– पीके के “पढ़ा-लिखा” तंज के बीच के.सी. सिन्हा बनाम सुनील की तुलना भी चर्चा में’’
सचिन कुमार सिंह।
बिहार में नई सरकार के गठन के बाद मंत्रिपरिषद में विभागों का बंटवारा हो गया है। इसी के साथ शिक्षक व सरकारी कर्मियों के बीच यह जानने की उत्सुकता बढ़ गई कि शिक्षा विभाग की कमान किसे मिली। जदयू के सुनील कुमार को एक बार फिर शिक्षा विभाग सौंपा गया है। ऐसे में आमलोगों में इस बार सबसे ज्यादा जिज्ञासा है कि आखिर उनके शिक्षा मंत्री कितने शिक्षित व योग्य है। हालांकि इससे पूर्व भी उनको यह जिम्मेदारी मिली थी, मगर इस बार चुनावी हार के बाद जनसुराज ने अपने नेता गणितज्ञ केसी सिन्हा व अन्य के हारने पर तंज कसते हुए कहा गया था कि बिहार के लोगों को शिक्षित नहीं अनपढ़ नेताओं को चुनने की समझ है, राजनीतिक गलियारों में तुलना, चर्चा और तंज, तीनों एक साथ चल रहे हैं। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि नये शिक्षा मंत्री सुनील कुमार की शैक्षणिक व प्रशासनिक योग्यता क्या है और वे इस मामले में केसी सिन्हा से उन्नीस साबित होते हैं या बीस।
सुनील कुमार ने सेंट स्टीफेंस से पढाई की है। सुनील कुमार की शैक्षिक और प्रशासनिक यात्रा प्रभावशाली रही है। वे दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में पोस्ट-ग्रेजुएट हैं। उसी संस्थान से जहां से देश के कई शीर्ष राजनेता और नौकरशाह निकले।
उन्होंने यूपीएसएसी पास कर 1987 बैच के आईपीएस अफसर के रूप में देश की सेवा की। बिहार पुलिस में कई उच्च पदों पर रहे और 2020 में डीजी के तौर पर रिटायर हुए।
इसके अलावा वे बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम के चेयरमैन-क्यूएमडी भी रहे।
प्रशासन, कानून-व्यवस्था और नीति-निर्माणकृतीनों का उनका अनुभव उन्हें शिक्षा मंत्रालय के लिए स्वाभाविक रूप से योग्य बनाता है।
गोपालगंज की भोरे सीट से वे दूसरी बार विधायक बने हैं और शिक्षा क्षेत्र में सुधार के कई प्रयास भी किए हैं।
इसी संदर्भ में अब राजनीतिक गलियों में एक चुभता सवाल उभर रहा है।
“अगर पढ़ाई- लिखाई ही मापदंड है, तो सुनील कुमार बनाम के.सी. सिन्हा की तुलना खुद पीके के तंज को कमजोर नहीं कर देती?” राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि
“पढ़ाई का मुद्दा उठाना ठीक था, लेकिन इसे सब पर समान रूप से लागू न कर पाना कई जगह पीके की आलोचना का कारण बन गया।”
दोबारा शिक्षा मंत्री बनते ही सुनील कुमार की प्राथमिकताएँ
उन्होंने संकेत दिया है कि उनका फोकस रहेगा
डिजिटल शिक्षा, स्कूलों में आधारभूत सुविधाएँ, शिक्षक प्रशिक्षण, छात्र कल्याण
मॉडर्न टेक-ड्रिवन एजुकेशन मॉडल, उनका लक्ष्य बिहार के शिक्षा ढांचे को आधुनिक और गुणवत्तापूर्ण बनाना है।
एक तरफ पीके “पढ़ाई-लिखाई” को सबसे बड़ा राजनीतिक मापदंड मानकर एनडीए विधायकों पर तंज कसते रहे, दूसरी तरफ एनडीए के पास सुनील कुमार जैसे अत्यधिक शिक्षित, अनुभवी और प्रशासनिक रूप से सुदृढ़ मंत्री मौजूद हैं। जो पीके के उस दावे को ही कमजोर करते हैं कि “एनडीए में योग्य लोगों की कमी है।”
सुनील कुमार पढ़ाई में हमेशा से ही उत्कृष्ट रहे हैं। उन्होंने दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। यह वही कॉलेज है जहां भारत के कई प्रतिष्ठित नेता और अधिकारी पढ़ चुके हैं। उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि काफी मजबूत और सॉलिड मानी जाती है, जो शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभालने के लिए उन्हें योग्य बनाती है। सुनील कुमार केवल पढ़े-लिखे ही नहीं हैं, बल्कि उन्होंने यूपीएससी सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास करके आईपीएस अधिकारी के रूप में सेवा भी की है। वे 1987 बैच के आईपीएस अफसर रहे हैं और बिहार पुलिस में विभिन्न उच्च पदों पर कार्यरत रहे। 2020 में वे डायरेक्टर जनरल (डीजी) के पद से रिटायर हुए। इसके अलावा, उन्होंने बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर भी कार्य किया। लॉ एंड ऑर्डर से लेकर प्रशासनिक कार्यों में उनका अनुभव अत्यंत व्यापक है। यही कारण है कि उन्हें दोबारा शिक्षा विभाग की कमान सौंपी गई। सुनील कुमार गोपालगंज जिले की भोरे विधानसभा सीट से दूसरी बार विधायक बने हैं। उन्होंने शिक्षा और प्रशासनिक सुधारों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। उनका प्रशासनिक अनुभव उन्हें शिक्षा नीतियों को लागू करने और राज्य के शिक्षा ढांचे को मजबूत बनाने में मदद करता है।
शिक्षा मंत्री के रूप में सुनील कुमार ने शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल शिक्षा, स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का सुधार, शिक्षकों के प्रशिक्षण और छात्र कल्याण योजनाओं पर विशेष ध्यान देने का इरादा जताया है। उनका लक्ष्य शिक्षा को सुलभ, गुणवत्तापूर्ण और आधुनिक बनाना है। सुनील कुमार का प्रशासनिक और शैक्षिक अनुभव उन्हें शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी निभाने के लिए अत्यंत योग्य बनाता है। उनके नेतृत्व में बिहार में शिक्षा सुधारों की नई पहल देखने को मिल सकती है। दोबारा शिक्षा मंत्री बनते ही उनके प्रयास शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने की उम्मीद जगाते हैं।





















































