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गोविंदगंज में राजू तिवारी की दबदबे वाली जीत—स्थानीय नेतृत्व और सामाजिक संतुलन ने चुनावी पंडितों को चौंकाया

सचिन कुमार सिंह। एडिटर

मोतिहारी के गोविंदगंज विधानसभा क्षेत्र ने एक बार फिर तिवारी परिवार से राजू तिवारी को अपना विधायक चुन लिया। यह सीट पहले भाजपा के पास थी और पूर्व विधायक सुनील मणि तिवारी अपनी पुन: उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त थे। यह अनुमान स्वाभाविक भी था कि कोई पार्टी अपनी ‘सिटिंग सीट’ छोड़ना नहीं चाहेगी। मगर अंतिम समय पर लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने अपने प्रदेशाध्यक्ष राजू तिवारी के लिए यह सीट साध ली।

इसके बाद सुनील मणि तिवारी की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने राजनीतिक हलचल और बढ़ा दी। उनके कुछ बयानों ने संकेत दिए कि मामला तिलमिलाने वाला हो सकता है। हालांकि उन्होंने बगावत का रास्ता नहीं चुना, लेकिन संभावित ‘भितरघात’ की आशंका ने चुनावी विश्लेषकों को यह मानने पर मजबूर किया कि महागठबंधन यहां से बढ़त बना सकता है।

लेकिन इन सारी आशंकाओं और अनुमानों को ध्वस्त करते हुए राजू तिवारी ने अच्छी-खासी बढ़त से महागठबंधन उम्मीदवार गप्पू राय को मात दी। यह परिणाम चौंकाने वाला जरूर था, पर अप्रत्याशित नहीं। गोविंदगंज की सामाजिक-सियासी जमीन को समझने वाले जानते हैं कि तिवारी परिवार का पारंपरिक प्रभाव और एनडीए का स्थायी जनाधार यहां निर्णायक भूमिका निभाता है। ब्राह्मण वोटर इस सीट पर हमेशा निर्णायक रहे हैं और यदि प्रत्याशी एनडीए खेमे से हो तो वोट एकमुश्त उसके पक्ष में जाता है—यह चुनाव नतीजा उसी प्रवृत्ति की पुष्टि करता है।

इस बार का चुनाव सिर्फ एक पारंपरिक मुकाबला नहीं था, बल्कि स्थानीय नेतृत्व की पकड़, जातीय संतुलन, और महागठबंधन की रणनीतिक भूलों का मिश्रित परिणाम रहा। राजू तिवारी की जीत को कई स्तरों पर पढ़ा जा सकता है। एक मजबूत संगठनात्मक उपस्थिति, जमीन से जुड़ा नेटवर्क और जनता की प्राथमिकताओं के बीच उनका सहज मेल। लेकिन एनडीए के प्रति यहां के मतदाताओं के खास वर्ग के झुकाव ने ही इस बार उनकी जीत की राह आसान कर दी, जबकि पिछले चुनाव में इसी समीकरण के कारण उन्हें तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा था।

लगातार उपस्थिति का फायदा

चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान, राजू तिवारी की सबसे बड़ी ताकत रही उनकी निरंतर फील्ड उपस्थिति। गांव से लेकर पंचायत और स्थानीय संस्थाओं तक, उनका संपर्क तंत्र सक्रिय रहा। पुराने कार्यकर्ताओं की निष्ठा और नए युवाओं का जुड़ाव, दोनों ने मिलकर उनके लिए मजबूत जमीन तैयार की।

जातीय समीकरण का सूझबूझ से प्रबंधन

गोविंदगंज की सामाजिक बनावट जटिल है, पर इस बार विभिन्न जातीय समूहों में एक प्रकार का क्रॉस-कंसेंसीस सामने आया। सवर्णों, अत्यंत पिछड़ों और कुछ हिस्सों में दलित वर्ग में राजू तिवारी को व्यापक समर्थन मिला। महागठबंधन इस सामाजिक गोलबंदी को तोड़ने में सफल नहीं हो पाया, जबकि एनडीए ने इसे मजबूती से साधे रखा।

विपक्ष की रणनीति में भ्रम

महागठबंधन की ओर से टिकट वितरण पर असंतोष, लोकल स्तर पर धड़ों में बंटे कार्यकर्ता, अंतिम समय तक ठोस मुद्दा-निर्माण न हो पाना भी उनकी जीत में बाधा बन गई। हालांकि उनके स्वजातीय मतदाताओं ने भर-भर कर वोट दिये, मगर वे निर्णायक साबित नहीं हुए। महागठबंधन के पारंपरिक माय समीकरण भी अप्रभावी इस कारण साबित हुआ क्योंकि उनके वोटों में बंटवारा हुआ।

राज्य स्तर पर महागठबंधन जहां सीएम फेस, सहयोगियों के बयानों और तुष्टीकरण विवादों में उलझा रहा, वहीं एनडीए ने चुनाव के आखिरी चरणों में “स्थिरता बनाम अस्थिरता” का स्पष्ट संदेश दिया। जिसका फायदा भी मिला।

गोविंदगंज का परिणाम एक साफ संदेश देता है लोकल नेतृत्व यदि सक्रिय, उपलब्ध और समीकरणों को समझने वाला हो, तो बड़ी लहरों के बीच भी अपनी जीत सुनिश्चित कर सकता है। राजू तिवारी की जीत किसी एक कारण की नहीं, बल्कि रणनीति, सामाजिक संतुलन और संगठनात्मक मजबूती की संयुक्त उपलब्धि है।

प्रमुख चुनाव परिणाम और इतिहास

1990 के दशक में इस सीट पर जनता दल (JD) का प्रभाव रहा। 1990 में योगेंद्र पांडे (Janata Dal) जीते थे। 1995 में समता पार्टी के देवेंद्र नाथ दुबे ने जीत दर्ज की थी। 1998 के उपचुनाव में समता पार्टी के भूपेंद्र नाथ दुबे जीते थे। 2000 में निर्दलीय राजन तिवारी जीते थे।
2005 और 2010 में JDU (जनता दल यूनाइटेड) की मीना देवी ने यह सीट जीती।

गोविंदगंज विधानसभा सीट पर राजन और राजू तिवारी परिवार का राजनीतिक प्रभाव पुराना है।
यह सीट बहुदलीय और बदलते समीकरणों की गवाही देती है: कई पार्टियों ने यहाँ जीत हासिल की है — LJP, BJP, JDU, और निर्दलीय भी।

2015 में LJP की जीत, 2020 में BJP की विजय और फिर 2025 में LJP-(राम विलास) की वापसी दिखाती है कि वोटर्स “पार्टी + प्रत्याशी” दोनों को देख रहे हैं, न कि सिर्फ पारंपरिक वोट बैंक पर निर्भर।
ब्राह्मण वोटरों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जैसा कि गोविंदगंज की सामाजिक बनावट में कहा गया है।

2025 का परिणाम (Final Votes)

रैंक उम्मीदवार पार्टी कुल वोट वोट %
1 राजू तिवारी LJP-(RV) 96,034 53.4%
2 शशि भूषण राय (गप्पू राय) कांग्रेस 63,351 35.2%
3 कृष्ण कान्त मिश्र जन सुराज 9,830 5.47%
4 NOTA 2,911 1.62%
5 नितेश कुमार श्रीवास्तव Plurals 3,770 2.1%
6 आशुतोष कुमार Janshakti Janta Dal 3,471 1.9%
7 अजीत कुमार राम BSP 1,815 1.0%
8 अशोक कुमार सिंह AAP 929 0.5%
9 राहुल प्रियदर्शी Akhand Bharatiya Yuva Party 630 0.3%

यहां पिछले कुछ विधानसभा चुनावों का विवरण और गोविंदगंज में किसका प्रभाव रहा है:

वर्ष विजेता विधायक (MLA) पार्टी खास बातें / ट्रेंड
2015 राजू तिवारी LJP LJP (लोक जनशक्ति पार्टी) के राजू तिवारी ने 74,685 वोट हासिल किए, और कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को करीब 27,920 वोटों से हराया।
2020 सुनील मणि तिवारी BJP यह सीट भाजपा को मिली; उनका वोट लगभग 65,716 था। यह बदलाव बताता है कि 2015 में LJP की जीत के बाद 5 साल में समीकरण बदल गए।
2025 राजू तिवारी LJP (राम विलास) इस बार राजू तिवारी ने वापसी की और LJP (राम विलास) के टिकट पर जीत

हासिल की।

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