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शारदा सिन्हा की यादेंः कभी सास ने किया था गायिकी का विरोध, फिर इस तरह संगीत का सफर होता गया आसान, मिलती गई पहचान

बिहार डेस्क। यूथ मुकाम न्यूज नेटवर्क
जिस तरह स्वर कोकिला लता मंगेशकर के बारे में पूरी दुनिया जानती है. इसी तरह, बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को नई-पुरानी हर पीढी भलीभांति जानती है। वो गायिका जिन्होंने अपनी मीठी आवाज से छठ के गाने हर भाषी लोगों को जुबान पर चढ़ा दिए. इन्होंने अपने करियर में एक से एक हिट गाने दिए. देश के सर्वाेच्च सम्मान से नवाजी गईं तो ढेरों फैंस को भी लोक गायिकी के लिए प्रेरित किया. लेकिन वही छठ महापर्व के बीच वे हमसे बिछड़ गई। छठी माता ने अपने पास बुला लिया, यह भी अजब संयोग है।
उन्होंने मैथिली, भोजपुरी के अलावे हिन्दी गीत गाये। मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन तथा गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्मों में इनके द्वारा गाये गीत काफी प्रचलित हुए। उनके गाये गीतों के कैसेट संगीत बाजार में सहजता से उपलब्ध है। दुल्हिन, पीरितिया, मेंहदी जैसे कैसेट्स काफी बिके। बिहार एवं यहाँ से बाहर दुर्गा-पूजा, विवाह-समारोह या अन्य संगीत समारोहों में शारदा सिन्हा द्वारा गाये गीत अक्सर सुनाई देते हैं।

लोकगीतों के लिए इन्हें बिहार-कोकिला, पद्म श्री एवं पद्म भूषण सम्मान से विभूषित किया गया है।

बिहार के सुपौल में है मायका तो बेगुसराय में ससुराल
शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के सुपौल के हुलास में हुआ. उनका ससुराल बेगुसराय में है. शारदा सिन्हा गायिका के साथ-साथ प्रोफेसर भी रही हैं. उन्होंने बीएड की पढ़ाई की और फिर वह म्यूजिक में पीएचडी करके वह समस्तीपुर के कॉलेज में प्रोफेसर बन गईं. वह हमेशा से ही गायिकी में रुचि रखती थीं और इसलिए उन्होंने इसे ही अपने करियर के तौर पर भी चुना. गायिका के तौर पर फेमस होने के बाद भी वह अपनी नौकरी भी करती रही और कॉलेज से रिटायर भी हुईं.

बहुत मन्नतों के बाद जन्म हुआ बेटी शारदा का
शारदा सिन्हा के पैरेंट्स और फैमिली के साथ-साथ उनके करियर में ससुरालवालों में भी अहम योगदान निभाया. वैसे तो शारदा सिन्हा के परिवार में 30-35 सालों तक किसी बेटी का जन्म नहीं हुआ था. शारदा का जन्म भी मन्नतों के बाद हुआ. शारदा सिन्हा के हुनर की पहचान उनके पिता ने की और फिर बेटी को संगीत सिखाने का फैसला लिया. अपने पीहर से संगीत का सिलसिला शुरू हुआ और फिर ब्याह के बाद भी ये जारी रहा. उन्हें पति का सपोर्ट मिला तो ससुर ने भी खूब साथ दिया. मगर शुरुआत में सास, बहू के गाने-बजाने से नाराज हो गई थीं.

सास हो गई थीं नाराज
शारदा सिन्हा की सास का कहना था कि घर में भजन गाने तक तो ठीक लेकिन ऐसे बाहर गाना-बजाना ठीक नहीं है. ससुराल में कभी भी कोई बहू घर से बाहर इस तरह नहीं गाती थीं. मगर इस वक्त, पति के साथ-साथ शारदा सिन्हा के ससुर ने भी उन्हें सपोर्ट किया. क्योंकि उन्हें बहू की मीठी आवाज में भजन-कीर्तन सुनना खूब पसंद था. आगे चलकर उन्होंने बहू को बाहर गाने की इजाजत दे दी. फिर क्या उन्होंने भोजपुरी, मैथिली, मगही से लेकर हिंदी में खूब गाने गाए. पहला मौका था जब इस तरह विवाह व त्योहारों के गाने मार्केट में खूब धूम मचा रहे थे.

शारदा सिन्हा के गाने, बॉलीवुड में कैसे मिला मौका
श्हो दीनानाथश्, श्सोना साठ कुनिया हो दीनानथश्, से लेकर ‘द्वार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ, यौ दुलरुआ भइया’ जैसे तमाम सुपरहिट गाने गाने वालीं शारदा सिन्हा को साल पहली बार बॉलीवुड में गाना गाने का मौका दिया राजश्री प्रोडक्शन ने. खुद तारा चंद्र बड़जात्या ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया. उन्होंने श्मैंने प्यार कियाश् का श्कहे तो से सजनाश् गाना गाया जोकि सुपरहिट रहा. आगे चलकर उन्होंने बॉलीवुड में तार बिजली से लेकर कौन सी नगरिया जैसे कई गाने गाए.

शारदा सिन्हा ने ठुकरा दिया राजनीति का ऑफर
शारदा सिन्हा के योगदान को देखते हुए उन्हें साल 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अगादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीयआहिल्या देवी अवॉर्ड, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार और 2018 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. खुद कई इंटरव्यू में शारदा सिन्हा ने इस बारे में बात की है कि उन्हें 53 साल के करियर में कई बार हर बड़ी राजनीतिक पार्टी से ऑफर आए लेकिन उन्होंने संगीत के रास्ते से खुद को नहीं भटकाया और हमेशा पॉलिटिक्स में आने के ऑफर को ठुकरा दिए.

शारदा सिन्हा के पति, बच्चे और नेटवर्थ
1 अक्टूबर 1952 को जन्मीं शारदा सिन्हा के पति का नाम बृजकिशोर सिन्हा था. वह शिक्षा विभाग में क्षेत्रीय डिप्टी डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे. इसी साल उनके हसबैंड का निधन हो गया था और तभी से वह भी सदमे में हैं. दोनों के दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी. वहीं शारदा सिन्हा की नेटवर्थ की बात करें तो रिपोर्ट्स के मुताबिक 16-42 करोड़ रुपये के बीच उनकी कुल संपत्ति हैं.

 

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