मोतिहारी। अशोक वर्मा
मोतिहारी नगर निगम बनने के बाद असमंजस की स्थिति से गुजरते हुए निकाय चुनाव संपन्न हुआ और दो खेमा में विभक्त नगर निगम के मेयर एवं उप मेयर के रूप में प्रीति कुमारी एवं भाजपा के जिला महासचिव डॉ लाल बाबू प्रसाद विजयी हुए।
मतदाताओं ने अपने रुख को जरा भी उजागर नहीं होने दिया और मत का प्रयोग बिल्कुल ही गुप्त रूप में कर आश्चर्यजनक परिणाम नगर वासियों को दिया । जो लोग विकास का हवाला देकर चुनाव मैदान में उतरे थे वे शिकस्त खा गए और वैज्ञानिक तरीके से जिन लोगों ने चुनाव लड़ा वे विजयी हुए । पुराने अधिकांश प्रत्याशी हार गए और नए चेहरे को लोगों ने चुना। निवर्तमान मुख्य पार्षद अंजू देवी भी चुनाव हार गई।
चुनाव मे मेयर के रूप में दो मुख्य चेहरा सामने था ।
एक भाजपा जिलाध्यक्ष प्रकाश अस्थाना जो राधा मोहन सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री के खेमा से थे और दूसरी प्रीति कुमारी जो समाजसेवी देवा गुप्ता की पत्नी है और ढाका के भाजपा विधायक पवन जयसवाल खेमा की थी। पवन जायसवाल ने एक नारा दिया था चुमावन वापस करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा था कि यह चुनाव दलगत नहीं है इसलिए किसी भी प्रत्याशी का समर्थन देना गलत नहीं है । दूसरी ओर राधा मोहन सिंह ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी।
भाजपा के संगठन का लाभ लेने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया, लेकिन बिहार के बदले माहौल में जहां महागठबंधन का पलड़ा अभी भारी है । उनकी सारी रणनीति धरी रह गई और मोतिहारी की जनता ने यह तय कर दिया कि न तो यहां कोई किंग है, न किंग मेकर, वे जिन्हें चाहेंगे उसे वोट देकर जिताएंगे। यानी लोकतंत्र में सिर्फ मतदाता मालिकों की चलेगी। और मतदाता की रणनीति के आगे हर रणनीति फेल हो जाती है। हां, चुनाव जिताने में कुछ लोग अहम भूमिका जरूर निभाते हैं, क्योंकि चुनाव की कैपेनिंग इतनी आसान नहीं है।
पवन जायसवाल ने प्रीति कुमारी का साथ दिया एक तरह से उन्होंने प्रीति कुमारी को अपना प्रत्याशी घोषित किया था ।इसके साथ पूर्व विधायक राजन तिवारी एवं जाने-माने उद्योगपति राकेश पांडे ने भी प्रीति कुमारी को अपना समर्थन देकर मजबूत स्थिति बना दिया था।
नगर निगम चुनाव तो संपन्न हुआ, लेकिन इस चुनाव में जो परिणाम आए हैं इसका दूरगामी परिणाम भविष्य में होने जा रहा है। फिलहाल अभी हारे हुए खेमा को मंथन की जरूरत है कि आखिरकार उनसे चूक कहां हुई।