नेशनल डेस्क। यूथ मुकाम न्यूज नेटवर्क
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नाम पर स्थापित जेएनयू में शुरू से ही वामपंथी छात्रों के एजेंडावादी रूख को लेकर विवाद होते आए हैं। बात 80 के दशक में लेफ्ट व राइट विंग के छात्रों के बीच बवाल का हो, या वर्ष 2000 में पाकिस्तान के समर्थन में मुशायरे का। फिलहाल बीबीसी निर्मित पीएम मोदी व गुजरात दंगे पर बने प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद थम नहीं रहा है। वैसे देखा जाय तो लेफ्ट विंग की आड़ में देश विरोधी हरकतें करने को लेकर यह संस्था बार-बार बवाल में आता रहा है।
कैंपस के अंदर पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत तेरे टुकड़े होंगे के जैसे नारे लगाए हैं। हमेशा विवादों से घिरे रहने वाला जेएनयू एक बार फिर से चर्चा का विषय बना है। यूनिवर्सिटी में कैंपस के अंदर पिछले साल भी एक नया बवाल हो गया था, विश्वविद्यालय के दीवारों पर ब्राह्मणों और बनियों के खिलाफ नारे लिखे गए हैं। जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की दीवारों पर असामाजिक तत्वों ने ब्राह्मण समुदाय के खिलाफ अमर्यादित नारे लिखे गये। यूं कहे तो पढ़ाई कम जेएनयू विवादों का केन्द्र बनता जा रहा है, जो कही से अच्छा संकेत नहीं है।
प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर मंगलवार की रात जमकर बवाल हुआ। देर रात तक यहां छात्रों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। उनका आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने पीएम मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन को रोकने के लिए कैंपस की बिजली काट दी। इसके साथ ही इंटरनेट बंद कर दिया गया। इसके खिलाफ जब छात्रों ने मार्च निकाला, तो उन पर पत्थरबाजी की गई।
ये पहली बार नहीं है जब देश का प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जेएनयू विवादों में है। कभी पाकिस्तान के समर्थन में मुशायरा तो कभी भारतीय जवानों की शहादत पर जश्न मनाने का आरोप यहां के छात्रों पर लगता रहा है। कई बार हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं। एक बार तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विश्वविद्यालय ही बंद करने का आदेश दिया था।
आइए जानते हैं कब-कब जेएनयू बड़े विवादों में रहा…
शुरुआत इंदिरा गांधी के समय से करें तो सीधे 1980 में चलना होगा, तब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री हुआ करती थीं। जेएनयू में वामपंथी संगठन और राइट विंग के छात्रों के बीच किसी बात को लेकर विवाद शुरू हो गया। ये विवाद इतना बढ़ गया कि 16 नवंबर 1980 से लेकर तीन जनवरी 1981 तक इसे बंद करना पड़ा था। इंदिरा गांधी ने खुद इसे बंद रखने के आदेश दिए थे। हालात पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए जेएनयू स्टूडेंट यूनियन (जेएनयूएसयू) प्रेसीडेंट राजन जी को हिरासत में लेना पड़ा था।
साल 2000 : पाकिस्तान के समर्थन में मुशायरा कराने का आरोप
जेएनयू में एक मुशायरे का आयोजन हुआ। इसमें कई गजलें पढ़ी गईं। आरोप है कि इस दौरान कई गजलें पाकिस्तान के समर्थन में भी पढ़ी गईं। तब वहां मौजूद सेना के दो जवानों ने इसका विरोध किया। इसपर मुशायरे का आयोजन करने वाले छात्र संगठन के नेताओं ने दोनों जवानों को बुरी तरह से पीट दिया। तब ये मामला भाजपा सांसद बीसी खंडूरी ने संसद में भी उठाया था।
2005ः ईरान पर प्रतिबंध का समर्थन करने पर पीएम मनमोहन का विरोध
मामला 2005 का है। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जेएनयू कैंपस में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने जाना था। तब भारत ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर उस पर प्रतिबंध के अमेरिकी प्रस्ताव का समर्थन किया था। जेएनयू कैंपस में छात्रों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। कहा जाता है कि इस दौरान प्रधानमंत्री का रास्ता भी रोकने की भी कोशिश हुई थी।
2010 : जवानों की शहादत पर जश्न मनाने का आरोप
मामला 2010 का है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमला हुआ। सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। कांग्रेस के छात्र संगठन (एनएसयूआई) ने आरोप लगाया कि वामपंथी छात्र संघ के छात्रों ने इसकी खुशी मनाने के लिए कैंपस में कार्यक्रम का आयोजन किया। यह भी दावा किया गया कि इस दौरान भारत विरोधी नारे लगाए गए।
2014 : महिषासुर बलिदान दिवस मनाने का आरोप
अक्तूबर 2014 की बात है। जेएनयू कैंपस में महिषासुर बलिदान दिवस नाम के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। आरोप लगे कि इस कार्यक्रम में पर्चे बांटे गए, जिसमें देवी दुर्गा के बारे में आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया गया। इसे लेकर विरोध हुआ और छात्रों के बीच काफी मारपीट हुई।
2016 : देश विरोधी नारेबाजी का आरोप
जेएनयू से जुड़ा सबसे बड़ा विवाद नौ फरवरी 2016 का है। जब कैंपस में 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में देश विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा। जिस पर खूब बवाल हुआ। इस नारेबाजी के कुछ वीडियो सामने आए थे, जिसमें कुछ चेहरा ढके हुए छात्र देश विरोधी नारे लगा रहे थे। इसको लेकर छात्र गुट आपस में भिड़ गए थे।
आरोप तत्कालीन जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और तत्कालीन छात्रसंघ के सदस्य उमर खालिद पर लगा। हालांकि वामपंथी छात्रों ने इस तरह के नारे लगाने के आरोपों से इनकार किया। 12 फरवरी को दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया। उन पर देशद्रोह के आरोप लगे। वहीं, उमर खालिद अंडरग्राउंड हो गए। दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बन भट्टाचार्य समेत कुल 10 लोगों को आरोपी बनाया गया। हालांकि कन्हैया कुमार अपने ऊपर लगे आरोपों को कई बार खारिज कर चुके हैं।
फीस बढोत्तरी को लेकर हंगामा
मामला 2019 का है। फीस बढ़ोत्तरी को लेकर जेएनयू में जमकर हंगामा हुआ। छात्रों ने संसद तक पैदल मार्च निकाला। इस दौरान छात्रों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई। तब पुलिस पर पथराव हुए। पुलिस ने भी लाठीचार्ज कर दिया था।
2020 : नकाबपोश लोगों ने किया हमला
जेएनयू 2020 में फिर सुर्खियों में आया। पांच दिसंबर को कैंपस में नकाबपोश लोगों ने हॉस्टल में घुसकर छात्रों के साथ मारपीट की। कई छात्रों को इस दौरान अस्पताल में भर्ती भी कराना पड़ा। लेकिन अभी तक गुनहगार पकड़े नहीं गए हैं।
2022 : नॉनवेज खाने को लेकर विवाद, पथराव
पिछले साल अप्रैल में भी जेएनयू में जमकर बवाल हुआ था। तब यहां कावेरी हॉस्टल के छात्रों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। ये विवाद रामनवमी पर नॉनवेज खाने को लेकर शुरू हुआ था। इसके बाद पथराव और तोड़फोड़ भी हुआ। इसमें एबीवीपी और लेफ्ट संगठनों के 10 से ज्यादा छात्र घायल हो गए थे। वहीं पिछले साल दिसंबर शुरू में विश्वविद्यालय के दीवारों पर ब्राह्मणों और बनियों के खिलाफ नारे लिखे गए हैं। जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की दीवारों पर असामाजिक तत्वों ने ब्राह्मण समुदाय के खिलाफ अमर्यादित नारे लिखे। दीवारों पर लाल रंग से लिखा गया- ’ब्राह्मणों कैंपस छोड़ो’ ’ब्राह्मणों-बनियों हम तुम्हारे लिए आ रहे हैं, तुम्हें बख्शा नहीं जाएगा’ और ’शाखा लौट जाओ’। इसके अलावा लिखा था कि यहां पर अब खून बहेगा। विश्वविद्यालय परिसर में जाति विशेष के खिलाफ लिखी गई इन बातों से जेएनयू एक बार फिर विवादों में आ गया है।
विश्वविद्यालय के कई छात्रों और छात्र संगठनों ने जेएनयू परिसर की दीवारों पर लिखे ब्राह्मण और बनिया विरोधी नारों पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। वहीं विश्वविद्यालय में ब्राह्मणों और बनियों के खिलाफ लिखी सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गई हैं, जिससे विभिन्न छात्र संगठनों में आक्रोश है।