Home न्यूज एक तरफ बिहार शराब बंदी का कर रही दावा, दूसरी ओर नई...

एक तरफ बिहार शराब बंदी का कर रही दावा, दूसरी ओर नई पीढ़ी अपना रही नशा लेने का नया तरीका, कैसे लगेगी रोक

मोतिहारी। अशोक वर्मा.
कहने को पूरे बिहार में पूर्ण नशाबंदी है। नशाबंदी उठाने के लिए विपक्ष के तमाम सुझाव को नीतीश कुमार ने नजर अंदाज कर दिया। अब आनेवाले नये कानून में शराब पीनेवाले जेल नहीं जाएंगे, लेकिन शराब निर्माता और सप्लायर जेल जाएंगे। इन तमाम पाबंदियों के बीच जिले के किशोरों ने नशा का एक नया तरीका निकाला है, वैसे यह तरीका कोई नया नहीं है लेकिन अब धीरे-धीरे वह नासूर होता जा रहा है। तरीका भी बड़ा सिंपल है।
किसी भी सामान का खाली डब्बा बच्चे लेते हैऔर दुकानों में बिकने वाले व्हाइटनर , ग्रीष या फिर ट्यूब साटने वाला केमिकल ट्यूब लेकर उसके अंदर के लिक्विड निकालकर उस डब्बे में डाल देते हैं। डब्बे को नाक के पास लाकर उसे तेजी से सूघते हैं । धीरे-धीरे वह एक नशा का रूप ले लेता है और सांस में घुल मिलकर कुछ देर बाद उसका असर धीमा जहर समान चढ़ने लगता है। बच्चों की आंखांे में खुमारी छाने लगती है। कुछ ही देर में बच्चे मदहोश होने लगते हैं। इन केमिकलों की प्रक्रिया उनके शरीर और दिमाग पर कितनी खराब पडती है ,यह मेडिकल जांच का विषय है ,लेकिन कुछ देर के लिए बच्चो को असामान्य स्थिति में पहुंचाने के लिए वह काफी होता है। निश्चित ही बच्चों के दिमाग और शरीर पर इसका असर होता होगा। बचपन में इस प्रकार की हल्की नशा लेने की आदत उम्र बढ्ने के साथ बडी नशा के आदी बनने में मददगार होते हैं और इस तरह से वह पक्का नशेड़ी बन कर रह जाता हैं, तथा पूरी उम्र जी नहीं पाता।
समय के पूर्व बीमारी के शिकार होकर मृत्यु के आगोश में चला जाता है। इन सब चीजों की ओर सरकार, जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन, नगर परिषद या पुलिस प्रशासन किसी का भी ध्यान नही है। सामाजिक क्षेत्र के लोग भी इसमें कहीं भी दिलचस्पी नही लेते हैं। जो भी किशोर गलत लाइन में जा रहे हैं, वे तडप -तडप कर मौत के आगोश में चले जाते हैं, यही उसकी अंतिम परिणति होती है।
आज देश में बचपन बचाओ आंदोलन चलाने में कई सामाजिक संस्थाएं लगी हुई है। करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं ,लेकिन नशे की लत में आज किशोर बर्बादी के कगार पर जा रहे हैं। इस दिशा में कोई भी एनजीओ कार्यरत नही है। एक तरह से अब एनजीओ भी फैशनेबल और सरकारी मशीनरी की तरह कार्यरत है। उनके अंदर की संवेदनाएं मरती दिख रही है।
हजार रुपये के भोजन के प्लेट ऐसी कमरे की मीटिंग के बीच समाज के लिए गहन चिंतन मनन करने तक ही सिमट कर रह जा रहे हैं लोग । जब तक नशा, बाल अपराध बाल तस्करी के मामले में उसके जड़ एवं शुरुआती स्टेज मे नष्ट नही किया जाएगा तब तक बेहतर परिणाम नहीं आ सकता है। लाख नशाबंदी का कानून बन जाए लोग मरते रहेंगे और राजनीति करने वाले अपनी राजनीतिक रोटी सेकते रहेंगे।

Previous articleइंडिया गेट पर बनी अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की लौ में मिलाया गया, राहुल गांधी को रास नहीं आ रहा फैसला
Next articleरोटरी लेक टाउन ने मनाई राइटर जॉर्ज ऑरवेल की 72 वी पुण्य स्मृति दिवस