मोतिहारी। अशोक वर्मा
नगर के नरसिंह बाबा मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय रामचरितमानस श्रीराम कथा के सातवें दिन का शुभारंभ श्री हनुमान जी महाराज के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उनको समर्पित भजन से हुआ । उसके बाद चित्रकूट उत्तर प्रदेश से पधारे सुविज्ञ सुविख्यात मानस रत्ने कथावाचक पंडित राम गोपाल तिवारी जी ने कथा का विधिवत प्रारंभ करते हुए बताया कि परमात्मा को देखने के दो तरीके हो सकते हैं । प्रथम सगुण रूप जिसे हम खुली आंखों से देख सकते हैं । दूसरा यह कि हम आंखों को बंद करके अपने हृदय में उनका चिंतन करें उन्हें अनुभूत करें इसे स्वरूप दर्शन कहा जाता है । उन्होंने बताया कि राम के रूप से राम के स्वरूप तक पहुंचने का उपक्रम ही आध्यात्मिक यात्रा कहीं जाती है । धनुष यज्ञ में श्री राम के द्वारा शिव के धनुष को तोड़ने के बाद परशुराम लक्ष्मण में हुए संवाद प्रभु राम के इसी रूप दर्शन के कारण उत्पन्न हुआ था । महाराज जी ने बताया कि जब हम सिर्फ रुप या देह को जानते हैं तो कुल, जाति, देश, वर्ण सभी का वितंडा उत्पन्न हो जाता है । ध्यान देने योग्य बात है की भगवती सती और परशुराम दोनों ने प्रथम दृष्टया भगवान राम के रूप को देखा फलस्वरूप उन दोनों को संशय उत्पन्न हुआ, लेकिन कालांतर में जब उन दोनों को स्वरूप का चिंतन हुआ तो सारा संशय समाप्त हो गया । पंडित जी ने बताया कि हम भी अपनी आध्यात्मिक यात्रा में यदि आंखें खोले ढूंढेंगे तो देही मिलेगा, वैदेही नहीं । क्योंकि देही की दृष्टि से देही को ही देखा जा सकता है वैदेही को नहीं ।
आज का दिन श्री हनुमान जी महाराज के जन्मोत्सव का दिन भी था इसलिए उनको समर्पित महाराज जी ने श्री हनुमान जी के जन्म का वर्णन बड़े ही सुंदर ढंग से श्रोताओं के समक्ष रखा, जिन्हें जान सुनकर सभी श्रद्धालु भक्त अह्लाद का अनुभव करने लगे । उन्होंने बताया कि श्री हनुमान जी की उत्पत्ति श्री सीताराम विवाह के समय ही निर्मित हो गया था । कथा को विस्तार देते हुए कहा कि जब भगवान राम दूल्हे के रूप में बारात लेकर श्री जनक जी के दरवाजे पर जाने को निकले तो वह घोड़े का स्वरूप धारण किए कामदेव पर सवार थे । भगवान शंकर ने जब प्रभु राम को कामदेव के ऊपर सवार होकर जाते देखा तो उनके मन में भी यह इच्छा उत्पन्न हुई कि जब प्रभु राम कामदेव के ऊपर बैठ सकते हैं तो हमें भी अपने आराध्य को अपने कंधे पर बैठाने का निश्चय करना चाहिए । भगवान शिव का यही निश्चय वानर के रूप में श्री हनुमानजी के उत्पत्ति का कारण बना । और भगवान शंकर की मनोज चिंतित कामना तब पूर्ण हुआ जब किष्किंधा में सुग्रीव से मिलाने ऋषिमुक पर्वत पर ले जाने के लिए श्री हनुमान जी ने राम और लक्ष्मण दोनों को अपने कंधे पर बिठाया ।
श्री महाराज जी ने अपने कथा वाचन के क्रम में श्री हनुमान जी और भगवान राम के बीच हुए संवाद को बड़े ही सरस और माधुर्य ढंग से प्रस्तुत करके श्री हनुमानजी को ज्ञानिनामग्रगण्यम् होने की अवधारणा को प्रमाणित किया । उन्होंने बताया कि ऋषि मुक्त पर्वत पर राम – हनुमान वार्तालाप के बीच हनुमान जी के जिज्ञासा पर रामजी ने कहा कि जनकपुर में जब मैं कामदेव पर सवार था तो उस समय भी मैं सीता रूपी भक्ति की प्राप्ति में जा रहा था और आज जब तुम ब्रह्मचारी बने हनुमान के कंधे पर बैठा हूं तो हरण हो गई सीता की ही खोज में निकला हूं ।
श्रीराम कथा का मंचसंचालन प्रोफेसर रामनिरंजन पांडेय ने की । उपस्थित हजारों श्रद्धालु भक्तों के साथ मानस सत्संग समिति के सभी पदाधिकारी तत्परता से व्यवस्था में जुटे रहे ।