सचिन कुमार सिंह। एडिटर
बिहार की सत्ता बदलते ही सबसे बड़ा राजनीतिक संकेत गृह विभाग के बंटवारे में दिखा। 20 साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि नीतीश कुमार के हाथ से गृह मंत्रालय गया और अब वह सीधे बीजेपी के पास जा पहुंचा। वह भी पार्टी के सबसे प्रभावशाली चेहरे, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के पास। अब सबके मन में सहज कुछ सवालों के बिच्छू एक साथ डंक मार रहे हैं कि क्या यह सिर्फ विभागों का सामान्य बंटवारा है?, या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक संदेश छिपा है?
ज़मीन पर मौजूद तथ्य बताते हैं कि मामला इससे कहीं गहरा है।
चुनाव के दौरान अपराध अचानक बड़ा मुद्दा बना
पूरे बिहार में खासकर चंपारण, सीवान, गोपालगंज, सारण, इन जिलों में चुनाव से ठीक पहले अपराध के मामले तेजी से सामने आए। हत्या, रंगदारी, साइबर ठगी, भूमि विवाद,
शराब माफिया, गैंगवार । इन सब मुद्दों पर विपक्ष ने सत्ता पक्ष को घेरने का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं दिया। हर दिन सोशल मीडिया पर बढ़ते अपराधों का कच्चा-चिट्ठा डाल यह बताने की कोशिश हो रही थी कि राजद के जंगलराज का हो-हल्ला मचाने वाले एनडीए के राज में अभी कौन मंगलराज चल रहा। राज्य में अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। और सही है कि इस मामले में राज्य सरकार बचाव की मुद्रा में आ गई थी। इन इन सबने सीधे जनता में संदेश दिया कि कानून-व्यवस्था फिसल रही है।
भाजपा ने चुनाव प्रचार में बार-बार इसे मुद्दा बनाया। यानी पार्टी ने इसे जन-भावना का केंद्र समझ लिया था। लगता है इसके बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मन ही मन तय कर लिया था कि अब चाहे जो हो इस बार ‘कानून-व्यवस्था अब हम देखेंगें।
नीतीश कुमार 2005 से अब तक गृह विभाग अपने पास रखते आए हैं। यह उनकी पहचान थी- “सुशासन बाबू”। लेकिन इस बार संख्यात्मक दबाव, गठबंधन की राजनीतिक मजबूरी और भाजपा का सख्त रुख, इन तीनों के कारण नीतीश के पास विकल्प नहीं बचा। गृह विभाग का भाजपा के पास जाना इस बात का सीधा संकेत है कि गठबंधन की असली ड्राइविंग सीट अब उसी के हाथ में है।
सम्राट चौधरी को गृह विभाग का मतलब?
यह सिर्फ मंत्रालय नहीं है, बल्कि भाजपा का भविष्य का नेतृत्व संकेत है।
अपराध नियंत्रण, बेहतर पुलिसिंग, प्रशासन व जिला अधिकारियों पर नियंत्रण, ये सब गृह विभाग के पास रहते हैं। सम्राट चौधरी को यह मंत्रालय देना यह बताना है कि
वह अब अपनी सरकार में सिर्फ भागीदार नहीं, बल्कि असली शक्ति है।
मेरी समझ से यह 2029 और उससे आगे की राजनीति का आधार है। यह सच है कि भाजपा नेतृत्व पच्चीस से तीस नहीं उससे आगे की सोच रख रहा है, जब नीतीश उम्र के उस पड़ाव पर होंगे जब स्वयं नेतृत्व परिवर्तन होना अवश्यभांवी होगा। इसके लिए भाजपा अभी से अपना चुनावी गोटी सेट करने में लगी है। वैसे भी इस चुनाव के दौरान भी आम जनता अपराध व जंगलराज के दावे के बीच झूलती रही और उसने एक बार फिर एनडीए के तथाकथित सुशासन पर ही ज्यादा भरोसा किया। लगता है भाजपा इस बार अपराध के मुद्दे पर किसी समझौते के मूड में नहीं है। फिलहाल आगे क्या होगा, यह तो भविष्य के गर्त में है, मगर इस बदलाव को अगर पोजिटिव वे में लिया जाय तो उम्मीद है कि नए गृह मंत्री कम उपमुख्यमंत्री कुछ ऐसा करेंगे जो एक नजीर पेश करे।
नए गृह मंत्री से जनता की उम्मीद – अब डर नहीं, भरोसा चाहिए
सम्राट चौधरी के गृह मंत्री बनने के बाद जनता की उम्मीदें पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। बिहार के लोग अब सिर्फ बयान नहीं, जमीन पर बदलाव देखना चाहते हैं। बढ़ते अपराध, गैंगस्टर राजनीति, साइबर ठगी, शराब माफिया, जमीन माफिया—इन सबके बीच जनता की सीधी अपेक्षा है कि नई गृह व्यवस्था डर नहीं, सुरक्षा देगी।
लोग चाहते हैं कि—
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थानों में दलालों का राज खत्म हो,
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जमीन विवाद में पुलिस निष्पक्ष कार्रवाई करे,
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महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बने,
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रात में गश्ती बढ़े,
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साइबर अपराधियों पर तुरंत कार्रवाई हो,
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नक्सल और रूट स्तर के अपराधियों पर कड़ी रोक लगे,
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और सबसे महत्वपूर्ण—पुलिस की राजनीतिक दखल से आज़ादी हो।
सम्राट चौधरी का मंत्री बनना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि BJP ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाया है। जनता की उम्मीद है कि यह बदलाव केवल फाइलों तक सीमित न रहे—बल्कि मोतिहारी से लेकर मधुबनी, पटना से लेकर सहरसा तक हर जिले में कानून-व्यवस्था में वास्तविक सुधार दिखे।



















































