सचिन कुमार सिंह। एडिटर
एनडीए ऐतिहासिक बहुमत की ओर, महागठबंधन 30 सीटों के अंदर सिमटा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में वह हुआ जिसकी कल्पना आरजेडी ने शायद नहीं की थी। कभी अपनी जीत का सबसे मजबूत आधार माना जाने वाला ‘MY समीकरण’ (मुस्लिम–यादव) इस बार बुरी तरह बिखर गया। नतीजा—एनडीए अब तक के सबसे बड़े बहुमत की ओर बढ़ गया, जबकि महागठबंधन 30 से भी कम सीटों में सिमटता दिख रहा है।
मुस्लिम वोट बैंक की पहली बार बड़ी टूट: AIMIM ने ‘छक्का’ मारा
इस चुनाव का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह रहा कि मुस्लिम मतदाता इस बार राजद के साथ मजबूती से नहीं खड़े दिखे।
आरजेडी के 18 मुस्लिम उम्मीदवारों में से सिर्फ 3 जीत रहे हैं।
दूसरी ओर, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल में 6 सीटों पर जीत हासिल कर भारी सेंध लगा दी।
विश्लेषकों का कहना है कि मुस्लिम मतदाता अब “एकतरफा” नहीं रहे और वे क्षेत्रीय मुद्दों व स्थानीय नेतृत्व को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।
यादव मतदाता भी खिसका, मोदी–नीतीश फैक्टर ने समीकरण बदला
यादव बहुल सीटों पर भी आरजेडी के लिए तस्वीर निराशाजनक रही।
पार्टी ने 50 यादव उम्मीदवार उतारे थे,
लेकिन इनमें से सिर्फ 3 जीत के करीब हैं।
ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि केंद्र और राज्य की योजनाओं का लाभ यादव समुदाय तक भी पहुंचा है। ‘लाभार्थी वर्ग’ ने इस बार जाति से ऊपर जाकर वोट दिया, जिसने आरजेडी की पूरी रणनीति को जमीन पर धराशायी कर दिया।
क्या ‘जंगलराज’ की छवि बनी सबसे बड़ा बोझ?
राजनीति के जानकारों का मानना है कि आरजेडी भले ही युवापन, बेरोज़गारी और विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही थी, लेकिन जनता के एक बड़े वर्ग के मन से ‘जंगलराज’ की पुरानी छवि अभी भी धुंधली नहीं हुई है।
एनडीए ने इस नैरेटिव को आक्रामक तरीके से उठाया, जिसका लाभ उन्हें मिला।
आरजेडी के लिए अब क्या?
नतीजों के प्रारंभिक विश्लेषण से साफ है कि—
MY वोट बैंक अब ठोस नहीं रहा,
मुस्लिमों ने AIMIM विकल्प चुना,
यादवों ने योजनाओं के लाभ और स्थिरता के नाम पर एनडीए को प्राथमिकता दी,
और ‘जंगलराज’ की छवि अब भी वोटिंग व्यवहार को प्रभावित कर रही है।
राजनीति विशेषज्ञों का कहना है—
“अगर आरजेडी को 2025 की हार को इतिहास का हिस्सा नहीं बनने देना है, तो उसे जातीय समीकरण के खोल से बाहर निकलकर विकास, प्रशासन, सुरक्षा और नई सामाजिक साझेदारी पर काम करना होगा।”
यह चुनाव साफ इशारा करता है कि बिहार की राजनीति अब बदल रही है। मतदाता योजनाओं, स्थिरता, स्थानीय मसलों और नेतृत्व की विश्वसनीयता को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। आरजेडी को नई सामाजिक–राजनीतिक रणनीति बनानी होगी, वरना ‘MY फैक्टर’ सिर्फ इतिहास की किताब का हिस्सा बन सकता है।




















































