Home न्यूज नए उद्योग मंत्री दिलीप जायसवाल दावे तो जोर-शोर से कर रहे, क्या...

नए उद्योग मंत्री दिलीप जायसवाल दावे तो जोर-शोर से कर रहे, क्या वाकई बिहार में बिछेगा उद्योगों का जाल, रूकेगा पलायन या सिर्फ खोखले वायदे?

– बिहार में बदलाव को दिखानी होगी इच्छा व कार्यशक्ति, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी किए थे कई वायदे

सचिन कुमार सिंह। विशेष रिपोर्ट

किशनगंज में उद्योग मंत्री और बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल का स्वागत किसी चुनावी रैली जैसा भव्य रहा। माता गुजरी मेडिकल कॉलेज में भाजपा कार्यकर्ताओं ने जेसीबी से फूल बरसाकर उनका अभिनंदन किया। ढोल-नगाड़ों और नारेबाज़ी के बीच मंत्री ने कई बड़े बयान दिए। अपराध मुक्त बिहार, रोजगार, पलायन रोकने, और विदेशी निवेश जैसे वादों ने युवा और कार्यकर्ताओं में उत्साह जरूर पैदा किया, लेकिन सवाल यह है, क्या यह सब व्यावहारिक भी है?

डॉ. जायसवाल ने साफ कहा कि “गलत करेगा तो जेल जाएगा, स्पीडी ट्रायल चलेगा।”
इरादा मजबूत है, पर बिहार की हकीकत यह है कि पुलिस बल की अपेक्षाकृत कमी, तकनीकी संसाधनों का अभाव, स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दखल, लंबित मामलों का बोझ, इन सबको देखते हुए सिर्फ घोषणा से अपराध खत्म होना मुश्किल दिखता है।
यह दावा मजबूत है, पर क्रियान्वयन की रूपरेखा गायब।

“युवा पलायन बंद होगा”, बिहार के सामने सबसे कठिन लड़ाई
बिहार से हर साल लाखों युवा रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं।
पलायन रोकने के लिए सिर्फ उद्योग खोलना काफी नहीं है, चाहिए विश्वसनीय कानून-व्यवस्था, मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर, वास्तविक निवेश सुरक्षा,आधुनिक स्किल ट्रेनिंग
बड़ी निजी कंपनियों का स्थायी निवेश।

अब तक किसी भी सरकार ने इन सभी मोर्चों पर एक साथ ठोस काम नहीं किया।
अगर रोडमैप नहीं बना, तो यह वादा सिर्फ चुनावी भाषण बनकर रह जाएगा।

“सभी को सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती, बात सही, लेकिन विकल्प अस्पष्ट
मंत्री का यह बयान वास्तविकता के करीब है। पर बड़ा सवाल, क्या क्या बिहार में निजी नौकरियों की पर्याप्त व्यवस्था है?

न बड़े उद्योग, न सूचनाप्रौद्योगिकी सेक्टर, न स्टार्टअप ईकोसिस्टम, न कौशल आधारित रोजगार, जब तक ये नहीं बढ़ेंगे, सरकारी नौकरी ही युवाओं का एकमात्र भरोसा रहेगी।
मंत्री का बयान सही दिशा में है, लेकिन समाधान अभी भी अधूरा है।

. “विदेशी निवेशक आएँगे”- सबसे कठिन और विवादित दावा

बिहार में विदेशी निवेश लाने की राह में बड़ी दीवारें हैं।

– कमजोर लॉजिस्टिक्स
– लगातार प्रभावित होने वाली कानूनदृव्यवस्था की छवि
– औद्योगिक क्लस्टरों की कमी
– पावर सप्लाई की दिक्कत
– कुशल वर्कफोर्स की कमी
इन बाधाओं को दूर किए बिना विदेशी निवेश की बात अत्यधिक आशावादी लगती है।

25 नवंबर की कैबिनेट बैठक, कुछ बड़े फैसलों के संकेत, पर जनता इंतजार में
मंत्री ने कहा कि पहली कैबिनेट बैठक में उद्योग विस्तार पर बड़ा निर्णय होगा।
लेकिन बिहार में इससे पहले भी कई बार, “उद्योग का जाल बिछाने” का ऐलान हुआ है
नतीजा आज भी लगभग शून्य है।
इस बार क्या अलग होगा, यह देखना होगा।

क्या कहती है राजनीतिक हवा?
किशनगंज में मंत्री का जबरदस्त स्वागत यह संकेत देता है कि भाजपा और मंत्री दोनों ही कानून-व्यवस्था व रोजगार को नई सरकार की पहचान बनाना चाहते हैं।
लेकिन चुनाव अभियान में जो सबसे बड़ा मुद्दा गूंजा वह था, “रोजगार” और “पलायन”
और उसी पर जनता की निगाहें टिकी रहेंगी। अब अगले छह माह में सरकार
इरादे मजबूत, लेकिन भरोसा तभी जब जमीन पर बदलाव दिखे

डॉ. दिलीप जायसवाल की ऊर्जा, आत्मविश्वास और दौरे निश्चित रूप से सकारात्मक संकेत देते हैं।
पर बिहार की जमीनी सच्चाई यह कहती है,
जब तक उद्योग नहीं आएँगे, जब तक कानून व्यवस्था मजबूत नहीं होगी
जब तक रोजगार का वास्तविक ढांचा नहीं बनेगा, जब तक पलायन रोकने की ठोस नीति नहीं बनेगी तब तक घोषणाएँ सिर्फ उत्साह देंगी, समाधान नहीं।
इसलिए नए उद्योग मंत्री को इस बार बयानबाजी की बजाय इच्छाशक्ति दिखानी होगी, केन्द्र व राज्य दोनों जगह उनकी ही सरकार है, चुनाव प्रचार के दौरान केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई जगहों पर आम जनता से यह वायदा किया था अगले पांच साल में राज्य भर में 25 चीनी मिलों समेत अन्य उद्योग लगाने का वादा किया था, अगर वे इन वायदों पर अमल करते हैं तो केन्द्र व राज्य के बेहतर संयोजन से अगले पांच वर्षों में सार्थक बदलाव दिख सकते हैं, नहीं तो वायदों व इन्हें धरातल पर उतारने की कवायद का फर्क हमेशा ही बना रहेगा और बिहार के लोगों का बाहर पलायन जारी रहेगा।

Previous articleजदयू के इस वरिष्ठ विधायक को बनाया गया प्रोटेम स्पीकर, राज्यपाल ने दिलाई शपथ
Next articleसंगठन भंग: मीडिया की चमक के पीछे जमीनी कमजोरी, प्रशांत किशोर के ‘परिवर्तन मॉडल’ को बिहार में बड़ा झटका