सचिन कुमार सिंह भोपाल/नई दिल्ली।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ आईएसएस अधिकारी संतोष वर्मा एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। आरक्षण को लेकर उन्होंने जिस तरह “ब्राह्मण की बेटी” को लेकर टिप्पणी की, उसने सामाजिक और राजनीतिक हलकों में तूफ़ान खड़ा कर दिया है। बयान वायरल होते ही कई संगठनों ने इसे “जातीय अपमान” और “प्रशासनिक आचरण का उल्लंघन” बताया है।
अजाक्स (अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ) के प्रांतीय अधिवेशन में उन्होंने कहा कि आरक्षण “तब तक होना चाहिए जब तक मेरे बेटे को कोई ब्राह्मण अपनी बेटी दान या संबंध न बनाए।” उनके इस बयान के बाद सवर्ण और ब्राह्मण संगठनों ने कड़ी निंदा की है और आईएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जा रही है।
विवाद बढ़ने पर संतोष वर्मा ने माफी भी मांगी है। उन्होंने कहा कि उनका कथन “कन्यादान” पर आधारित था और उनका उद्देश्य किसी सामुदायिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था।
विवादों से पुराना नाता
यह पहली बार नहीं है जब वर्मा चर्चा में आए हैं। 2021 में उन पर प्रमोशन के लिए फर्जी दस्तावेज बनाने का आरोप लगा था। आरोप था कि उन्होंने न्यायाधीश का नाम लेकर जज की साइन का गलत इस्तेमाल किया था।
इतना ही नहीं, उनकी पर्सनल लाइफ को लेकर भी विवाद रहा है। एक महिला ने उन पर शादी का झांसा देने और बाद में धोखा देने का आरोप लगाया है।
प्रमोशन के लिए फर्जी साइन की वजह से 2021 में हुई थी गिरफ्तारी
साल 2021 में संतोष वर्मा को तब गिरफ्तार कर लिया गया जब उन पर फर्जी दस्तावेज तैयार करके प्रमोशन लेने का आरोप लगा। आरोप लगा था कि संतोष वर्मा ने IAS कैडर अलॉट होने पर DPC (डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी) के लिए स्पेशल जज विजेंद्र रावत के फर्जी साइन कर रिपोर्ट तैयार की थी। 27 जून को इंदौर में एमजी रोड पुलिस ने केस दर्ज किया था। बाद में उन्हें आधी रात गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था। कुछ महीने जेल में बिताने के बाद वह जमानत पर रिहा हुए थे।
महिला ने भी लगाया यौन शोषण का आरोप
गिरफ्तारी से करीब चार महीने पहले संतोष वर्मा और एक महिला के बीच संबंधों की भी खूब चर्चा हुई थी। आईएएस अफसर संतोष वर्मा ने एक महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए उस पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया कि उसने दस्तावेज में पति के रूप में उनका नाम दर्ज करा लिया है। वहीं महिला ने नवंबर 2016 अफसर पर शादी के बाद धोखा देने का आरोप लगाया था। वह भी थाने में इसकी शिकायत कर चुकी थी। शिकायत में महिला ने कहा था कि वर्मा के साथ उसने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की थी। दोनों में प्रेम संबंध बन गया। दोनों ने शादी की और कुछ समय पत्नी की तरह सरकारी क्वार्टर में साथ रही। बाद में उसे पता चला कि वर्मा एक दूसरी शादी कर चुके हैं।
प्रशासनिक हलकों में बेचैनी
अधिकारियों के एक बड़े समूह का मानना है कि “सर्विस में बैठे लोग जातीय भाषण देने लगें, तो प्रशासन की विश्वसनीयता ही खत्म हो जाएगी।”
सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार इस बयान को “सिर्फ निजी राय” मानकर छोड़ देगी
या उच्च स्तर पर विभागीय कार्रवाई शुरू होगी?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, विधानसभा चुनाव के बाद जब राज्य की राजनीति अभी भी सोशल-इक्वेशन पर केंद्रित है, ऐसे बयान सरकार को एक नए विवाद में घेर सकते हैं। विपक्ष ने पहले ही कहना शुरू कर दिया है कि “सरकारी अधिकारी खुलेआम जाति पर टिप्पणी कर रहे हैं, यह शासन की ढील का नतीजा है।”
जो भी हो आईएसएस संतोष वर्मा का यह विवाद अब तूल पकड़ता दिख रहा है, सोशल मीडिया पर भी इस वीडियो को वायरल कर कड़ी कार्रवाई की मांग की जा रही है।
यह कहना कि “आरक्षण तभी खत्म हो जब ब्राह्मण अपनी बेटी दें” —
मतलब जाति को ‘निच–ऊँच’ नज़रिए से देखना और सामाजिक रिश्तों को व्यापार की तरह पेश करना। यह अत्यंत हीन मानसिकता का संकेत है।
यह बयान दलित–सवर्ण संघर्ष को भड़काने वाला है
IAS अधिकारी का कर्तव्य जातीय सद्भाव बनाए रखना है,ना कि जातीय चोट पहुँचाने वाली टिप्पणी देना।
ऐसे शब्द प्रशासन की तटस्थता पर सवाल उठाते हैं।
आरक्षण की बहस को व्यक्तिगत, गंदे और निजी अपमान के स्तर पर ले जाना खतरनाक है, अगर कोई अधिकारी वैज्ञानिक, संवैधानिक आधार छोड़कर “रोटी–बेटी के संबंध” वाली भाषा में तर्क दे रहा है,तो यह दर्शाता है कि वह समाजिक न्याय को समझता ही नहीं है।
IAS पद पर रहते हुए यह मानसिकता और भी चिंता का विषय है
क्योंकि ऐसे लोग जब फाइलों पर साइन करते हैं,
तो
👉 क्या वे जाति देखकर फैसले नहीं करेंगे?
👉 क्या वे किसी वर्ग के प्रति पक्षपाती नहीं होंगे?
👉 क्या ऐसी सोच प्रशासनिक निष्पक्षता को कमजोर नहीं करती?
यह बयान ‘घटिया और नीच मानसिकता’ का सीधा प्रमाण है
आरक्षण खत्म करना हो तो संवैधानिक तर्क दें, सामाजिक–आर्थिक आंकड़े दें,
न कि किसकी बेटी किसे दे वाली भाषा में गिरें। यह बयान किसी भी सिविल सेवा अधिकारी के लिए अनुशासनहीन, जातिवादी और प्रशासनिक आचार संहिता का उल्लंघन है।





















































