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शिक्षाः अब विश्वविद्यालयों में छात्रों को पढ़ाया जाएगा रामायण साइंस, कई विवि ने की पहल, पढ़ें पूरी खबर

शिक्षा डेस्क। यूथ मुकाम न्यूज नेटवर्क
देश की युवा पीढ़ी भारतीय संस्कृति को दिनोंदिन भूलती जा रही। इस ज्ञान-विज्ञान को अविस्मरणीय बनाने के लिए जोर-शोर से प्रयास किए जा रहे हैं। कई विश्वविद्यालयों में त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम के जीवन से जुड़े हुए प्रसंगों, जिनका धार्मिक ग्रंथ रामायण में मिलता है, पर अध्ययन और शोध कार्य प्रारंभ किए हैं। विश्वविद्यालयों में रामायण से जुड़े विज्ञान को लेकर कई तरह के पाठ्यक्रम भी शुरू किए गए हैं। अब इस कड़ी में एक और नया नाम जुड़ा है वह है मध्य प्रदेश के भोज विश्वविद्यालय का।

हालांकि, मध्यप्रदेश के दो अन्य विश्वविद्यालय भी ऐसे मिलते-जुलते पाठ्यक्रम शुरू कर चुके हैं। विश्वविद्यालयों में छात्रों को रामायण साइंस पढ़ाया जाएगा। छात्र रामचरितमानस की चैपाइयों को पढ़कर देश के पुरातन विज्ञान से परिचित हो सकेंगे। मध्यप्रदेश भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि रामायण की धार्मिक महत्ता तो सब जानते हैं लेकिन रामायण के वैज्ञानिक पहलू, उसका प्रकृति से संबंध, पर्यावरण और प्राणी विज्ञान से जुड़ाव जैसे वैज्ञानिक पहलुओं को उजागर करने के लिए इस तरह के पाठ्यक्रमों की शुरुआत की जा रही है।

विश्वविद्यालय देशभर में दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा पहला मुक्त विश्वविद्यालय होगा, जो रामायण विज्ञान पर आधारित विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं पर एक साल के डिप्लोमा कोर्स की शुरुआत कर रहा है। भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार, इस पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए उम्र सीमा का कोई बंधन नहीं है। कोई भी 12वीं पास व्यक्ति या छात्र इस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकता है।

अयोध्या में तैयार हुआ सिलेबस
भोज विश्वविद्यालय ने इस पाठ्यक्रम के लिए पाठ्यसामग्री अयोध्या की रामायण समिति के सहयोग से तैयार करवाई है। पाठ्यसामग्री में बताया गया है कि सभी ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति, आकर्षण एवं विकर्षण आदि के धार्मिक और वैज्ञानिक पक्ष भी पढ़ाए जाएंगे। पाठ्यक्रम में जैव विविधता का भी समावेश किया गया है। इस एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम की फीस के तौर तीन हजार रुपए लिए जाएंगे। इसमें विद्यार्थियों को पाठ्यसामग्री भी उपलबध करवाई जाएगी।

ये सब पढ़ाया जाएगा
इस पाठ्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थी रामचरितमानस में अंतर्निहित विभिन्न ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति के पहलुओं का गहन अध्ययन कर सकेंगे। जैसे कि समुद्र में राम नाम के पत्थर कैसे तैरे। रावण का पुष्पक विमान मन की गति से कैसे उड़ान भरता था। किष्किंधा के राजा वानर राज बाली के पास ऐसी कौन सी विद्या थी, जिससे वह रोज सुबह पृथ्वी के ढाई चक्कर लगा लेता था।

आकाशवाणी कैसे होती थी। हनुमानजी कैसे राम नाम लेकर हवा में उड़ने लगते थे। इस पाठ्यक्रम को शुरू करने का उद्देश्य सनातन संस्कृति के विज्ञान के गुढ़ रहस्यों को अध्ययन के माध्यम से सबसे सामने रखना है। श्रीरामचरित मानस से जुड़े भौतिक, रसायन, जीव, पर्यावरण के साथ औषधीय विज्ञान से विद्यार्थियों को रूबरू होंगे।

ये विश्वविद्यालय पहले से पढ़ा रहे
मध्यप्रदेश के दो और विश्वविद्यालय पहले से रामायण विज्ञान से जुड़े पाठ्यक्रमों की शुरुआत कर चुके हैं। रामचरितमानस की चैपाइयों में छिपे वैज्ञानिक रहस्यों और पहलुओं पर अध्ययन के लिए दिसंबर 2020 में मध्यप्रदेश के विक्रम विश्वविद्यालय ने श्रीरामचरित मानस में विज्ञान और संस्कृति’ प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम शुरू किया गया है।

इस पाठ्यक्रम को उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग और अयोध्या शोध संस्थान की मदद से इसे पढ़ाया जा रहा है। इसके अलावा, मध्यप्रदेश के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने भी इसी से मिलता-जुलता एक कोर्स शुरू किया है। इसमें भी छात्रों को रामायण का वैज्ञानिक दृष्टिकोण पढ़ाया जा रहा है।

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