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मानस कथा से प्रीति पांडे उपाध्याय ने सबको सत्संग के माध्यम से भवसागर व परमात्मा का कराया साक्षात्कार

मोतिहारी। एसके पांडेय

आदापुर प्रखंड के पंचायत राज भेरीहारी के भवनरी में नौ दिवसीय शुरू हो रहे शतशती चंडी महायज्ञ को लेकर आज आठवें दिन गुरुवार को सत्संग के माध्यम से मानस कथा के साथ सबको भवसागर व परमात्मा का साक्षात्कार कराया। मानस कथा प्रीति पांडे उपाध्याय ने बताया कि सतगुरु, सत्संगी,और ब्रह्मविचार। सद्गुरु मिल जाए और मनुष्य की अपनी योग्यता ना हो तो सद्गुरु से ब्रह्मविचार ब्रह्मचर्चा,ब्रह्मध्यान,परमात्म साक्षात्कार नहीं कर पाएगा। संसार का बंधन कैसे छूटे, आंख सदा के लिए बंद हो जाये इन नेत्रों की ज्योति कम हो जाये उसके पहले आत्मज्योति की जगमगाहट कैसे हो ? कुटुम्बीजन मुँह मोड़ लें उसके पहले अपने सर्वश्वरस्वरूप की मुलाकात कैसे हो ? आत्मविचार और आत्म-प्यास से भरा हुआ जो साधक है, वही सदगुरु का पूरा लाभ उठाता है। सत्संग, उत्साह और श्रद्धा अगर छोटे से छोटे आदमी में भी हों तो वह बड़े से बड़े कार्य कर सकता है। यहाँ तक कि भगवान भी उसे मान देते हैं। वे लोग धनभागी हैं जिनको सत्संग मिलता है ! वे लोग विशेष धनभागी हैं जो सत्संग दूसरों को दिलाने की सेवा करके संत और समाज के बीच की कड़ी बनने का अवसर खोज लेते हैं, पा लेते हैं और अपना जीवन धन्य कर लेते हैं !ज्ञानमार्ग परमात्मप्राप्ति का विहंग मार्ग कहलाता है।

 

ब्रह्मनिष्ठ संत का सत्संग-मार्गदर्शन व उसके अनुसार मनन-चिंतन का सिलसिला चलता रहा और बहुत ही कम समय में ज्ञान सम्बंधम् ने आत्मस्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर लिया। ईश्वर के दर्शन के बाद भी आत्मस्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना बाकी रह जाता है।
हनुमानजी को भगवान श्रीरामचन्द्र जी के दर्शन के बाद भी जो पाना बाकी था, अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के बाद भी जो पाना बाकी था, नामदेव को विट्ठल के दर्शन के बाद भी जो पाना बाकी था, वह सर्वोपरि ज्ञान उन्होंने पाया। ब्रह्मज्ञान सर्वोपरि है।
श्रीकृष्ण ने उद्धव को एकांत में जाकर ब्रह्मस्थिति करने को कहा था। वह सर्वोपरि स्थिति उन्होंने प्राप्त कर ली। संतों के पास कैसी-कैसी युक्तियाँ होती है जीवों को भवसागर स तारने की ! और कितनी महिमा है भगवन्नाम व तत्त्वचिंतन की ! भले ’नमः शिवायम्’ पत्नी का नाम था किंतु भगवन्नाम अपना काम करता ही है।

 

धन्यवाद है उन अभिभावकों को जो अपने बच्चों के नामकरण के समय भगवान के नामों का ही अवलम्बन लेते हैं ! जिन अभिभावकों ने अपने बच्चों के नाम टीनू, मीनू, पिंकी, चिंकी, श्लेष्मा हृ इस प्रकार रखे हैं, उन्हें हम प्रार्थना करते हैं कि वे अजामिल, ज्ञान सम्बंधम् की कथा से प्रेरणा लेकर अपने बच्चों का नाम नारायण, हरि, शिव, कृष्ण, राम, हरिदास, गोविद, सरस्वती, दुर्गा हृ इस प्रकार रखें। चिंता न करें कि नाम कम पड़ जायेंगे। भारत के ऋषियों ने भी विष्णुसहस्रनाम, श्री शिवसहस्रनाम आदि की रचना करके आपके लिए भगवन्नामों का वैविध्यपूर्ण भंडार खोल रखा है अपने सत्शास्त्रों में। और नाम भी ऐसे कि एक-एक नाम भगवान के एक-एक अदभुत गुण का वाचक ! श्री विष्णुसहस्रनाम में भगवान के हजार नाम हैं, उनमें से नाम रखें। कैसी सुंदर व्यवस्था है ! तो आप इसका लाभ लें और अपनी वाणी को पावन व मन बुद्धि को सदगुणसम्पन्न, भगवन्मय बनायें।

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