी खाद आधारित खेती हीं किसानो की आर्थिक सफलता का जरिया, बोले डॉ नंदकिशोर साह

मोतिहारी। अशोक वर्मा
भारत में खेती का पारंपरिक तरीका भी प्राकृतिक और जैविक खेती ही रहा है, लेकिन हरित क्रांति के बाद किसान रासायनिक खेती की ओर बढ़ते चले गए, जो लगातार जिंदगियों में जहर घोल रही है। देश में बिना रसायन की खेती को बढ़ावा देने और किसान की माली हालत सुधारने के प्रयास के लिए जोर दिया गया है। खेती में लागत कम करने, मनुष्य, मिट्टी और पर्यावरण की सेहत को दुरुस्त रखने के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती ही विकल्प है।
एक रिपोर्ट के अनुसार जैविक और प्राकृतिक खेती ही लंबे समय के लिए फायदेमंद, टिकाऊ, कम खर्चीली, क्लाइमेट चेंज से निपटने में सक्षम, पानी की बचत, जैव विविधता और मिट्टी में कार्बन तत्वों की मात्रा बढ़ाने वाली है। किसानों को सबसे अधिक लागत हाइब्रिड बीज और रासायनिक खादों व कीटनाशकों के उपयोग पर आती है। इससे बचाना होगा। किसानों को डर रहता है कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों को डालना बंद कर देंगे, तो उनका उत्पादन घट जाएगा। इससे उत्पादन कम नहीं होता, बढ़ते हैं।
दुनिया में प्राकृतिक कृषि उत्पादों का एक बड़ा बाजार तैयार हो रहा है। इसके लिए लोग अधिक खर्च करने को तैयार हैं। दुनिया रासायनिक खाद युक्त कृषि उत्पादों से दूरी बना रही है। प्राकृतिक कृषि किसान को आत्मनिर्भर बनाने एवं उनकी आय बढ़ाने में सहायक है। इससे देश में बड़ा परिवर्तन हो सकता है।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में जैविक खेती प्रोत्साहित किया जा रहा है। गंगा नदी के किनारे सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लाभ यह होगा कि गंगा किनारे रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को रोककर नदी और गांव को प्रदूषण से बचाया जा सकेगा।
ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े डा0 नंदकिशोरसाह ने कहा कि हम जो फल, सब्जी और अनाज खा रहे हैं, उनको उगाने और पकाने में इतने रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है कि इसे खाकर हम दिन प्रतिदिन बीमार होते जा रहे हैं। हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर हो रही है। हमारे परिवार को शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक भोजन कैसे प्राप्त हो? किसानों और गांव के संकट के इस समाधान के लिए ऐसी तकनीक अपनाई जाए, जो किसानों को संतोषजनक आय देने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा भी करें तथा खेती किसानी की आजीविका को टिकाऊ बनाएं। कृषि लाखों लोगों की आजीविका को बनाए रखने की क्षमता रखती है। यह अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सकता है। इसमें पहल से न सिर्फ खेतीहरो का उत्थान होगा, बल्कि उनकी आने वाली पीढ़ी भी स्वस्थ, शिक्षित और समृद्ध होकर देश की आर्थिकी में भागीदार बनेगी। देश एक हरित क्रांति देख चुका है।
प्राकृतिक खेती आर्थिक सफलता का भी एक जरिया है। यह धरती मां की सेवा का भी बहुत बड़ा माध्यम है। इससे आप मिट्टी की गुणवत्ता, जमीन की स्वास्थ्य, उसकी उत्पादकता की रक्षा करते हैं। प्राकृतिक खेती को लेकर देश का यह जन आंदोलन भी आने वाले वर्षों में व्यापक रूप से सफल होगा जो किसान इस बदलाव से जितनी जल्द जुड़ेंगे, वह सफलता के उतने ही ऊंचे शिखर पर पहुंचेंगे। जब किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए देशवासी खुद संकल्पबद्ध हो जाते हैं तो उसकी प्राप्ति में कोई रुकावट नहीं आती। न हमें कभी थकान महसूस होती है।
किसानों के लिए टमाटर, प्याज, आलू समेत अन्य मौसमी सब्जियों के साथ समस्या और गंभीर है। इस दिशा में सरकार किसानों से उचित लाभकारी मूल्य पर सब्जियां खरीद कर भंडारण कर सकती है। इसके लिए कोल्ड स्टोरेज की संख्या पर्याप्त करनी होगी। फसल नुकसान होने की स्थिति में बीमा योजना की प्रासंगिकता बढ़ी है, लेकिन इसका अनुभव बुरा रहा है। आज सवाल सिर्फ किसानों की मौजूदा आय का नहीं है। उनकी आजीविका के भविष्य और उनके स्वास्थ्य का भी है। यदि खेती किसानी का पर्यावरण तेजी से बिगड़ता रहा, मिट्टी का प्राकृतिक उपजाऊपन नष्ट होता रहा, केंचुए मित्र, कीट और पक्षी लुप्त होते रहे, तो उपज की कीमत बढ़ जाने पर भी कल और गंभीर समस्याएं सामने आने वाली है।
आज कल पकने के समय सब्जी में दवाई डाल दी जाती है, फिर यही सब्जी घरों तक पहुंचती है। नतीजा यह निकलता है कि सब्जी खाने से लोग बीमार हो जाते हैं। लिहाजा जैविक खेती करिए और बगैर दावा लगी सब्जी खाइए। इससे आप और आपके बच्चे भी स्वस्थ रहेंगे। सरकार जैविक खेती पर जोर दे रही है। इससे बीमारियां घटेंगी और बच्चे सेहतमंद होंगे। इस दिशा में छोटे कदम है। इसके लिए अभी और कदम उठाने की जरूरत होगी। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए ठोस योजना बनानी होगी। इसकी खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण देना होगा। जैविक बाजार भी उपलब्ध कराना होगा। किसानों की समस्या के कई रूप है और सारे किसान एक जैसे है भी नहीं। खाद, बीज तथा कृषि पर लगने वाली सामग्री कृषि बीमा, फसल सुरक्षा, भंडारण, वितरण और उचित मूल्य तमाम सवाल कई स्तर पर है। उन पर हमें गंभीरता से जरूर सोचना चाहिए। उसे शहरीकरण, औद्योगिकरण के बजाय ग्रामीण जीवन से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में दिखना चाहिए।

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