
इंटरनेशनल डेस्क। यूथ मुकाम न्यूज नेटवर्क
बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली करीमा बलोच का शव कनाडा के टोरंटो में मिला। उनकी हत्या की आशंका जताई जा रही है, ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने उनकी हत्या की है। वहीं करीमा की मौत के बाद सोशल मीडिया पर इनको न्याय देने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी दोषियों को सजा दिए जाने की मांग की।
बता दें कि करीमा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना भाई मानती थीं। बलूच साल 2005 में बलूचिस्तान के शहर तुर्बत में तब चर्चा में आई थीं जब उन्होंने गायब हो चुके एक नौजवान शख्स गहराम की तस्वीर हाथ में पकड़ी थी। ये शख्स उनका नजदीकी रिश्तेदार था। 2016 में बीबीसी ने उन्हें सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था। इन्हें बलूचिस्तान की सबसे प्रखर महिला एक्टिविस्ट माना जाता था।
जब बलूचिस्तान स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (बीएसओ) के तीन धड़ों का साल 2006 में विलय हो गया तो तो करीमा बलोच को केंद्रीय समिति का सदस्य चुना गया। वो बीएसओ की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। इन हालात में करीमा बलोच ने संगठन की सक्रियता बनाए रखी और बलूचिस्तान के दूरस्थ इलाकों में संगठन की सामग्री पहुंचाना जारी रखा।
करीमा बलोच ऐसी पहली महिला नेता मानी जाती हैं जिन्होंने नई परंपरा शुरू की और विरोध प्रदर्शनों को तुर्बत से क्वेटा तक सड़कों पर लेकर आईं। साल 2008 में तुर्बत में इसी तरह की एक रैली के दौरान उन पर पहली बार आतंकवाद विरोधी कानून के तहत आरोप लगाए गए, बाद में उन्हें भगोड़ा करार दे दिया गया। उन्होंने बलूचिस्तान में गायब होने वाले लोगों के लिए कराची में विरोध प्रदर्शन का आयोजन भी किया था। जब पाकिस्तान में हालात बहुत खराब हो गए तो वो कनाडा चली गईं, जहां उन्होंने राजनीतिक शरण ली।
भारत में कब आईं चर्चा में ?
साल 2016 में करीमा ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था। करीमा ने कहा था कि बलूचिस्तान की बहनें प्रधानमंत्री मोदी को भाई मानती हैं। आपसे उम्मीद रखते हैं कि आप बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचों की और अपने भाइयों को खोने वाली बहनों की आवाज बनेंगे।
बलूच अभियान से महिलाओं को जोड़ा
बलूच राष्ट्रीय अभियान से महिलाओं को जोड़ने में भी उन्होंने बेहद अहम भूमिका निभाई थी। करीमा बलोच को बलूच महिलाओं के बीच राजनीतिक अभियान की संस्थापक कहा जाता है। उनका छात्राओं को बलूच अभियानों और विरोध प्रदर्शनों से जोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान रहाहै। वो 70 सालों में पहली बार बीएसओ की पहली महिला अध्यक्ष बनी थीं।
करीमा बलोच से पहले इससाल मार्च में एक और बलूच शरणार्थी पत्रकार साजिद हुसैन भी स्वीडन में गायब हो गए थे, उनका शव स्वीडन में एक नदी में पाया गया था। साजिद हुसैन के रिश्तेदारों ने दावा किया था कि उनकी हत्या की गई है लेकिन पुलिस जांच में ये साबित नहीं हुआ था। पेरिस के पत्रकारिता संस्थान रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने आरोप लगाया था कि साजिद का संदिग्ध रूप से गायब होना और उनकी मौत हो जाना एक साजिश थी। इसे पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई और मिलिट्री इंटेलिजेंस ऑफ पाकिस्तान ने अंजाम दिया था। पाकिस्तानी सरकार हमेशा से बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहर करती आई है। यही वजह है कि साल 2003 से यहां संघर्ष चरम पर है। यहां हजारों बलोच लोग या तो पाकिस्तानी सेना के द्वारा मारे गए हैं या लापता हैं। इसी वजह से कई बलोच अलगाववादी संगठन बलूचिस्तान में सक्रिय हैं।
बलूचिस्तान को लेकर भारत का रुख?
आजादी के बाद से भारत बलूचिस्तान के मुद्दे पर बोलने से बचता था, लेकिन 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के दिन अपने भाषण में बलूचिस्तान में चल रहे संघर्ष का जिक्र किया था। हालांकि बलूचिस्तान में चल रहे संघर्ष को पाकिस्तान सरकार अक्सर भारत प्रायोजित बताती है।
बलूचिस्तान का इतिहास
अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान बलूचिस्तान को चार रियायतों में बांटा था। इनमें से तीन मकरान, लस बेला और खारन आजादी के समय पाकिस्तान में मिल गई थीं। 1948 मे पाकिस्तान ने कलात पर कब्जा कर लिया था। बलूचिस्तान आज भी पाकिस्तान का सबसे गरीब और सबसे कम आबादी वाला इलाका है।