मोतिहारी। अशोक वर्मा
सर्वशास्त्र शिरोमणि गीता ग्रंथ का एक महत्वपूर्ण श्लोक है-दृ ष्यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानी भर्वति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तादात्मानं सुजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामी युगेयुगे।।
अर्थात जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब- तब ही मैं अपने रूप को रचता हूं अर्थात प्रकट करता हूं क्योंकि साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए और दूषित कर्म करने वालों का नाश करने के लिए तथा धर्म स्थापन करने के लिए युग -युग में प्रकट होता हूं ।
इस श्लोक को प्रायरू सभी धार्मिक मंचों पर वक्ताओं द्वारा रखा जाता है। दुनिया के वर्तमान दौर को देखते हुए चाहे वे धर्मगुरु हो या आम श्रोता सभी इस मंत्र से सहमत होते हुए इस धर्म ग्लानी के दायरे से अपने आप को मुक्त नहीं कर पा रहे है।यद्यपि वे वास्तविक धर्म मार्ग पर चलना चाहते हैं लेकिन आत्मा का पावर कमजोर होने से वह सफल नहीं हो पा रहे हैं।उन्हे उद्धारक की प्रतीक्षा हैं जो धर्मग्लानि को समाप्त कर वास्तविक धर्म स्थापना कर सके।
गिरती कला के कारण पात्रता में भी बड़ी गिरावट आई है जिसके कारण उद्धारक के अवतरण होने के बाद आम लोगों को पहचानने मे थोडी दिक्कत होती है। एक बार माउंट आबू में शिव बाबा से मिलन के दौरान एक शंकराचार्य की आंखों से अनवरत आंसू बहने लगे ,उनके वस्त्र भी भींग गए ,बाद में उन्होंने अपने अनुभव को मंच पर साझा करते हुए कहा कि हम सभी को यह मालूम था कि परमात्मा का अवतरण ष्भारत की भूमि पर हो चुका है लेकिन कहां हुआ है इसकी जानकारी नहीं थी ।आज यहां आने के बाद एहसास हुआ की ब्रह्माकुमारी संस्था में परमात्मा का अवतरण हुआ है।
अवतरण की गाथा –
एक अति धर्म परायण हीरे और रत्नो के व्यापारी दादा लेखराज थे उनका जन्म1876 मे सिंध के कृपलानी परिवार मे हुआ था। बाल्यकाल से वे अति संवेदनशील थे तथा धर्म के प्रति उनमे विशेष आस्था थी। उनके पिता एक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे । अपने विशेष गुणो के कारण गेहूं के छोटे व्यापारी से उठकर वे हीरे के बडे व्यापारी बन गये।उनमे हीरे को परखने की अद्भुत शक्ति और कला थी, इन्ही गुणो के कारण वे एक प्रसिद्ध जौहरी बन गए ।अति धर्म परायण रहने के कारण युवावस्था आते-आते कई गुरुओं का उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हुआ। अपने एक संबंधी के हीं हीरे की दुकान में सहयोगी बन काम किया। अपने व्यवहार कुशलता एवं ईमानदारी के कारण उनका व्यवसाय काफी ऊंचाई को प्राप्त किया। राजे महाराजे के यहां उनका सीधा आना जाना होता था, बड़ी प्रतिष्ठा थी, राजाओं के कक्ष में सीधे प्रवेश करने का उन्हें अधिकार प्राप्त था । व्यवसाय मे व्यसतता के वावजूद प्रतिदिन उनके आवास पर पूजा पाठ एवं हवन यज्ञ आदि होता था ।नियमित सत्संग में उनके परिवार के सदस्यों के साथ अन्य लोग भी बैठते थे। दादा लेखराज के चेहरे पर एक अजीब अलौकिक दिव्यता थी।एक बार कोलकाता के बबूलनाथ मंदिर के पास स्थित उनके आवास पर एक बहुत बड़े संत का प्रवचन चल रहा था, सभी बड़े हीं चाव से उस संत का प्रवचन सुन रहे थे।दादा लेखराज भी वहां बैठे हुए थे।दादा लेखराज को कुछ असहजता महसूस हुई उन्हें एक अलौकिक नशा के साथ ,अशरीरीपन का अनुभव हुआ ।वे सत्संग से अचानक उठकर अपने कमरे में चले गए। सत्संग में बैठे हुए सभी लोगों को बाबा को उठकर जाने पर आश्चर्य हुआ क्योंकि सत्संग के बीच से बाबा कभी भी नहीं उठते थे। ब्रह्मा कुमारी मनोहर इंदिरा जी ने इस घटना पर उस समय बताया था कि जब बाबा कुछ देर तक नहीं लौटे तो मैं और उनकी युगल जसोदा माता दोनों कमरे में गए और अंदर का दृश्य देख आश्चर्यचकित रह गए ।पूरा कमरा लाल प्रकाश से भरा हुआ था ,दादा के नेत्रों से लाल किरणे निकल रही थी,उनका चेहरा भी लाल हो गया था।ऐसा लगा कि दादा के मुख से कोई दुसरा बोल रहा है।
वह आवाज थी–
ष्निजानंद स्वरूपं, शिवोहम्
ज्ञान स्वरूप शिवोहम् शिवोहम्
प्रकाश स्वरूपं, शिवोहम् ,शिवोहम्।ष्
दादा के जब नेत्र खुले तो वे कमरे मे नीचे से ऊपर तक देखने लगे क्योंकि उन्होंने जो दृश्य देखा था उसके स्मृति में हुए खोए हुए थे। दादी जी ने उनसे पूछा कि आप क्या देख रहे हैं तो उन्होंने बोला कि वह कौन था एक लाइट थी ,एक शक्ति थी कोई नई दुनिया थी उसके बहुत ही दूर ऊपर सितारों की तरह कोई थे और जब वह स्टार नीचे आते थे तो कोई राजकुमार बन जाता था तो कोई राजकुमारी बन जाती थी। उस शक्ति ने मुझसे कहा ऐसी हीं दुनिया तुम्हें बनानी हैष् परंतु उसने कुछ बताया नहीं कि कैसे बनानी है। मैं यह दुनिया कैसे बनाऊंगा? वह कौन था कोई माइट थी।
दरअसल दादा ने समझा कि मेरे गुरु ने यह साक्षात्कार कराया है,वे गुरु के पास जाकर उन्हें इस साक्षात्कार के लिये आभार प्रकट करना चाहे,लेकिन गुरू ने कहा कि आपके भक्ति का वह फल साक्षात्कार के रूप मे मिला ,इसमे मेरा कोई भी योगदान नही है।
दादा अपने गुरु के पास से संतुष्ट होकर लौट आये ।बाद मे विभिन्न जगहो पर बाबा को विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हुआ।उन्हे अपने आदि स्वरूप के साथ विनाश के निमित्त बनने वाले अणु बम तथा उस समय के मित्र देश अमेरिका और रूस भविष्य मे एक दुसरे के दुश्मन बनेंगे आदि का साक्षात्कार हुआ।
साक्षात्कार और नई दुनिया के निर्माण की जिम्मेदारी मिलने के बाद दादा का नामकरण श्वि बाबा ने ब्रह्मा रखा।
ब्रह्मा बाबा अपने व्यवसाय को समेट इस महा रूद्र अविनाशी ज्ञान यज्ञ के प्रति समर्पित हो गए। सत्संग में भीड़ होने लगी कई लोगों को ब्रह्मा बाबा में श्रीकृष्ण का साक्षात्कार होने लगा ,कई बहने एवं भाई घंटो ध्यान मे उपराम अवस्था में चले जाते थे, उन्हें नई दुनिया का साक्षात्कार भी होने लगा और इस तरह से संस्था का नाम बडी तेजी से फैलने लगा और, काफी लोग खींचे- खींचे आने लगे। इसी बीच राधे नाम की एक 16 वर्षीय कन्या का आगमन यज्ञ में हुआ। आते ही उनमें बाबा के प्रति निश्चय हुआ और यज्ञ की माता बन गई सभी उन्हें बड़े हीं प्यार और सम्मान से मम्मा कहते थे ।
चूकि इस संस्था की स्थापना स्वयं परमात्मा ने ब्रह्मा तन का आधार लेकर किया था इसलिए ब्रह्मा बाबा ने अपनी कुल संपत्ति को आठ माताओं के नाम का एक ट्रस्ट बनाकर उनके चरणों में समर्पित कर दिया।ट्रस्ट की सबसे बड़ी विशेषताएं यह रही कि उस ट्रस्ट में बाबा ने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं रखा ।उन्होंने नारी शक्ति का वैसे समय मान बढ़ाया जब नारी को सिर्फ भोग्या ,नर्क का द्वारा तथा पैरों की जूती सभझा जाता था।उस समय विधवा प्रथा थी, विधवा नारी अपमानित और प्रताडित जीवन जीती थी। बाबा ने वास्तव में भारत मां के वास्तविक स्वरूप को स्थापित किया और विश्व का यह पहला संगठन बना जो नारी शक्ति के नेतृत्व में आज 88 वर्षाे से निर्वाध गति से चल रहा है।
शिव बाबा ने ब्रह्मा तन का आधार लेकर दुनिया को यह बताया कि 5000 वर्ष का यह सृष्टि चक्र है जिसमें चार युग होते है।सभी युग 1250 – 1250 वर्ष का होता है । 5000 वर्ष का एक कल्प होता है जो अपने समय पर एक बार पुनः घूम जाता है और पुरानी दुनिया बदल कर नई दुनिया बन जाती है ।कल्प समापन पर मनुष्य जब मूल्य विहीन पतित हो जाता है तब मैं आता हूं और पतित दुनिया को पावन बनाता हूं।ब्रह्मा बाबा के मुख से उन्होने बताया कि यह प्रतिक्रिया प्रत्येक 5000 पर होती है।
चुकि यह ज्ञान बिल्कुल नया था,इसलिये दुनिया वालों ने इसे सुना,लेकिन कम लोगों ने माना। यद्यपि संस्था ने बहुत से झंझावात झेली बहुत से व्यवधान भी हुये लेकिन चुकि इसे स्वयं परमात्मा चला रहे थे इसलिए यह संस्था चलती रही। चूकि स्थापना अविभाजित भारत के सिंध प्रांत कराची मे हुई थी जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में पड़ गया तो ईश्वरीय प्रेरणा से 1950 में यह संस्था राजस्थान के आबू पर्वत पर आई और आरंभ में किराए के मकान में संस्था चली, लेकिन धीरे-धीरे आज यह संस्था अपने चरित्र निर्माण एवं मूल्यों को पुनर्स्थापित करने के मिशन के आधार पर विश्व भर में फैल गई है। आज लगभग 150 देश में संस्था अपने सेवाकेन्द्रों के माधयम से कार्य कर रही है। दुनिया जब विकार वासना, व्यसन, एवं मूल्य विहीन हो गई तथा जब ऐसा दौर आया जब सभी लोग धर्म को खूब माने ,धार्मिक अनुष्ठान भी खूब करने लगे लेकिन धर्म मार्ग पर चलना छोड दिये ।यही धर्म ग्लानी के समय परमात्मा का भारत की भूमि पर अवतरण हुआ और उन्होंने एक धर्म एक मत जिसका नाम आदि सनातन देवी देवता धर्म था,की स्थापना का कार्य आरंभ किया। सभी जानते हैं कि भारत की भूमि हीं शिव परमात्मा की अवतरण भूमि है और इसी भूमि से विश्व को ज्ञान मिलता है। आरंभ में एक धर्म एक मत एक झंडा होता है जिसे आदि सनातन देवी देवता धर्म कहते हैं एक बार फिर परमात्मा उस धर्म की स्थापना कर रहे हैं जो अब संपूर्णता की ओर है। परमात्मा ने अवतरण के बाद जो ईश्वरीय ज्ञान दिया उसमें बताया कि नई दुनिया आरंभ होने के पूर्व 100 वर्ष का पुरुषोत्तम संगम युग होता है। इस युग में चयनित नौ लाख आत्माएं जो सतयुग के आरंभ में आएगी उन्हें पूरी तरह से पवित्र , मूल्य निष्ट और बेदाग हीरा समान बनकर हीं वहां जाना है, इसलिए पुरुषोत्तम संगम युग को हीरे तुल्य युग कहा जाता है। दरअसल भारत से हीं पूरे विश्व का आरंभ फिर विस्तार होता है इसलिए यह आदि और अविनाशी भूमि है, इसका विनाश नहीं होता है। प्रत्येक 5000 वर्ष पर सिर्फ परिवर्तन होता है। जिन गुणो के आधार पर भारत की महिमा है वे गुण हैं प्रेम ,पवित्रता ,मधुरता, परोपकारिता ,निर्माणता ,नम्रता, उदारता ,क्षमाशीलता ,सहनशीलता, रमणीकता, धैर्यता , आदि। यह सारे गुण हर भारतीय चाहता है कि मेरे अंदर रहे लेकिन गिरती कला जो स्थापना के ढाई हजार वर्ष के बाद शुरू होती है , आत्मा का पावर कमजोर हो जाता है, और जब परमात्मा का अवतरण होता है तो सहज राजयोग के अभ्यास एवं ईश्वरीय पढ़ाई से तमाम गुणो को चयनित आत्माओं में भरते हैं, फिर उन गुणो के आधार पर आदि आत्माएं 5000 वर्ष तक अपने कार्य का निर्वहन करती है ।और 5000 वर्ष के बाद फिर परमात्मा आते हैं ठीक उसी तरह शरीर का आधार लेकर कार्य करते हैं ।
88 वर्ष पूर्व परमात्मा ने जो कार्य आरंभ किया वह अब समापन की ओर है। शिव बाबा ने ब्रह्मा बाबा जैसे पात्र को चुना। निरंहकारिता उनमें कूट-कूट कर भरी थी, उन्होंने सिर्फ अपने लक्ष्य को देखा ।बाधा तो बहुत आई लेकिन बाधाओं को उन्होंने साइट सीन समझ कर पार किया। एक तरह से शिव बाबा ने ब्रह्मा बाबा को एक सैंपल के रूप में दुनिया के समक्ष पेश किया और ब्रह्मा बच्चों को उन्होंने कहा कि फॉलो फादर ।जिन लोगों ने बाबा को फॉलो किया वे इश्वरीय मार्ग में काफी आगे बढ़े। साक्षात्कार के बाद व्रह्मा बाबा ने जितनी बातें कही थी आज वे तमाम बातें स्पष्ट दिख रही है।दुनिया की वर्तमान स्थिति का अवलोकन और मंथन कर कोई भी परिवर्तन के तमाम लक्षण को देख सकता है।
विनाश का साक्षात्कार बाबा ने 1936 में किया था आज वह अक्षरशरू सच साबित होता दिख रहा है। अब विनाश का नजारा पूरी दुनिया देख रही है। हजारों अणुबम लिए हुए विभिन्न देश भले एक दूसरे को धमका रहे हैं लेकिन वही बम बहुत जल्द फूटेंगे और पुरानी दुनिया का विनाश होगा ।इन बातों को ब्रह्मा बाबा के द्वारा शिवबाबा ने बताया है।उन्होंने यह भी कहा है कि सिर्फ बम ही विनाश का कारण नही बनेगा बल्कि प्रकृति के पांच तत्वो का विकराल रूप भी कारण बनेगा।आज तत्वों की नाराजगी को लोग देख रहे हैं। इस बीच संस्था न सिर्फ मूल्यों को पुनर्स्थापित कर रही है बल्कि नई दुनिया कैसी होगी इसका स्पष्ट स्वरूप भी अपनी योग की श्रेष्ठ स्थिति द्वारा कई ब्रह्मा वत्स देख रहे है। अभी परमात्मा भारत की भूमि पर हाजिर है और अभी सभी के लिए समान अवसर है कि वह उनसे अपने को जोड़कर जितनी शक्ति लेना चाहे ले सकता हैं। वे नई दुनिया में अपना बडा ते बडा पार्ट फिक्स भी कर सकते हैं क्योंकि अभी अवसर है,और यह अवसर बहुत जल्दी समाप्त हो जाएगा। 2025 के बाद दुनिया का स्वरूप बहुत तेजी से बदलने जा रहा है, ऐसा ब्रह्मा बाबा ने 1936 में ही कही थी।
संस्था अपने 20 प्रभागो के माध्यम से हर एक आत्मा के अंदर स्पिरिचुअल एंपावरमेंट का कार्य कर रही है ,इसे सतयुगी संस्कार भी हम कह सकते हैं।
ब्रह्मा बाबा ने आरंभ में ही कहा था कि आध्यात्मिक सशक्तिकरण ही सुख, शांति , समृद्धि के साथ-साथ स्वस्थ जीवन का आधार बनेगा । जन्म मरण में आने से आत्मा का पावर कमजोर हो चुका है जब आत्मा सशक्त हो जाएगी तो मनुष्य का जीवन सुखमय हो जायेगा।और धर्म ग्लानी का जो दौर है वह समाप्त हो जायेगा।
अपने लक्ष्य कर्मठता एवं मिठास भरे जीवन के प्रतिकंपन के आधार पर ब्रह्मा बाबा ने संपूर्णता को प्राप्त कर 18 जनवरी 1969 में शरीर छोड़ी और नए पार्ट के लिए प्रस्थान किया। अमुमन देखा जाता है कि किसी भी संस्था के प्रधान की जब शरीर छूटती है तो संस्था में तनाव, हिंसा एवं धन के लिए लड़ाई आदी होती है लेकिन ब्रह्मा बाबा ने जब शरीर छोड़ा उसके बाद यह संस्था और चौगुना स्पीड से आगे बढ़ने लगी। आज विश्व के लगभग सभी देशों में यह संस्था भारत के इस आध्यात्मिक ज्ञान को फैला रही है दुनिया भर मे भारत का यह आध्यात्मिक ज्ञान तेजी से फैल रही है।देश के राष्ट्रपति महामहिम द्रोपदि मुर्मू ब्रह्माकुमारी से जुड़ी हुई है। आज भारत के लगभग एक दर्जन राज्यपाल एवं कई मुख्यमंत्री संस्था के कार्य से काफी प्रभावित है तथा कई आला अधिकारियों ने स्पष्ट कहा है कि जिस कार्य को हम लोग नहीं कर पाये आज उस कार्य को ब्रह्माकुमारी संस्था की बहन भाई कर रहे हैं ।वे कहते हैं कि ब्रह्माकुमारी नई दुनिया के निर्माण कार्य को जिस निष्ठा और समर्पण भाव से कर रही हैं इनका योगदान देश कभी नहीं भूलेगा देश की जनता हमेशा ऋणी रहेगी।
Home न्यूज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संस्थापक ब्रह्मा बाबा का 55 वां पुण्य...